सूचना पर वन विभाग की टीम गांव में पहुंची और गिलहरी को बरामद कर अंबिकापुर के संजय पार्क (Sanjay Park Ambikapur) में सुरक्षित रखा। यहां चिकित्सकों की निगरानी में उसका इलाज जारी है। बताया जा रहा है कि गिलहरी की यह प्रजाति विलुप्त होती जा रही है।
सरगुजा में मिली उडऩे वाली गिलहरी के संबंध में विशेषज्ञों का कहना है कि गिलहरी की 50 से ज्यादा प्रजातियां होती हैं। इसमें यह उडऩे वाली गिलहरी (Squirrel) है, जो शाकाहारी है। यह गिलहरी सरगुजा जिले के लखनपुर ब्लाक अंतर्गत ग्राम तराजू मे मिली है।
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लखनपुर वन परिक्षेत्र के वनकर्मियों ने रेस्क्यू किया है। वही अम्बिकापुर रेंज वन अधिकारी के मुताबिक इसका बेहतर इलाज कराया जा रहा है। उन्होंने ये भी बताया कि ऐसी उडऩे वाली गिलहरी आमतौर पर पूर्वोत्तर राज्यों के घने जंगल मे पाई जाती है।
पशु चिकित्सक डाक्टर सीके मिश्रा ने बताया कि यह गिलहरियों की पाई जाने वाली 50 प्रजाति में से एक है। इसकी उम्र 2 से सवा 2 साल है। उडऩे वाली गिलहरी (Squirrel) की अधिकतम उम्र 8 वर्ष होती है।
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घने जंगलों में पाई जाती है ऐसी गिलहरी
घने जंगलों मे रहने वाली ऐसी गिलहरी पहली बार जिले के जंगल में मिली है, जिससे वन विभाग के अधिकारियों ने खुशी भी जाहिर की है। उडऩे वाली यह विलुप्त प्रजाति (Extinct squirrel) की गिलहरी फिलहाल घायल है। इलाज के बाद दोबारा इसे जंगल में छोड़ दिया जाएगा।