गाय बोली – हे कान्हा ! एक बार जब पूतना नाम की राक्षसी ने तुम्हें अपना विषैला दूध पिलाया था, तब भी तुमने उसे अपनी माँ की ही उपमा दी थी। ये मनुष्य व इनके पूर्वजों ने तो प्रतिदिन मेरा ही दूध पिया हैं। ये भले ही मुझे माँ न माने पर मैं तो इन सभी को अपना पुत्र मानती हूं, भला मैं कैसे इन्हें मार सकती हूँ।
भगवान की आंखों में अश्रु आ गए और उन्होंने उन्हीं अश्रु की बूंदों को अंजलि में लेकर ये संकल्प लिया – हे गौ मैया तू महान है, मैं चाहे जिस लोक में रहूँ, पर तेरी रक्षा के लिए मैं सदैव आता रहूंगा। इस पृथ्वी पर एक तू ही है जो मारने वाले को भी अपना पुत्र ही समझती है।