कहा गया है कि कभी कभी समय भी कड़े इंतहान लेता है। ऐसा ही कुछ नीलम करवरिया के साथ हुआ। परिस्थितियों ने ऐसे मोड़ पर लाकर खड़ा किया कि उन्हें भी राजनिति में उतरना पड़ा, और वर्ष २०१७ में भाजपा ने प्रयागराज की मेजा विधानसभा से नीलम करवरिया करवरिया को प्रत्याशी बनाया। चुनाव में नीलम करवरिया ने जीत दर्ज की, और पहली बार विधायक बनीं। जबकि एक समय ऐसा था कि कभी करवरिया बंधु के नाम से विख्यात कपिलमुनि करवरिया, उदयभान करवरिया और सूरजभान करवरिया एक साथ सांसद, विधायक और एमएलसी हुआ करते थे, और एक समय ऐसा आया कि अपनी राजनितिक विरासत को संभालने के लिए उदयभान करवरिया की पत्नी नीलम करवरिया को चुनावी मैदान में उतरना पड़ा। फिलहाल करवरिया बंधु की जनता के बीच बनाए गए भरोसे ने नीलम करवरिया का साथ दिया।
वैसे तो राजनिति में कदम भुक्खल महराज के पिता ने ही रख दिया था, लेकिन राजनिति से न पिता को और नहीं इन्हें कुछ विशेष हांसिल हो सका था। वर्ष २००० में भुक्खल महराज के बड़े बेटे कपिलमुनि करवरिया पहली बार कौशांबी के जिला पंचायत अध्यक्ष बने थे। उसके बाद वर्ष इलाहाबाद जिले के बीजेपी के कर्णधार माने जाने वाले उदयभान करवरिया ने वर्ष २००२ में पहली बार जिले के बारा विधानसभा में कमल खिलाया और विधायक बने थे। उसके बाद वर्ष २००५ में सबसे छोटे भाई सूरजभान करवरिया ने भी राजनिति में कदम बढ़ाया और मंझनपुर के ब्लाक प्रमुख बने। इसके उपरांत २००७ में सूरजभान एमएलसी बने। वहीं २००७ में भी भाजपा ने फिर से उदयभान करवरिया को बारा से प्रत्याशी बनाया और उदयभान ने जीत दर्ज कर दोबारा विधायक बन गए। जबकि उदयभान उस चुनाव में इलाहाबाद के अकेले भाजपा विधायक थे। इसके बाद कपिलमुनि करवरिया भी फूलपुर से सांसद बन गए। उस समय जब करवरिया ब्रदर्श एक साथ विधायक, सांसद और एमएलसी थे तो इनके राजनितिक रसूख की चर्चा न सिर्फ इलाहाबाद में थी बल्कि आस पास के जिले में भी इनकी बातें होती थीं। कुछ ही समय बीतने के बाद जवाहर पंडित हत्याकांड में कुछ ऐसा हुआ कि तीनों भइयों को जेल जाना पड़ा।
करवरिया ब्रदर्श के जेल जाने के बाद हजारों समर्थकों और कार्यकर्ताओं में हताशा और निराशा थी, लेकिन उनसभी के विश्वास को कायम रखने के लिए उदयभान ने बड़ा फैसला लिया और अपनी पत्नी नीलम करवरिया को राजनिति में दाखिल किया। नीलम करवरिया ने भी उन जिम्मेदारियों को बखूबी निभाया और पहली बार में ही मेजा से विधायक बनीं। विधायक बनने के बाद नीलम करवरिया ने जनता के सुख दुख और जरूरतों में शामिल होकर उदयभान की राजनितिक व्यवस्था को पूरी तरह से संभाल लिया। यही कारण है कि पद न होने के बाद भी नीलम करवरिया को यमुनापार का सबसे लोकप्रिय नेता माना जा रहा है।