विधानसभा चुनाव का मतदान महज एक सप्ताह दूर है। कांग्रेस और भाजपा दोनों ही जिले में अपना राजनीतिक वर्चस्व स्थापित करने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं। पिछले चालीस वर्षों से इन चुनावों में किसी न किसी पार्टी का दबदबा रहा है।
अलवर•Nov 18, 2023 / 12:19 pm•
Rajendra Banjara
विधानसभा चुनाव का मतदान महज एक सप्ताह दूर है। कांग्रेस और भाजपा दोनों ही जिले में अपना राजनीतिक वर्चस्व स्थापित करने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं। पिछले चालीस वर्षों से इन चुनावों में किसी न किसी पार्टी का दबदबा रहा है। जिले में लोक दल, राष्ट्रीय जनता दल, जनता दल, बसपा और अन्य पार्टियों को भी अपनी छाप छोड़ते देखा है।
अलवर जिले में इस बार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और बीजेपी के बीच मुकाबला है। यही वजह है कि अलवर जिले की 11 सीटों पर कांग्रेस और बीजेपी आमने-सामने नजर आ रही हैं, कुछ सीटों पर इन दलों के बागी अन्य दलों का दामन थाम व निर्दलीय चुनाव मैदान में उतर मुकाबले को दिलचस्प बनाने में जुटे हैं। पिछले दो दशकों में अलवर जिले के राजनीतिक परिदृश्य में कुछ दिलचस्प बदलाव देखे गए हैं।
इस दौरान हुए चार विधानसभा चुनावों में बीजेपी और कांग्रेस ने बारी-बारी से अपना दबदबा जताया है। साल 2003 में, कांग्रेस 7 सीटों के साथ विजयी हुई, जबकि भाजपा को 3 सीटें मिलीं और एक निर्दलीय उम्मीदवार ने एक सीट जीती। इस चुनाव में अलवर जिले में कांग्रेस का स्पष्ट दबदबा दिखा। 2008 में, बीजेपी ने 7 सीटों के साथ पासा पलट दिया, जबकि कांग्रेस 3 सीटें हासिल करने में सफल रही और समाजवादी पार्टी को एक सीट मिली।
इस चुनाव में जिले में भाजपा का स्पष्ट प्रभुत्व रहा। 2013 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 9 सीटें मिलीं, जबकि कांग्रेस और राजपा अलवर जिले में एक-एक सीट जीतने में कामयाब रहीं। इसका मतलब यह हुआ कि बीजेपी ने 11 में से 9 सीटें जीतकर अपना दबदबा कायम कर लिया है।
2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 5, बीजेपी ने 2, बीएसपी ने 2 और निर्दलीय ने 2 सीटों पर जीत हासिल की थी। हालांकि, बाद में बसपा के दो विधायक कांग्रेस में शामिल हो गए, जिसके परिणामस्वरूप जिले में कांग्रेस के 7 विधायक हो गए और दो निर्दलीय विधायकों ने भी कांग्रेस को अपना समर्थन दिया। 9 विधायकों के समर्थन से कांग्रेस अलवर जिले में अपना दबदबा कायम करने में सफल रही।
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