वे इस आस में हैं कि उनके अपने के बारे कोई खबर दे दे, बता दे कि वह जिंदा भी है या नहीं? अगर नहीं तो उसका शव कहां है? सब चुप्पी साधे हुए हैं। प्रशासन सिर्फ जांच में जुटा है। परिजन ऐसी भीषण गर्मी में खाए- पिए बिना सिविल अस्पताल के बाहर बैठे हैं।
बेटी दिखे तो बचा लूं लेकिन नहीं दिखी
राजकोट सिविल अस्पताल के बाहर अपनी लापता बेटी आशा काथड़ की राह देख रहे पिता चंदूभाई के आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे। पूछने पर उन्होंने बताया कि मैं कल से ही टीआरपी गेम जोन पर ही खड़ा था कि मेरी बेटी दिख जाए तो उसे बचा लूं। वह सुबह बिस्किट खिला कर नौकरी पर गई थी। मैं दोपहर को उसे टिफिन देने गया था। वह अमूमन मोबाइल नहीं देती थी। कल उसने कहा कि पापा मोबाइल ले जाओ आपको चाहिए होगा। पौने पांच बजे खबर मिली कि आग लगी है। दौड़कर वहां गया। दरवाजे के पास गया तो वहां जोरदार धमाका हुआ। पीछे गया दौड़कर, दो मिनट में स्वाहा हो गया। कोई नहीं दिखा उसे मैं बचा नहीं सका। आशा अपने परिवार के लिए इस गेम जोन में नौकरी करती थी।
राजभा मेरे घर का रतन, इन्होंने लील लिया
अग्निकांड में एक ही परिवार के पांच लोग लापता हैं जिनमें चार की उम्र 10-12 साल है। पौत्र राजभा व अन्य परिजनों की तलाश कर रहे विरेन्द्र सिंह ने कहा कि राजभा हमारे घर का रतन था। इन लोगों ने उसे लील लिया। परिवार के 8 सदस्य गेम जोन में गए थे। तीन का पता चल गया है पांच लापता हैं। इसमें राजभा भी शामिल है।
24 घंटे हो गए, न जाने दे रहे न जवाब: पथूभा
पथूभा जाड़ेजा ने कहा कि सुबह 4.30 बजे से आया हूं। अभी तक किसी ने कोई जवाब नहीं दिया है कि लापता स्वजन कहां हैं, मृतक कहां हैं। पोस्टमार्टम रूम में भी नहीं जाने देते हैं। कोई अधिकारी, नेता जवाब तक नहीं देता है। राजकोट सिविल अस्पताल में ढूंढ रहे हैं।
मेरे बेटे को कहां ढूंढूं
अपने लाडले बेटे सुरपाल सिंह को गंवाने वाले अनिरुद्ध सिंह जाड़ेजा के आंसू नहीं रुक रहे हैं। राजकोट सिविल अस्पताल के बाहर बेटे की सुध लेने के लिए बैठे अनिरुद्ध को उनके साथी परिजन कंधे पर हाथ रखकर दिलासा दे रहे हैं। वे रोते हुए कहते हैं कि मैं मेरे बेटे को कहां ढूंढूं पता ही नहीं चल रहा है। इससे आगे उनके गले से आवाज ही नहीं निकली।
डीएनए से ही पता चलेगा
उधर, प्रशासन का कहना है कि हादसे में मरे लोगों के शव इतनी बुरी तरह जल चुके हैं कि उनकी पहचान डीएनए के बिना लगभग असंभव है। उनके डीएनए सैंपल और परिवारजनों के रेफरल सैंपल एयर एंबुलेंस के जरिए गांधीनगर फोरेंसिक साइंस लैबोरेटरी (एफएसएल) में पहुंचाए गए हैं, जहां उनका परीक्षण जारी है। प्रशासन नहीं चाहता कि किसी को उसके परिजन के बजाय दूसरे का शव दिया जाए।