स्थानीय लोगों और यहां आने वाले श्रद्धालुओं की मान्यता है कि रतनगढ़ माता मंदिर की मिट्टी और भभूत में बहुत शक्ति है। इसके कारण जो कोई भक्त बीमार रहता है और यहां आकर भभूत खाता है, उसके सारे रोग दूर हो जाते हैं। इतना ही नहीं मंदिर की मिट्टी खाते ही जहरीले जीवों का जहर भी बेअसर हो जाता है।
मान्यताओं के अनुसार कुंवर बाबा रतनगढ़ वाली माता के भाई हैं, जो अपनी बहन से बेहद स्नेह करते थे। कुंवर महाराज जब जंगल में शिकार करने जाते थे, तब सारे जहरीले जानवर अपना विष बाहर निकाल देते थे, इसीलिए जब किसी इंसान को कोई विषैला जानवर काट लेता है तो उसके घाव पर कुंवर महाराज के नाम का बंधन लगाते हैं। इसके बाद इंसान भाई दूज या दिवाली के दूसरे दिन कुंवर महाराज के मंदिर में दर्शन करता है।
क्या है मंदिर का इतिहास
प्रसिद्ध रतनगढ़ माता के मंदिर का इतिहास काफी पुराना है। स्थानीय लोगों के अनुसार मध्यकाल में मुस्लिम शासक अलाउद्दीन खिलजी ने रतनगढ़ पर कब्जा करने की नीयत से सेंवढा से रतनगढ़ आने वाला पानी बंद करा दिया था, तब रतन सिंह की बेटी मांडूला और उनके भाई कुंवर गंगा रामदेव ने अलाउद्दीन खिलजी के फैसले का कड़ा विरोध किया। इस पर नाराज खिलजी ने वर्तमान मंदिर रतनगढ़ वाली माता के परिसर में बने किले पर आक्रमण कर दिया। बताते हैं कि रतन सिंह की खूबसूरत बेटी मांडुला पर भी खिलजी की बुरी नजर थी।
शिवाजी की निशानी है मंदिर
यह मंदिर छत्रपति शिवाजी महाराज की मुगलों के ऊपर विजय की निशानी है। मान्यता है कि 17वीं सदी में छत्रपति शिवाजी और मुगलों के बीच युद्ध हुआ था और रतनगढ़ वाली माता और कुंवर बाबा ने शिवाजी महाराज के गुरु रामदास को देव गढ़ के किले मे दर्शन दिए थे। शिवाजी महाराज को मुगलों से फिर से युद्ध के लिए प्रेरित किया था, फिर जब पूरे भारत पर राज करने वाले मुगल शासन की सेना वीर मराठा शिवाजी की सेना से टकराई, तो मुगलों को पूरी तरह पराजय का सामना करना पड़ा। मुगल सेना को परास्त करने के बाद शिवाजी ने इस मंदिर को निर्माण कराया था।
रतनगढ़ माता मंदिर के प्रमुख तथ्य
1.यह मंदिर घने जंगलों के बीच किले में स्थित है। यहां देवी मां की मूर्ति के अलावा कुंवर महाराज की प्रतिमा भी स्थापित है।
2. मान्यता है कि इस मंदिर की मिट्टी में इतनी शक्ति है कि इसे खाने से सांप, बिच्छू आदि के जहर का असर नहीं होता है।
3. देवी मां के मंदिर में जो भभूत निकलता है, उसे पानी में मिलाकर रोगी को पिलाने से रोग दूर हो जाते हैं।
4. इंसानों के साथ इस मंदिर में पशुओं का भी इलाज होता है। स्थानीय लोग भाई दूज के दिन पशु को बांधने वाली रस्सी देवी मां के पास रखते हैं। इसके बाद उस रस्सी से दोबारा पशु को बांधते हैं तो वे जल्द ही ठीक हो जाते हैं।
5. मंदिर में दीपावली अगले दिन यानी भाई दूज के दिन विशेष मेले का आयोजन होता है। यहां दूर-दूर से भक्त दर्शन के लिए आते हैं।
6. मान्यता है मंदिर का निर्माण मुगलकाल के दौरान हुआ था। उस वक्त युद्ध के दौरान शिवाजी विंध्याचल के जंगलों मे भूखे-प्यासे भटक रहे थे, तभी कोई कन्या उन्हें भोजन देकर गई थी।
7. स्थानीय लोगों के मुताबिक शिवाजी ने अपने गुरू स्वामी रामदास से उस कन्या के बारे मे पूछा तो उन्होने अपनी दिव्य दृस्टि से देखकर बताया कि वो जगत जननी मां दुर्गा हैं।
8. शिवाजी ने मां की महिमा से प्रभावित होकर यहां देवी मां का मंदिर बनवाया था। मान्यता है कि इस जगह जो भी दर्शन के लिए आता है वो कभी खाली हाथ नहीं जाता है।