अफगानिस्तान से सेना की वापसी के फैसले को अमरीकी सेना के दो शीर्ष जनरलों ने गलत ठहराया है। इन सैन्य जनरलों ने अफगानिस्तान से अमरीकी सेना की वापसी के पहले राष्ट्रपति जो बिडेन को वहां करीब ढाई हजार सैनिक रखने की सलाह भी दी थी।
जनरल मार्क मिले और जनरल फ्रैंक मैकेंजी ने अमरीकी संसद में जो बताया, वह राष्ट्रपति जो बिडेन के उस बयान बिल्कुल उलट हैं, जिसमें उन्होंने कहा था कि उन्हें याद नहीं कि ऐसी कोई सलाह दी गई थी। बता दें कि तालिबान ने बीते 15 अगस्त को काबुल पर कब्जा कर लिया था और इससे पहले अफगानिस्तान के अलग-अलग प्रांतों पर कब्जा हासिल कर लिया था। हाल ही में उसने दावा किया कि उसके लड़ाकों ने पंजशीर पर भी कब्जा कर लिया है।
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अमरीकी सैन्य अधिकारी जनरल मार्क मिले ने बताया कि अफगानिस्तान में अशरफ गनी सरकार जिस तेजी से गिरी, उससे पूरा अमरीका हैरान रह गया। सीनेट आम्र्ड सर्विस कमेटी के सामने रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन के साथ दोनों जनरलों की सुनवाई हुई। अमरीकी सेंट्रल कमांड के प्रमुख जनरल मैकेंजी की देखरेख में ही अफगानिस्तान से सैनिकों की वापसी हुई है। जनरल मैकेंजी ने कहा कि उन्होंने अफगानिस्तान में ढाई सैनिकों को रखने की सलाह दी थी। कमेटी के सामने उनकी यह बात गत 19 अगस्त को बिडेन के उस दावे के विपरित है, जिसमें राष्ट्रपति ने कहा था कि उन्हें याद नहीं है कि उन्हें ऐसी कोई सलाह दी गई है। हालांकि, बाद में व्हाइट हाउस की प्रवक्ता जेन साकी ने इस मुद्दे पर कहा कि राष्ट्रपति ज्वांइट ऑफ चीफ ऑफ स्टॉफ हैं। वह सेना की सलाह को अहमियत देते हैं, मगर इसका यह मतलब नहीं कि वे हमेशा इससे सहमत होते हैं।
वहीं अफगानिस्तान में हालात फिर बिगड़ रहे हैं। अमरीकी विदेश विभाग के प्रवक्ता नेड प्राइस ने शरिया कानूनों को लागू करने पर तालिबान के हाल में आए बयान पर अपनी सख्त प्रतिक्रिया जाहिर की है। प्राइस ने कहा, तालिबान का शरिया कानून मानवाधिकारों का उल्लंघन करता है। अमरीका अफगानिस्तान में मानवाधिकार सुनिश्चित करने के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय के साथ काम कर रहा है।
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नेड प्राइस ने कहा, हम न केवल तालिबान के बयान पर बल्कि अफगानिस्तान में उसकी कार्रवाइयों पर भी नजर रखे हुए हैं। प्राइस ने कहा कि अमरीका अफगान पत्रकारों, नागरिकों, कार्यकर्ताओं, महिलाओं और बच्चों तथा विकलांगों के साथ खड़ा है। अमारीका ने तालिबान से इन लोगों के अधिकारों को सुनिश्चित करने को कहा है। बता दें कि हाल ही में तालिबान के संस्थापकों में से एक मुल्ला नुरुद्दीन तुराबी ने कहा था कि अफगानिस्तान में एक बार फिर फांसी और शरीर के अंगों को काटने की सजा दी जाएगी। उसने साथ ही यह भी जोड़ा था कि संभवत: इस बार ऐसी सजाएं सार्वजनिक स्थानों पर नहीं दी जाएं। तुराबी ने यह भी कहा कि कोई हमें यह नहीं बताए कि हमारे नियम क्या होने चाहिए और क्या नहीं। हम सिर्फ इस्लाम का पालन करेंगे और कुरान के आधार पर अपना कानून बनाएंगे। तुराबी के इस ऐलान के बाद हेरात प्रांत में चार लोगों को मारकर उनके शव को बड़ी क्रूरता से के्रन के जरिए शहर के चौराहों पर लटका दिया गया।