नई दिल्ली। जिस उम्र में बच्चे अपने मां-बाप से अपनी मांग पूरी करवाने की जिद करते हैं, उस उम्र में पाकिस्तान की एक लड़की ने दूसरी लड़कियों के लिए हक लड़ाई शुरु कर दी। जिसका जवाब तालिबानी आतंकवादियों ने गोलियों से दी। हम बात करे रहे हैं मलाला यूसुफजई की। जिसे सबसे कम 17 वर्ष की उम्र में शांति का नोबल मिला प्रदान किया गया।
कौन हैं मलाला यूसुफजई
12 जुलाई, 1997 को पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वाह प्रांत के स्वात में जन्मी मलाला के संघर्ष की कहानी उस वक्त शुरु होती है, जब वो आठवीं में पढ़ती थी। 2007 से 2009 तक तालिबान ने स्वात घाटी पर कब्जा कर लिया था। तालिबानियों के डर से घाटी के लोगों ने लड़कियों को स्कूल भेजना बंद कर दिया और 400 से ज्यादा स्कूल बंद हो गए। जिसमें मलाला का स्कूल भी शामिल था।
href="http://www.patrika.com/news/asia/nasa-names-asteroid-after-pak-s-malala-yousafzai-1020509/" target="_blank" rel="noopener">अंतरिक्ष में दर्ज हुआ पाकिस्तान की मलाला यूसुफजई का नाम
11 साल की उम्र में दिया पहला भाषण
पढ़ने में तेज मलाला ने ने अपने पिता जियाउद्दीन यूसुफजई से दूसरी जगह एडमिशन कराने की गुजारिश की। इसके बाद मलाला ने पिता उसे पेशावर लेकर गए। यहीं मलाला ने सिर्फ 11 साल की उम्र में नेशनल मीडिया के सामने एक मशहूर भाषण दिया जिसका शीर्षक था हाउ डेयर द तालिबान टेक अवे माय बेसिक राइट टू एजुकेशन? इस घटना ने मलाला की जिंदगी बदल कर रख दी।
यूएन में भी दे चुकी हैं भाषण, देखें वीडियो
‘गुल मकई’ बन उजागर की तालिबान की करतूत
तालिबान ने मलाला और उसकी सहेलियों का बचपना और स्कूल छीन लिया था। मलाला को ये बात इतनी चुभ गई कि उन्होंने 2009 से दूसरे नाम ‘गुल मकई’ से बीबीसी के लिए एक डायरी लिखी। जिसमें उन्होंने स्वात घाटी में तालिबान के कुकृत्यों की परत दर परत खोल कर रख दी। इसमें उसने जिक्र किया था कि टीवी देखने पर रोक के चलते वह अपना पसंदीदा भारतीय सीरियल राजा की आएगी बारात नहीं देख पाती थी। इससे तालिबानी बौखला उठे। कुछ दिनों बाद दिसंबर 2009 में मलाला के पिता ने ये खुलासा कर दिया कि मलाला ही ‘गुल मकई’ हैं।
मलाला की डायरी का ये है मजमून
डायरी लिखने की शौकीन मलाला ने अपनी डायरी में लिखा था, ‘आज स्कूल का आखिरी दिन था इसलिए हमने मैदान पर कुछ ज्यादा देर खेलने का फ़ैसला किया। मेरा मानना है कि एक दिन स्कूल खुलेगा लेकिन जाते समय मैंने स्कूल की इमारत को इस तरह देखा जैसे मैं यहां फिर कभी नहीं आऊंगी।’

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जब आतंकियों ने पूछा…कौन है मलाला
अपनी डायरी से मलाला ने तालिबानियों ने नाक में दम कर दिया। बौखलाए तालिबानियों ने 9 अक्टूबर, 2012 के दिन आतंकियों ने मलाला की स्कूल बस पर कब्जा कर लिया। बस में चढ़ते ही आतंकियों ने पूछना शुरु किया कि मलाला कौन है? सभी बच्चे चुप होकर मलाला की ओर देखने लगे। सभी आतंकी ने मलाला के सिर पर एक गोली मार दी। गंभीर रूप से घायल मलाला को इलाज के लिए ब्रिटेन ले जाया गया। यहां उन्हें क्वीन एलिजाबेथ अस्पताल में भर्ती कराया गया। पूरी दुनिया में मलाला के स्वस्थ्य होने की प्रार्थना की गई और आखिरकार मलाला वहां से स्वस्थ होकर अपने देश लौट गईं।
पूरी दुनिया ने दिया सम्मान
मलाला जब स्वस्थ होकर स्वदेश पहुंची तबतक उन्हें पूरी दुनिया जानने लगी थी। उन्हें कई तरह से पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। 19 दिसम्बर 2011 को पाकिस्तानी सरकार द्वारा ‘पाकिस्तान का पहला युवाओं के लिए राष्ट्रीय शांति पुरस्कार मलाला युसुफजई को मिला। नीदरलैंड के किड्स राइट्स संगठन ने भी अंतर्राष्ट्रीय बाल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया। 2013 में उन्हें वूमन ऑफ द ईयर अवार्ड से भी नवाजा गया था। इसके अलावा भी कई देशों ने मलाला को सम्मानित किया।
यूएन ने मलाला के जन्मदिन को बनाया मलाला दिवस
लड़कियों की शिक्षा के अधिकार के लिए लड़ने वाली मलाला के नाम पर संयुक्त राष्ट्र संघ ने उनके 16वें जन्मदिन पर 12 जुलाई को मलाला दिवस घोषित कर दिया। मलाला ने वर्ष 2013 में एक किताब ‘आय एम मलाला’ भी लिखी थी।
2014 में मिला दुनिया का सबसे बड़ा सम्मान
10 दिसंबर 2014 के दिन मलाला को दुनिया के सबसे बड़े पुरस्कार शांति के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। नॉर्वे में आयोजित इस कार्यक्रम में भारत के कैलाश सत्यार्थी के साथ संयुक्त रुप से नोबले पुरस्कार प्रदान किया गया। इस तरह मलाला सबसे कम उम्र में नोबेल प्राप्त करने वाली विजेता बन गईं।
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