कुडंली में सूर्य के मजबूत होने से मतलब उसका कुंडली में उच्च होना या फिर स्वग्रही होने से है। लेकिन कई बार देखा गया है कि कुंडली में सूर्य उच्च, स्वग्रही होने के बाद भी जातक पूर्ण लाभ नहीं मिल पाता है। ऐसे में भाव, भावेश, कारक पर विचार करना चाहिए। किसी की कुंडली में सूर्य उच्च यानी मेष राशि और स्वग्रही यानी सिंह राशि में होने के बाद जरूरी नहीं है कि उसे अच्छी सरकारी नौकरी ही मिल जाए, ये जरूरी नहीं कि उसके लिए राजनीति का क्षेत्र अच्छा हो। अगर सूर्य छठे, 8वें, या फिर 12वें भाव में मजबूत भी तो भी उतना अच्छ परिणाम नहीं पाता।
यही नहीं किसी की कुंडली में बुध आदित्य योग बनना बहुत अच्छा माना गया हो, लेकिन अगर वहां बुध की स्थिति सही न तो भी उसका पूर्ण फल नहीं मिल पाएगा। यही नहीं उच्च के सूर्य के साथ अगर राहु, केतु, शनि, बैठा हो तो सूर्य प्रभावी नहीं होता। कई बार तो यह भी देखने को मिला है कि उच्च के सूर्य की अपेक्षा नीच का सूर्य नीच भंग होने से उससे अच्छा परिणाम देता है। तीसरे, 9वें, 10वें और 11वें भाव में सूर्य का मजबूत होकर बैठना अच्छा परिणाम देता है।
कुंडली में सूर्य के अशुभ होने पर नेत्र विकार, कुष्ठ, चर्म रोग, क्षय, अतिसार सहित कई रोग-दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। ऐसे में सूर्य को मजबूत करने, अच्छा परिणाम पाने के लिए आदित्य हृदय स्त्रोत का पाठ करना सबसे लाभदायक होता है। यही नहीं सूर्य के दोष को शांत करने के लिए माणिक्य धारण करें, साथ ही उसके मंत्र का 7 हजार जाप कराएं। साथ ही हर रोज उगते सूर्य को अर्घ्य दें और हाथ जोड़कर इस मंत्र का पाठ करें। साथ ही सूर्य नमस्कार करने से भी सूर्य देव प्रसन्न होते हैं।
आदित्यस्य नमस्कारं ये कुर्वन्ति दिने दिने।
जन्मान्तरसहस्रेषु दारिद्रयं नोपजायते।।