scriptकड़े संघर्ष के बाद कल्याणजी-आनंदजी को मिली थी पहचान | Kalyanji-Anandji tasted success after hard struggle | Patrika News
खास खबर

कड़े संघर्ष के बाद कल्याणजी-आनंदजी को मिली थी पहचान

आनंद जी का जन्म 2 मार्च 1933 को हुआ, जबकि उनके बड़े भाई कल्याणजी वीर जी शाह का जन्म 30 जून 1928 को हुआ था

Mar 01, 2016 / 11:52 pm

जमील खान

Kalyanji Anandji

Kalyanji Anandji

मुंबई। हिन्दी फिल्मों के मशहूर संगीतकार कल्याणजी आनन्दजी को अपने जमाने के अन्य संगीतकारों की तरह ही फिल्म इंडस्ट्री में जगह बनाने के लिए कड़ा संघर्ष करना पड़ा था। आनंद जी का जन्म 2 मार्च 1933 को हुआ, जबकि उनके बड़े
भाई कल्याणजी वीर जी शाह का जन्म 30 जून 1928 को हुआ था। बचपन के दिनों से ही कल्याण जी और आंनद जी संगीतकार बनने का सपना देखा करते थे। हालांकि उन्होंने किसी उस्ताद से संगीत की शिक्षा नहीं ली थी।

अपने इसी सपने को पूरा करने के लिए कल्याण जी मुंबई आ गए, जहां उनकी मुलाकात संगीतकार हेमंत कुमार से हुई। कल्याण जी गायक संगीतकार हेमंत कुमार के सहायक के तौर पर काम करने लगे। बतौर संगीतकार सबसे पहले 1958 मे
प्रदर्शित फिल्म ‘सम्राट चंद्रगुप्त में उन्हें संगीत देने का मौका मिला, लेकिन फिल्म की असफलता के कारण वह कुछ खास पहचान नहीं बना पाए।

अपना वजूद तलाशते कल्याण जी को बतौर संगीतकार पहचान बनाने के लिए लगभग 2 वर्ष तक फिल्म इंडस्ट्री में संघर्ष करना पड़ा। इस दौरान उन्होंने कई बी और सी ग्रेड की फिल्में भी की। वर्ष 1960 में उन्होंने अपने छोटे भाई आनंद जी को भी मुंबई बुला लिया। इसके बाद कल्याणजी ने आंनद जी के साथ मिलकर फिल्मों में संगीत देना शुरू किया। वर्ष 1960 में ही प्रदर्शित फिल्म ‘छलिया’ की कामयाबी से बतौर संगीतकार कुछ हद तक कल्याणजी-आनंद जी अपनी पहचान बनाने में सफल हो गए।

इस फिल्म में उनके संगीत से सजे गीत ‘डम डम डिगा डिगा’, ‘छलिया मेरा नाम’ श्रोताओं के बीच आज भी लोकप्रिय हैं। वर्ष 1965 में प्रदर्शित संगीतमय फिल्म ‘हिमालय की गोद में’ की सफलता के बाद कल्याणजी-आनंद जी शोहरत की
बुलंदियों पर जा पहुंचे। सिने करियर के शुरुआती दौर में उनकी जोड़ी निर्माता-निर्देशक मनोज कुमार के साथ बहुत जमी। मनोज कुमार ने सबसे पहले इस संगीतकार जोड़ी से फिल्म ‘उपकार’ के लिए संगीत देने की पेशकश की। इस फिल्म में इंदीवर रचित गीत ‘कस्मे वादे प्यार वफा के’ के लिए दिल को छू लेने वाला संगीत देकर कल्याणजी-आनंद जी ने श्रोताओं को भावविभोर कर दिया।

इसके अलावा मनोज कुमार की ही फिल्म ‘पूरब और पश्चिम’ के लिए भी कल्याणजी-आनंद जी ने ‘दुल्हन चली वो पहन चली तीन रंग की चोली’ और ‘कोई जब तुम्हारा हृदय तोड़ दे’ जैसा सदाबहार संगीत देकर अलग ही समां बांध दिया। वर्ष 1970 में विजय आनंद निर्देशित फिल्म ‘जॉनी मेरा नाम’ में ‘नफरत करने वालो के सीने मे प्यार भर दू’, ‘पल भर के लिए कोई मुझे प्यार कर ले’ जैसे रूमानी गीतों को संगीत देकर कल्याणजी-आंनद जी ने श्रोताओं का दिल जीत लिया।

मनमोहन देसाई के निर्देशन में फिल्म ‘सच्चा-झूठा’ के लिए उन्होंने बेमिसाल संगीत दिया। ‘मेरी प्यारी बहनियां बनेगी दुल्हनियां’ को आज भी शादी के मौके पर सुना जा सकता है। कल्यणजी-आनंद जी के पसंदीदा निर्माता-निर्देशकों में प्रकाश मेहरा, मनोज कुमार, फीरोज खान आदि प्रमुख रहे। उनके सिने कैरियर पर नजर डालने पर पता लगता है कि सुपरस्टार अमिताभ बच्चन पर फिल्माए उनके गीत काफी लोकप्रिय हुआ करते थे।

वर्ष 1989 मे सुल्तान अहमद की फिल्म ‘दाता’ में उनके कर्णप्रिय संगीत से सजा यह गीत ‘बाबुल का ये घर बहना एक दिन का ठिकाना है’ आज भी श्रोताओं की आंखों को नम कर देता है। वर्ष 1968 मे प्रदर्शित फिल्म ‘सरस्वती चंद्र’ के लिए कल्याणजी-आनंद जी को सर्वश्रेष्ठ संगीतकार के राष्ट्रीय पुरस्कार के साथ ही फिल्म फेयर पुरस्कार भी दिया गया।

इसके अलावा 1974 में प्रदर्शित ‘कोरा कागज’ के लिए भी उन्हें सर्वश्रेष्ठ संगीतकार का फिल्म फेयर पुरस्कार दिया गया। कल्याणजी-आनंद जी ने अपने सिने कैरियर में लगभग 250 फिल्मों को संगीतबद्ध किया । वर्ष 1991 में प्रदर्शित फिल्म
‘प्रतिज्ञाबद्ध’ इस संगीतकार जोड़ी की आखिरी फिल्म थी। कल्याणजी 24 अगस्त 2000 को इस दुनिया को अलविदा कह गए। अपने जीवन के 80 बसंत देख चुके आंनद जी इन दिनों बॉलीवुड में सक्रिय नहीं हैं।

Hindi News / Special / कड़े संघर्ष के बाद कल्याणजी-आनंदजी को मिली थी पहचान

ट्रेंडिंग वीडियो