गुरुवार को भारतीय उद्यमिता विकास संस्थान (ईडीआईआई) अहमदाबाद परिसर में आयोजित समारोह में इन चारों कलाओं के कारीगरों को गुजरात के कुटीर व ग्रामीण उद्योग आयुक्त व सचिव प्रवीण सोलंकी, नाबार्ड के मुख्य महाप्रबंधक (सीजीएम) बी के सिंघल, सेंटर फॉर एन्वायरमेंट एजुकेशन (सीईई) के निदेशक कार्तिकेय साराभाई, ईडीआईआई के महानिदेशक डॉ. सुनील शुक्ला और संस्थान के हस्तकला सेतु प्रोजेक्ट के निदेशक प्रो.सत्य रंजन आचार्य ने जीआई टैग प्रमाण-पत्र दिया। साथ ही इन कलाओं के कारीगरों को सम्मानित किया गया।
गुजरात कलाओं का घर: सोलंकी कुटीर व ग्रामीण उद्योग आयुक्त सोलंकी ने कहा कि गुजरात अपनी कला विरासत के मामले में भी विशेष पहचान रखता है। गुजरात अनोखी कलाओं का घर है। इन्हें पोषित करना हमारी जिम्मेदारी है। इसके लिए ईडीआईआई के साथ मिलकर राज्य सरकार कारीगरों को कौशल प्रशिक्षण देने, डिजिटल मार्केट में पहचान बनाने में मददरूप हो रही है।
हस्त शिल्प को बढ़ावा देने को नाबार्ड प्रतिबद्ध: सिंघल नाबार्ड के सीजीएम बी के सिंघल ने कहा कि पारंपरिक कला और शिल्प कौशल हमारी विरासत है जिसे पोषित और मान्यता देने की आवश्यकता है। जीआई टैगिंग इस बात का प्रमाण है कि गुजरात की पारंपरिक कला के पास एक मजबूत बाजार है। लघु उद्योगों, कुटीर और ग्रामीण उद्योगों, हस्तशिल्प और अन्य ग्रामीण शिल्पों को बढ़ावा देने के लिए नाबार्ड भी प्रतिबद्ध है।
जीआई टैगिंग से मिलेगा बढ़ावा :शुक्ला ईडीआईआई के डीजी शुक्ला ने कहा कि जीआई टैगिंग इनके अद्वितीय शिल्प को मान्यता देने की दिशा में एक बड़ा कदम है। 2020 में संस्थान की ओर से शुरू की गई हस्तकला सेतु योजना के तहत राज्य के 33 जिलों में 33,939 से अधिक कारीगरों को जागरूक किया जा चुका है। 22,000 से ज्यादा को प्रशिक्षित किया जा चुका है।
गुजरात सूफ कढ़ाई: इसे गुजरात के बनासकांठा और कच्छ क्षेत्रों से उत्पन्न माना जाता है। सूफ कढ़ाई अपनी ज्यामितीय गणना-आधारित रिवर्स कढ़ाई तकनीक के लिए प्रसिद्ध है। यह मेघवाल और मारू समुदायों की सांस्कृतिक विरासत को दर्शाती है।
अहमदाबाद सौदागरी ब्लॉक प्रिंट: यह गुजरात की पुष्प विरासत का एक प्रमाण है। सौदागरी ब्लॉक प्रिंट सागौन की लकड़ी के ब्लॉकों पर उकेरे गए अपने नाजुक पैटर्न के लिए जानी जाती है। यह छीपा-मुस्लिम समुदायों के कुशल कारीगरों की पोषित परंपरा है। इसमें प्रकृति और पक्षियों के रंग, प्रेम को भी देखा जा सकता है।
सूरत सादेली शिल्प: 19वीं शताब्दी की एक बेहतरीन लकड़ी की परंपरा में से है। सादेली शिल्प विभिन्न सामग्रियों से इकट्ठे किए गए जटिल पैटर्न को प्रदर्शित करती है। यह सूरत शहर में पेटीगारा परिवारों की महारथ का एक प्रमाण है।
भरूच की सुजनी बुनाई: इस कला की जड़ें 1860 के दशक से देखने को मिलती हैं। भरूच की सुजनी बुनाई कपास के बादलों से भरे जटिल ज्यामितीय डिजाइनों का उदाहरण देती है, जो सुजनीवाला, चिश्तिया और मिया मुस्तफा के परिवार की विरासत को संरक्षित करती है।