अहमदाबाद. गुजरात उच्च न्यायालय ने अहमदाबाद-मुंबई बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट को लेकर भूमि अधिग्रहण के खिलाफ किसानों की ओर से दायर याचिकाओं पर केन्द्र सरकार से हलफनामा पेश करने को कहा है। मुख्य न्यायाधीश आर. सुभाष रेड्डी और न्यायाधीश वी.एम पंचोली की खंडपीठ ने इस मामले की सुनवाई 28 अगस्त रखी है।
शुक्रवार को सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील आनंद याज्ञिक की ओर से बताया गया कि इस मामले में रेलवे मंत्रालय व राज्य सरकार ने जवाब पेश कर दिया है, लेकिन केन्द्र सरकार ने इस मामले में गुजरात संशोधन अधिनियम 2016 को चुनौती दिए जाने व अन्य मुद्दों को लेकर जवाब पेश नहीं किया है। इसके बाद खंडपीठ ने केन्द्र से इस मामले में जवाब पेश करने को कहा गया।
सूरत के किसानों की ओर से गुजरात संशोधन अधिनियम, 2016 की धारा 10 (ए) 2 (1) की संवैधानिकता को चुनौती दी गई है। इसके तहत राज्य सरकार को भूमि अधिग्रहण से प्रभावित किसानों व भूमिहीनों से मंजूरी, सामाजिक प्रभाव मूल्यांकन व खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने से छूट दी गई है।
गुजरात संशोधन अधिनियम के कुछ प्रावधानों को अवैध ठहराए जाने की गुहार लगाई गई है। इसमें यह दलील दी गई है कि यह संशोधित अधिनियम मुख्य अधिनियम के उद्देश्य के विपरीत है। इसलिए संवैधानिक प्रावधानों व विधायी प्रक्रिया के हिसाब से अधिनियम में संशोधन से पहले इसे राष्ट्रपति के समक्ष विचार के लिए भेजना जरूरी है। इस संशोधित अधिनियम में यह संकेत नहीं मिलता है कि इसे राष्ट्रपति के समक्ष विचार के लिए भेजा गया था। इसलिए इस मामले से जुड़े सभी रिकॉर्ड को न्याालय के समक्ष रखना जरूरी है।
इसी मामले में सूरत के कुछ किसानों ने जमीन अधिग्रहण को लेकर जारी प्राथमिक अधिसूचना को उच्च न्यायालय में चुनौती दी है। इसमें कहा गया कि संबंधित जमीन को संशोधित जंत्री के दर और बाजार भाव से मुआवजा दिया जाए। जब एक प्रोजेक्ट के तहत दो राज्यों में भूनिम अधिग्रहण किया जाना है तो वैसे मामले में राज्य सरकार ने इस मामले में राज्य सरकार की ओर से नहीं बल्कि केन्द्र सरकार की ओर से अधिसूचना जारी करनी चाहिेए। इसलिए राज्य सरकार की अधिसूचना खारिज कर दी जानी चाहिए।
शुक्रवार को सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील आनंद याज्ञिक की ओर से बताया गया कि इस मामले में रेलवे मंत्रालय व राज्य सरकार ने जवाब पेश कर दिया है, लेकिन केन्द्र सरकार ने इस मामले में गुजरात संशोधन अधिनियम 2016 को चुनौती दिए जाने व अन्य मुद्दों को लेकर जवाब पेश नहीं किया है। इसके बाद खंडपीठ ने केन्द्र से इस मामले में जवाब पेश करने को कहा गया।
सूरत के किसानों की ओर से गुजरात संशोधन अधिनियम, 2016 की धारा 10 (ए) 2 (1) की संवैधानिकता को चुनौती दी गई है। इसके तहत राज्य सरकार को भूमि अधिग्रहण से प्रभावित किसानों व भूमिहीनों से मंजूरी, सामाजिक प्रभाव मूल्यांकन व खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने से छूट दी गई है।
गुजरात संशोधन अधिनियम के कुछ प्रावधानों को अवैध ठहराए जाने की गुहार लगाई गई है। इसमें यह दलील दी गई है कि यह संशोधित अधिनियम मुख्य अधिनियम के उद्देश्य के विपरीत है। इसलिए संवैधानिक प्रावधानों व विधायी प्रक्रिया के हिसाब से अधिनियम में संशोधन से पहले इसे राष्ट्रपति के समक्ष विचार के लिए भेजना जरूरी है। इस संशोधित अधिनियम में यह संकेत नहीं मिलता है कि इसे राष्ट्रपति के समक्ष विचार के लिए भेजा गया था। इसलिए इस मामले से जुड़े सभी रिकॉर्ड को न्याालय के समक्ष रखना जरूरी है।
इसी मामले में सूरत के कुछ किसानों ने जमीन अधिग्रहण को लेकर जारी प्राथमिक अधिसूचना को उच्च न्यायालय में चुनौती दी है। इसमें कहा गया कि संबंधित जमीन को संशोधित जंत्री के दर और बाजार भाव से मुआवजा दिया जाए। जब एक प्रोजेक्ट के तहत दो राज्यों में भूनिम अधिग्रहण किया जाना है तो वैसे मामले में राज्य सरकार ने इस मामले में राज्य सरकार की ओर से नहीं बल्कि केन्द्र सरकार की ओर से अधिसूचना जारी करनी चाहिेए। इसलिए राज्य सरकार की अधिसूचना खारिज कर दी जानी चाहिए।