रामानंद ने उन दोनों की समस्या सुनी और हल करने का आश्वासन दिया। गुरु ने काफी सोच विचार किया फिर उन्हें एक उपाय सूझा। उन्होंने अपने शिष्यों से कहा- “तुम दोनों को भगवान की तपस्या करनी है। जिस किसी पर भी भगवान प्रसन्न होंगे और दर्शन देंगे वही विजेता होगा।”
“मुकुल! तुम पूर्व दिशा की ओर जाओगे और सहदेव तुम उत्तर दिशा की ओर।” दोनों गुरु के निर्देशानुसार तपस्या करने चले गए। दोनों शिष्य अपनी अपनी तपस्या में लीन हो गए। युक्ति अनुसार गुरु ने दोनों शिष्यों के पास एक एक घायल पक्षी छोड़ दिया। कुछ दिनों बाद गुरु मुकुल के पास गए और देखा कि वह तपस्या में लीन है,वह घायल पक्षी उसके सामने मृत पड़ा है।जब गुरु ने इसका कारण पूछा, तो मुकुल ने बताया की यदि वह उसका उपचार करने में समय व्यर्थ करता तो उसकी तपस्या का क्या होता! यह सुनकर गुरुदेव मुस्कुरा दिए।
वह बोले- “वत्स! कोई बात नहीं उठो और मेरे साथ चलो।” दोनों सहदेव के पास गए। वहां उन्होंने देखा कि सहदेव उस पक्षी को दाना डाल रहा है और वह पक्षी भी पूर्णत स्वस्थ है। तब गुरू ने मुकुल से कहा कि किसी प्राणी के प्राणों की रक्षा करना ही सबसे बड़ा दया और मानव धर्म है।
प्रस्तुति
हरिहर पुरी
महंत, श्रीमनकामेश्वर मंदिर
हरिहर पुरी
महंत, श्रीमनकामेश्वर मंदिर