सरप्लस बिजली,सबको बिजली राजनीतिक “जुमला”
यूपी के 71% ग्रामीण और 19% शहरी घरों तक नहीं पहुंची बिजली,AIPEF ने की केंद्र से ऊर्जा नीति में परिवर्तन की मांग.
वाराणसी. ऑल इण्डिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन (AIPEF) ने केंद्र सरकार के सबको 24 घण्टे बिजली आपूर्ति के दावे पर सवाल उठाया है। साथ ही निजी क्षेत्र पर अति निर्भरता की ऊर्जा नीति पर पुनर्विचार और बदलाव की मांग की है । फेडरेशन ने केन्द्रीय ऊर्जा मंत्री पीयूष गोयल के देश में बिजली सरप्लस होने के दावे को भी भ्रामक करार देते हुए कहा है कि आज भी 30 करोड़ लोगों के पास बिजली कनेक्शन ही नहीं है जो दुनिया के किसी भी देश की तुलना में सबसे बड़ी संख्या है। ऐसे में सरप्लस बिजली और सबको बिजली मुहैय्या कराना भी राजनीतिक जुमला ही लगता है।
देश के आठ करोड़ घरों में नहीं है बिजली कनेक्शन
फेडरेशन के चेयरमैन शैलेन्द्र दुबे ने पत्रिका को बताया कि केंद्रीय विद्युत् मंत्रालय का यह कहना पूरी तरह गलत है कि 2015-16 के अंत तक देश बिजली के मामले में सरप्लस हो जायेगा । उन्होंने बताया कि केंद्रीय विद्युत् प्राधिकरण की मई 2016 की रिपोर्ट के अनुसार अभी लगभग 8 करोड़ घर बिजली की पहुँच से दूर हैं जिनमे 6 करोड़ से अधिक ग्रामीण क्षेत्र के घर हैं । उन्होंने बताया कि रिपोर्ट के अनुसार यूपी के 71 प्रतिशत ग्रामीण और 19 प्रतिशत शहरी घरों तक अभी बिजली नहीं पहुंची है । इसी तरह बिहार के 87प्रतिशत ग्रामीण और 33प्रतिशत शहरी , झारखण्ड के 12प्रतिशत शहरी और 63प्रतिशत ग्रामीण, मध्य प्रदेश के 07प्रतिशत शहरी और 43प्रतिशत ग्रामीण, असम के 16प्रतिशत शहरी और 66प्रतिशत ग्रामीण तथा ओडिशा के 17प्रतिशत शहरी और 52प्रतिशत प्रतिशत ग्रामीण घर बिना बिजली कनेक्शन के हैं । कई अन्य प्रान्तों का हाल कमोबेश ऐसा ही है । ऐसे में केंद्र और राज्य सरकारों का यह कहना कि देश बिजली के मामले में सरप्लस हो गया है और इसी आधार पर सबको 24 घण्टे बिजली देने का किया जा रहा दावा पूरी तरह भ्रामक है।
निजी घरानों को लाभ देने के कारण गुजरात, महाराष्ट्र में बंद हो रहे सरकारी बिजली घर
उन्होंने कहा कि गुजरात, महाराष्ट्र, हरियाणा ,पंजाब जैसे कुछ राज्यों ने निजी घरानों के साथ जरूरत से अधिक बिजली क्रय करार कर लिए हैं। इसके परिणाम स्वरुप इन राज्यों प्रान्तों में बिजली सरप्लस हो गयी है। निजी घरानों को लाभ देने के लिए इन राज्यों में सरकारी क्षेत्र के बिजली घर बंद किये जा रहे हैं। इसके उलट यूपी और बिहार जैसे राज्यों में बिजली कटौती हो रही है तो यह पूरी तरह ऊर्जा नीति की विफलता है जिस पर पुनर्विचार कर आम उपभोक्ता की जरूरत के हिसाब से ऊर्जा नीति में बदलाव किया जाना चाहिए।
देश के एक चौथाई घरों में कनेक्शन नही
दुबे का मानना है कि 2012-13 में देश में 8.7प्रतिशत बिजली की कमी थी जो 2015-16 में 2.1प्रतिशत रह जाएगी। लेकिन यह आंकड़े केवल उन घरों के आधार पर निकाले गए हैं जिनके पास बिजली कनेक्शन है जबकि देश के एक चौथाई लोग अभी भी बिना बिजली कनेक्शन के हैं। ऐसे में सरकार की पहली प्राथमिकता इन घरों तक बिजली पहुंचाना होना चाहिए तभी बिजली की मांग और उपलब्धता का वास्तविक अंतर पता चलेगा।
राज्यों को मिले सस्ती बिजली खरीदने का हक
फेडरेशन की यह मांग भी है कि निजी घरानों के साथ बिजली खरीद के 25-25 साल के लिए किये गए करारों के पुनरीक्षण का अधिकार बिजली वितरण कंपनियों को दिया जाना चाहिए जिससे राज्य महंगी बिजली सरेंडर कर पॉवर एक्सचेंज या अन्य राज्य से मिल रही सस्ती बिजली खरीद सकें और उन्हें पी पी ए के तहत निजी कम्पनियों को फिक्स चार्ज न देना पड़े । बता दें कि पीपीए के तहत काफी महंगी बिजली खरीद कर बिजली वितरण कम्पनियों को काफी सस्ते दाम पर यह बिजली घरेलू और ग्रामीण उपभोक्ताओं को देनी पड़ती है जिसमे औसतन 4 रुपये प्रति यूनिट तक की क्षति होती है । इस कारण आर्थिक रूप से दिवालिया हो रही बिजली वितरण कम्पनियां कई बार बाज़ार में सस्ती बिजली उपलब्ध होते हुए भी उसे खरीदने में सक्षम नही रहतीं ।
Hindi News / Varanasi / सरप्लस बिजली,सबको बिजली राजनीतिक “जुमला”