राज्य मंत्रिमंडल की बैठक के बाद विधि व संसदीय कार्य मंत्री एच. के. पाटिल ने सरकार के फैसले की जानकारी देते हुए कहा कि हम सीबीआई को जांच के लिए दी गई सामान्य सहमति वापस ले रहे हैं। हम राज्य में सीबीआई के दुरुपयोग पर चिंता व्यक्त कर रहे हैं। हमने जितने भी मामले सीबीआई को भेजे हैं, उनमें से कई में उन्होंने आरोप पत्र दाखिल नहीं किए हैं, जिससे कई मामले लंबित रह गए हैं। पाटिल ने कहा, सीबीआई ने हमारे भेजे गए कई मामलों की जांच करने से भी इनकार कर दिया। ऐसे अनगिनत उदाहरण हैं। वे पक्षपाती हैं, इसलिए हमने यह फैसला लिया।
फैसले का मुडा या वाल्मीकि मामले से संबंध नहीं: पाटिल
पाटिल ने जोर देकर कहा कि हमने मुडा घोटाले के कारण यह फैसला नहीं लिया। पाटिल ने कहा कि मुडा मामले में विशेष अदालत पहले ही लोकायुक्त पुलिस को मुख्यमंत्री के खिलाफ जांच करने का आदेश दे चुकी है, इसलिए इस फैसले का मुडा मामले से कोई संबंध नहीं है। कर्नाटक महर्षि वाल्मीकि अनुसूचित जनजाति विकास निगम के फंड के दुरुपयोग का मामला भी अदालत में है और अदालत ही फैसला करेगी। पाटिल ने कहा कि हमने यह फैसला केवल उन्हें गलत रास्ता अपनाने से बचाने के लिए है। पाटिल ने कहा, अब हम मामले दर मामले इस पर विचार करेंगे और सीबीआई जांच के लिए सहमति देंगे, सामान्य सहमति वापस ले ली गई है। कांग्रेस समेत सभी विपक्षी दल केंद्रीय जांच एजेंसियों ईडी, सीबीआई या आयकर विभाग के दुरुपयोग का आरोप लगाते रहे हैं।
इसलिए जरूरी है राज्य की सहमति
दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना (डीएसपीई) अधिनियम, 1946 की धारा 6 के अनुसार सीबीआई को अपने अधिकार क्षेत्र में जांच करने के लिए संबंधित राज्य सरकारों से सहमति की आवश्यकता होती है। डीएसपीई अधिनियम की धारा-6 के तहत सीबीआई का गठन किया गया है। इसके तहत, डीएसपीई का एक सदस्य यानी सीबीआई संबंधित राज्य सरकार की सहमति के बिना उस राज्य में अपनी शक्तियों और अधिकार क्षेत्र का प्रयोग नहीं कर सकती है। ‘सामान्य सहमति’ होने से सीबीआई राज्य में किसी मामले की जांच कर सकती है।
इन राज्यों ने ली सहमति वापस
केंद्रीय राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने पिछले साल दिसम्बर में संसद को एक प्रश्न के लिखित उत्तर में बताया था कि पंजाब, झारखंड, केरल, राजस्थान, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, मिजोरम, तेलंगाना, मेघालय और तमिलनाडु ने सामान्य सहमति वापस ले ली है। अब कर्नाटक भी इन राज्यों की सूची में शामिल हो गया है।