राजस्थान पत्रिका ने मुद्दा उठाया तो तत्कालीन राज्यपाल कल्याण सिंह ने तत्कालीन संज्ञान लिया। उन्होंने तत्कालीन कुलपति प्रो. कैलाश सोडाणी को विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग खोलने के आदेश दिए। आखिर सत्र 2015-16 से विश्वविद्यालय में राष्ट्रभाषा हिंदी का विभाग स्थापित हुआ।
छह साल से मातृभाषा हिंदी का विभाग का महज एक शिक्षक के भरोसे संचालित है। विभाग में कोई स्थाई प्रोफेसर, रीडर अथवा लेक्चरर नहीं है। वर्षभर हिंदी भाषा के राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन, कार्यशाला, विद्यार्थियों की प्रतियोगिता नहीं कराई जाती हैं। हिंदी दिवस पर औपचारिक चर्चा, संगोष्ठी ही होती है।
उच्च शिक्षा विभाग से जुड़े स्नातक और स्नातकोत्तर कॉलेज में भी हिंदी भाषा के हाल खराब होने लगे हैं। प्रथम वर्ष में तो विद्यार्थी सिर्फ हिंदी में पास होने के लिए किताब पढ़ते हैं। स्नातकोत्तर स्तर पर संचालित हिंदी कोर्स में भी प्रवेश घट रहे हैं। अजमेर के सम्राट पृथ्वीराज चौहान राजकीय महाविद्यालय जैसे कुछेक संस्थाओं को छोड़कर अधिकांश में युवाओं का रुझान हिंदी में एमए करने की तरफ घट रहा है।