भगवान नेमिनाथ का मंदिर
शौरीपुर मंदिर जैन समाज के 22 वें तीर्थंकर भगवान नेमिनाथ का मंदिर है। भगवान नेमिनाथ भगवान श्री कृष्ण के चचेरे भाई थे और शौरीपुर नेमिनाथ का जन्म स्थान है। शौरीपुर जैन मंदिर जैन धर्म का एक तीर्थ स्थल है और दिगंबर जैन यहां पूरे देश से बड़ी संख्या में आते हैं। शौरीपुर बटेश्वर से 3 किलोमीटर दूर है और यह अंदर जंगल में जाकर है बटेश्वर में भगवान शिव के 101 मंदिर हैं। यहां यमुना की धारा को इन मंदिरों की दीवार से मोड़ कर उसकी जल धारा की दिशा बदल दी गई है। श्री शौरीपुर बटेश्वर दिगम्बर सिध्दक्षेत्र जैन के 22 वें तीर्थंकर भगवान नेमिनाथ की जन्म कल्याणक भूमि है। माना गया है कि सहस्त्रों वर्ष पूर्व से समृध्य यमुना तट पर शौरीपुर एक विशाल नगरी थी। इस नगरी को महाराज शूरसेन ने बसाया था। उन्हीं की पीढ़ी में महाराज समुद्र विजय हुए। ये 10 भाई थे, उसमें छोटे वसुदेव थे, जिनके पुत्र भगवान श्रीकृष्ण थे। कुन्ती और माद्री महाराज विजय की बहनें थीं, जो कुरुवंशी पाण्डु को ब्याहीं थीं।
ये है इतिहास
चन्द्रवंशी राज यदु के वंश में शूरसेन नामक एक प्रतापी राजा हुए, जिन्होंने इस शौरीपुर नगर को बसाया था। उसका वंश यदवुंश कहलाया। शूर के अंधक वृष्णि पुत्र हुए। अंधक वृष्णि के समुद्र विजय, वासुदेव आदि दस पुत्र और कुंत्री माद्री पुतियां हुईं। समुद्र विजय की रानी शिवा के गर्भ से श्रावण सुंदी 6 को इस शौरीपुर में भगवान नेमिनाथ जिनेन्द्र 22 वें तीर्थंकर का जन्म हुआ था। बताया गया है कि उस समय इन्द्रों ने रत्नों की वृष्टि की थी। भगवान नेमिनथ बचपन से ही संसार में विरक्त प्रकृति के थे। जूनागढ़ के राजा उग्रसेन की पुत्री से उनका विवाह निश्चित हुआ था। विवाह के लिए जाते समय अनेक मूक पशुओं के करुण रुद्रन से दुखी होकर नेमिनाथ जी ने कंकण आदि बधंन तोड़ फेंके और वहीं गिरनाथ पर्वत पर जिल दीक्षा ग्रहण कर दिगम्बर साधु हो गए। तत्पश्चात घोर तापस्या कर भगवान नेमिनाथ ने ज्ञान प्राप्त किया साथ ही अनेक देशों में बिहार कर अहिंसा धर्म का उपदेश दिया। अंत में गिरनार पर्वत पर ही निर्वाण प्राप्त किया। इस प्रकार यह पुयण भूमि भगवान नेमिनाथ कीा निर्वाण की गर्भ जन्म भूमि है।
चन्द्रवंशी राज यदु के वंश में शूरसेन नामक एक प्रतापी राजा हुए, जिन्होंने इस शौरीपुर नगर को बसाया था। उसका वंश यदवुंश कहलाया। शूर के अंधक वृष्णि पुत्र हुए। अंधक वृष्णि के समुद्र विजय, वासुदेव आदि दस पुत्र और कुंत्री माद्री पुतियां हुईं। समुद्र विजय की रानी शिवा के गर्भ से श्रावण सुंदी 6 को इस शौरीपुर में भगवान नेमिनाथ जिनेन्द्र 22 वें तीर्थंकर का जन्म हुआ था। बताया गया है कि उस समय इन्द्रों ने रत्नों की वृष्टि की थी। भगवान नेमिनथ बचपन से ही संसार में विरक्त प्रकृति के थे। जूनागढ़ के राजा उग्रसेन की पुत्री से उनका विवाह निश्चित हुआ था। विवाह के लिए जाते समय अनेक मूक पशुओं के करुण रुद्रन से दुखी होकर नेमिनाथ जी ने कंकण आदि बधंन तोड़ फेंके और वहीं गिरनाथ पर्वत पर जिल दीक्षा ग्रहण कर दिगम्बर साधु हो गए। तत्पश्चात घोर तापस्या कर भगवान नेमिनाथ ने ज्ञान प्राप्त किया साथ ही अनेक देशों में बिहार कर अहिंसा धर्म का उपदेश दिया। अंत में गिरनार पर्वत पर ही निर्वाण प्राप्त किया। इस प्रकार यह पुयण भूमि भगवान नेमिनाथ कीा निर्वाण की गर्भ जन्म भूमि है।