ज्योतिषाचार्य पं. अमर अभिमन्य डब्बावाला के मुताबिक शुक्र ग्रह का अधिकार मनुष्य के चेहरे पर होता है। यह ग्रह एक राशि पर डेढ़ महीने तक रहता है। यह वृष तथा तुला राशि का स्वामी है। वहीं तुला राशि पर विशेष बली रहता है। शुक्र ग्रह के गुरु सूर्य, चंद्र मित्र होते हैं, बुध, शनि सम होते हैं तथा मंगल शत्रु होते हैं।
शुक्र ग्रह सौरमंडल का सबसे दैदीप्यमान ग्रह है। इसका वर्षमान हमारे 225 दिनों के समान है। 22 मील प्रति सेकंड की गति से सूर्य की प्रदक्षिणा करता है। यह ग्रह दक्षिण-पूर्व दिशा का स्वामी है, स्त्री जाति, श्याम, गौर वर्ण का माना जाता है। अत: इसके प्रभाव से व्यक्ति का रंग गेंहुआ होता है। लग्न से छठे स्थान पर निष्फल और सातवें स्थान पर अशुभ होता है। व्यक्ति की कुंडली में विभिन्न स्थितियों के अनुसार शुक्र ग्रह से सगाई, विवाह, संबंध विच्छेद, तलाक, विलास, प्रेम सुख, संगीत, चित्रकला, द्यूत, कोषाध्यक्षता, मानाध्यक्षता, विदेश गमन, स्नेह व मधुमेह प्रमेह आदि रोगों का अध्ययन किया जाता है। मिथुन, कन्या, मकर और कुंभ लग्नों में शुक्र योगकारक होता है। आश्लेषा, ज्येष्ठा, रेवती, कृतिका और स्वाति और आद्र्रा नक्षत्रों में रहकर यह शुभ फल देता है तथा भरणी, पूर्वा फाल्गुनी, पूर्वाषाढ़ा, मृगशिरा, चित्रा, धनिष्ठा नक्षत्रों में स्थित होकर शुभ फल प्रदान करता है। शेष पंद्रह नक्षत्रों में सम फल देता है।
लग्न भाव या प्रथम भाव में शुक्र का प्रभाव
जिसके लग्न स्थान यानी प्रथम भाव में शुक्र हो तो, उसका अंग-प्रत्यंग सुंदर होता है। अपने दोस्तों के साथ घूमने-फिरने का शौकीन होता है। ऐसा व्यक्ति दीर्घ आयु वाला, स्वस्थ, सुखी, मृदु एवं मधुभाषी होता है। वह विद्वान, कामी तथा राजकार्य में दक्ष होता है।
दूसरे भाव में शुक्र का प्रभाव
दूसरे स्थान पर शुक्र हो तो, व्यक्ति प्रियभाषी तथा बुद्धिमान होता है। स्त्री की कुंडली हो तो, वह सर्वश्रेष्ठ सुंदरी पद प्राप्त करने की पात्र होती है। व्यक्ति मिष्ठान्न भोगी, लोकप्रिय, जौहरी, कवि, दीर्घजीवी, साहसी आरै भाग्यवान होता है।
तीसरे भाव में शुक्र का प्रभाव
यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में तीसरे भाव पर शुक्र हो तो, वह स्त्री प्रेमी नहीं होता है। पुत्र लाभ होने पर भी संतुष्ट नहीं होता है। ऐसा व्यक्ति कंजूस, आलसी, चित्रकार, विद्वान तथा यात्रा करने का शौकीन होता है।
चौथे भाव में शुक्र का प्रभाव
चतुर्थ चौथे भाव में शुक्र हो तो, व्यक्ति उच्च पद प्राप्त करता है। ऐसे व्यक्ति के कई मित्र होते हैं। घर सभी वस्तुओं से पूर्ण रहता है। ऐसा व्यक्ति दीर्घायु, परोपकारी, आस्तिक, व्यवहार कुशल और दक्ष होता है।
पांचवें भाव में शुक्र का प्रभाव
किसी व्यक्ति की कुंडली में पांचवें भाव में शुक्र हो तो यह शत्रुओं का नाश करने वाला होता है। व्यक्ति के जरा सी मेहनत से ही कार्य सफल हो जाते हैं। ऐसा व्यक्ति कवि हृदय, सुखी, भोगी, न्यायप्रिय, उदार और व्यवसायी होता है।
छठे भाव में शुक्र का प्रभाव
यदि कुंडली में छठे भाव में शुक्र हो तो व्यक्ति के नए शत्रु पैदा होते हैं। मित्रों के साथ संबंध नष्ट होते हैं और गलत कार्यों में धन व्यय करने वाला होता है। ऐसा व्यक्ति स्त्री सुखहीन, दुराचार, बहुमूत्र रोगी, दुखी, गुप्त रोगी तथा मितव्ययी बनता है।
सातवें भाव में शुक्र का परिणाम
किसी व्यक्ति की कुंडली में यदि शुक्र सातवें स्थान पर होता है तो यह अशुभ परिणाम देने वाला होता है।
आठवें भाव में शुक्र का परिणाम
यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में शुक्र आठवें स्थान में हो तो व्यक्ति को वाहन आदि का सुख मिलता है। वह दीर्घजीवी, लेकिन कटुभाषी होता है। ऐसे व्यक्ति पर हमेशा ही कर्ज चढ़ा रहता है। ऐसा व्यक्ति रोगी, क्रोधी, चिड़चिड़ा, दुखी, पर्यटनशील और पराई स्त्री पर धन व्यय करने वाला होता है।
कुंडली में नवें भाव में शुक्र का प्रभाव
किसी व्यक्ति की कुंडली में यदि शुक्र नवें भाव में है, तो व्यक्ति को अत्यंत धनवान बनाता है। वह धर्मादि कार्यों में बहुत रुचि रखने वाला होता है। उसे सगे भाइयों का सुख मिलता है। ऐसा व्यक्ति आस्तिक, गुणी, प्रेमी, राजप्रेमी तथा मौजी स्वभाव का होता है।
शुक्र का दशम या दसवें भाव में प्रभाव
जिस व्यक्ति की कुंडली में शुक्र दशम भाव में होता है, तो वह व्यक्ति लोभी और कृपण स्वभाव का होता है। इसे संतान सुख का अभाव सा रहता है। ऐसा व्यक्ति विलासी, धनवान, विजयी, हस्त कार्यों में रुचि लेने वाला और शक्की स्वभाव का होता है।
शुक्र का ग्यारहवें भाव में प्रभाव
जिसकी जन्म कुंडली में ग्यारहवें स्थान पर शुक्र हो तो, व्यक्ति प्रत्येक कार्य में लाभ प्राप्त करता है। सुंदर, सुशील, कीर्तिमान, सत्यप्रेमी, गुणवान, भाग्यवान, धनवान, वाहन सुखी, ऐश्वर्यवान, लोकप्रिय, कामी, जौहरी तथा पुत्र सुख भोगने वाला होता है। ऐसा व्यक्ति जीवन में कीर्तिमान स्थापित करता है।
शुक्र का बारहवें भाव में प्रभाव
जिस व्यक्ति की कुंडली में शुक्र बारहवें भाव में हो तो ऐसे व्यक्ति को कभी भी द्रव्यादि की कमी नहीं रहती। ऐसा व्यक्ति स्थूल, परस्त्रीरत, आलसी, गुणज्ञ, प्रेमी, मितव्ययी तथा शत्रुओं का नाश करने वाला होता है।