न्यायिक मजिस्ट्रेट सुप्रीत कौर गाबा ने पटेल और एक जिग्नेश वाघसिया को बरी किया, जिन्होंने उस समय जिला कलेक्टर से रैली आयोजित करने की अनुमति ली थी।
क्या था पूरा मामला ?
तत्कालीन जिलाधिकारी ने विधानसभा चुनाव से लगभग एक सप्ताह पहले 3 दिसंबर, 2017 को सूरत शहर के सरथाना इलाके में ‘‘गैर-राजनीतिक’’ रैली की अनुमति दी थी। लेकिन पटेल पर यह आरोप लगाया गया था कि पाटीदार आरक्षण आंदोलन के पूर्व नेता पटेल ने शर्तों का उल्लंघन किया और रैली में ‘‘राजनीतिक’’ भाषण दिया।
कलेक्टर ने पहले ही यह स्पष्ट कर दिया था रैली में कोई भी वक्ता किसी राजनीतिक दल या चुनाव उम्मीदवार के समर्थन या विरोध में नहीं बोलेगा। पटेल जो किसी उस समय कोटा संगठन पाटीदार अनामत आंदोलन समिति का नेतृत्व कर रहे थे उन्होंने रैली में भाषण दिया।
इसपर सूरत पुलिस ने उनके और वघासिया के खिलाफ गुजरात पुलिस अधिनियम की संबंधित धाराओं के तहत प्राथमिकी दर्ज कर ली।
24 जनवरी 2019 को हार्दिक पटेल को गिरफ्तार भी किया गया था। पुलिस ने कोर्ट में चार्ज शीट भी पेश की थी और तब से कोर्ट में सुनवाई की प्रक्रिया चल रही है।
कल गुजरात कोर्ट में हुई सुनवाई के दौरान, पटेल के वकील यशवंतसिंह वाला ने तर्क दिया कि अभियोजन पक्ष ने साबित करने के लिए कोई स्पष्ट सबूत नहीं दिया कि पटेल ने कोई राजनीतिक भाषण दिया या किसी राजनीतिक दल या उम्मीदवार के पक्ष या विपक्ष में बात की थी।
दलीलों पर गौर करने के बाद मजिस्ट्रेट ने पटेल और वाघसिया दोनों को बरी कर दिया। इस फैसले के बाद हार्दिक पटेल और उसके समर्थकों में भारी उत्साह देखने को मिला था।