Sarveshwari Mishra
वाराणसी. शिव की क्रोधाग्नि का विग्रह रूप कहे जाने वाले कालभैरव का अवतरण मार्गशीर्ष कृष्णपक्ष की अष्टमी को हुआ। इनकी पूजा करने से घर में नकारात्मक ऊर्जा, जादू-टोने, भूत-प्रेत आदि का भय नहीं रहता। शिव पुराण में कहा गया है कि कालभैरव परमात्मा शंकर के ही रूप हैं। कालभैरव बनारस के कोतवाल कहे जाते हैं। इनके कई रूप हैं। जो बनारस में कई जगह स्थापित हैं। इनके अलग अलग नाम हैं। कालभैरव, आसभैरव, बटुक भैरव, आदि भैरव, भूत भैरव, लाट भैरव, संहार भैरव, क्षत्रपाल भैरव। कहा जाता है कि रविवार और मंगलवार को इनका दर्शन करने पर सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
बनारस में आने वाला कोई भी अधिकारी सबसे पहले इनका दर्शन किए बिना इनके आशीर्वाद के कोई काम शुरू नहीं करता। ऐसा माना गया है कि बनारस में रहना है तो बनारस के कोतवाल का दर्शन करना अच्छा होता है। और तो और भौरो नाथ के लिए प्रसाद सोचना नहीं होता ये ऐसे देवता हैं जिन्हें सब पसंद है। चाहे वह टाॅफी, बिस्किट, मिठाई या दारू से लेकर गांजा भांग। आज भी ये काशी के कोतवाल के रूप में पूजे जाते हैं। इनका दर्शन किये वगैर विश्वनाथ का दर्शन अधूरा रहता है।
भैरोनाथ के रूप इन जगहों पर हैं स्थापित
कालभैरव विशेश्वरगंज, आस भैरव नीचीबाग, बटुक भैरव व आदि भैरव कमच्छा, भूत भैरव नखास, लाट भैरव कज्जाकपुरा, संहार भैरव मीरघाट और क्षत्रपाल भैरव मालवीय मार्केट में स्थित है।
कैसे बने काशी के कोतवाल
कथा के अनुसार एक बार देवताओं ने ब्रह्मा और विष्णु से पूछा कि जगत में सबसे श्रेष्ठ कौन है तो स्वाभाविक ही उन्होंने अपने को श्रेष्ठ बताया। देवताओं ने वेदशास्त्रों से पूछा तो उत्तर आया कि जिनके भीतर चराचर जगत, भूत, भविष्य और वर्तमान समाया हुआ है अनादि अंनत और अविनाशी तो भगवान रूद्र ही हैं।
वेद शास्त्रों से शिव के बारे में यह सब सुनकर ब्रह्मा ने पांचवें मुख से शिव के बारे में भला-बुरा कह दिया। इससे वेद दुखी हुए। इसी समय एक दिव्यज्योति के रूप में भगवान रूद्र प्रकट हुए। ब्रह्मा ने कहा कि हे रूद्र, तुम मेरे ही सिर से पैदा हुए हो।
अधिक रुदन करने के कारण मैंने ही तुम्हारा नाम रूद्र रखा है अतः तुम मेरी सेवा में आ जाओ, ब्रह्मा के इस आचरण पर शिव को भयानक क्रोध आया और उन्होंने भैरव को उत्पन्न करके कहा कि तुम ब्रह्मा पर शासन करो।
उन दिव्य शक्ति संपन्न भैरव ने अपने बाएं हाथ की सबसे छोटी अंगुली के नाखून से शिव के प्रति अपमान जनक शब्द कहने वाले ब्रह्मा के पांचवे सर को ही काट दिया। जिससे उन्हें ब्रह्म हत्या दोष लग गया।
ऐसा देखते हुए शिव ने भैरव से काशी में प्रस्थान करने को कहा। जहां भैरव को ब्रह्म हत्या से मुक्ति मिली। रूद्र ने इन्हें काशी का कोतवाल नियुक्त किया। आज भी ये काशी के कोतवाल के रूप में पूजे जाते हैं। इनका दर्शन किये वगैर विश्वनाथ का दर्शन अधूरा रहता है।
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