प्रवेश पर है प्रतिबंध
आपको यह बात जरूर निराश करेगी कि इस मंदिर के मुख्य परिसर में आम आदमी का प्रवेश वॢर्जित है। लेकिन इसका कारण कोई धार्मिक आस्था नहीं बल्कि यह है कि इस चमत्कारिक मंदिर में स्थापित प्रतिमा को पुरातत्व विभाग ने धरोहर मानकर संरक्षित कर दिया है। इसलिए मंदिर में आम लोगों का प्रवेश बंद किया गया है। इस अद्भुत कला व स्थापत्य की मूर्ति से आने वाली आवाज ने इसे इतना खास बना दिया कि राज्य संरक्षित स्मारक के रूप में घोषित कर पुरातत्व विभाग द्वारा इस मूर्ति का संरक्षण किया जा रहा है। फिलहाल आप इस प्रतिमा के दर्शन जाली के दरवाजे के बाहर से ही देख सकते हैं।
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परमारकालीन है यह प्रतिमा
धर्माधिकारी पुजारी पं. गौरव नारायण उपाध्याय बताते हैं कि परमार कालीन यह प्रतिमा पूरे विश्व में एकमात्र है, जो बलुवा पत्थर से निर्मित है। इस प्रतिमा में कहीं कोई जोड़ नहीं है। यह प्रतिमा भगवान श्रीकृष्ण के परिवार के रूप में विराजित है। भगवान श्रीकृष्ण, बलराम, प्रद्युम्न और अनिरुद्ध के रूप में संपूर्ण परिवार एकसाथ विराजमान है। इनके हाथों में शंख, चक्र, गदा आदि शस्त्र सुशोभित हैं। इन्हें सिक्के या हाथ के नाखून से बजाने पर नाद उत्पन्न होता है, जो भगवान राम की ध्वनि के रूप में सुनाई देता है..राम, राम।
नृसिंह अवतार में देते हैं आशीर्वाद
इस दिव्य प्रतिमा में स्थापित चार प्रतिमाओं में से एक प्रतिमा बलरामजी की भी है, लेकिन उन्हें यहां नृसिंह अवतार के रूप में प्रदर्शित किया गया है। ये प्रतिमा अपने आप में अनूठी और विश्व में एकमात्र प्रतिमा है। मान्यता है कि इनके दर्शन मात्र से घर-परिवार में हो रहे विवाद, मनमुटाव आदि परेशानियों से मुक्ति मिलती है। भगवान के आशीर्वाद से संपूर्ण परिवार एक साथ आनंद पूर्वक जीवन व्यतीत करता है।
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तैनात रहता है एक गार्ड
इस प्रतिमा में आने वाली आवाज इसकी खासियत है। यह खासियत ही है कि इस प्रतिमा को कभी अकेले नहीं छोड़ा जाता। दिन-रात एक-एक गार्ड इस प्रतिमा की सुरक्षा में तैनात किया जाता है। एक आयताकार और जालीदार दरवाजे वाले कक्ष में यह प्रतिमा स्थापित है। दरवाजे पर हमेशा ताला लगा रहता है, ताकि कोई अंदर न जा सके। विशेष आग्रह पर ही इस ताले को खोला जाता है।
ये भी जानें
– इस उत्कृष्ट और कलात्मक प्रतिमा को बलुआ पत्थर से बनाया गया है।
– यह 9-10 वीं शताब्दी की प्रतिमा है।
-आयताकार कक्ष में विष्णु के चार स्वरूपों को प्रदर्शित करती पुरातत्वीय दृष्टि से महत्वपूर्ण यह प्रतिमा 93 सेमी चौड़ी तथा 96 सेमी ऊंची है।
– इस प्रतिमा के चारों ओर मुख हैं, इसलिए इसे विष्णु चतुष्टिका कहा जाता है।
– इस मूर्ति में पूर्व की ओर चतुर्भुजी वासुदेव स्वरूप है जिनके हाथों में दाएं क्रम से अक्षमाला लिए वरद मुद्रा, गदा, चक्र एवं शंख दर्शाया गया है।
– दक्षिण की ओर सिंह मुख संकर्षण का अंकन है जो दाएं क्रम से हाथों में अक्षमाला लिए, वरद मुद्रा, मूसल, हल तथा शंख लिए है।
– पश्चिमी ओर अनिरुद्ध का अंकन है जिनके हाथों में दाएं क्रम से अक्षमाला लिए वरद मुद्रा, ढाल जो दाएं क्रम से हाथों में अक्षमाला लिए वरद मुद्रा, धनुष, बाण एवं शंख लिए हैं।
– इस अद्भुत प्रतिमा का निर्माण विष्णु धर्मोत्तर में वर्णित प्रतिमा के अनुरूप ही निर्मित किया गया है। विष्णु जी की चारों मूर्तियां, किरीट मुकुट, श्रीवत्स, कुंडल, कटकवलय आदि से अलंकृत एवं पद्मासन में है।