हिंदू धर्मग्रंथों में धर्म के साथ साथ अर्थ, काम तथा मोक्ष को भी महत्व दिया गया है। यहां काम को भी नकारात्मक रूप में न मान कर सृजन के लिए आवश्यक माना गया है। हालांकि साथ ही कहा गया है काम को योग के समान ही संयम और धैर्य से साधना चाहिए। यही कारण है कि प्राचीन भारत में कामदेव की पूजा की जाती थी तथा मदनोत्सव मनाया जाता था, जो कई मायनों में आज के वेलैंटाइन डे से भी ज्यादा उदार, मनोहारी और अद्भुत था।
क्यों हुआ था कामदेव का विनाश पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान महादेव की जिस तपस्या को विश्व में कोई नहीं तोड़ सका तब काम भाव के स्वामी कामदेव ने ही इस जिम्मेदारी को अपने हाथ में लिया और उनकी तपस्या तोड़ दी। इससे
भगवान शिव का
मां पार्वती के साथ विवाह तो हो गया परन्तु कामदेव को रूद्र के क्रोध की अग्नि में भस्म होना पड़ा। बाद में कामदेव की पत्नी रति की प्रार्थना पर भगवान शंकर द्वारा कामदेव को भाव रूप में प्रकृति और जीवों में वास करने की गति नियत की गई।
प्रकृति के इन स्थानों को बनाया गया कामदेव का स्थान कामदेव ने वापिस अपना शरीर पाने के लिए बहुत प्रयास किया परन्तु भगवान शिव के शाप को अकाट्य होने के कारण ऐसा नहीं हो पाया और देवताओं ने उन्हें बिना शरीर के ही रहने का वरदान दिया। मुद्गल पुराण में लिखा है:
यौवनं स्त्री च पुष्पाणि सुवासानि महामते:।
गानं मधुरश्चैव मृदुलाण्डजशब्दक:।।
उद्यानानि वसन्तश्च सुवासाश्चन्दनादय:।
सङ्गो विषयसक्तानां नराणां गुह्यदर्शनम्।
वायुर्मद: सुवासश्र्च वस्त्राण्यपि नवानि वै।
भूषणादिकमेवं ते देहा नाना कृता मया।।
इस श्लोक के अनुसार इन स्थानों पर कामदेव वास करते हैं यानी इनके संपर्क में कामनाएं जागती हैं। ये हैं:
यौवन, स्त्री, सुंदर फूल, गीत, परागकण या फूलों का रस, पक्षियों की मीठी आवाज, सुंदर बाग-बगीचा, बसन्त ऋतु, चन्दन, काम वासनाओं में लिप्त मनुष्य की संगति, छुपे (गुप्त) अंगों के दर्शन, सुहानी और मन्द हवा, रहने का सुन्दर स्थान, आकर्षक कपड़े और सुंदर आभूषण धारण किए शरीरों में।
स्त्री शरीर में भी रहता है कामदेव का वास यही नहीं माना जाता है कि कामदेव स्त्रियों के शरीर में साक्षात बसते हैं। हर दिन उनका स्त्री शरीर के अलग-अलग अंगों यथा पलक, भौं, ललाट आदि पर वास होता है जिनकी व्याख्या ज्योतिष शास्त्र के कई ग्रंथों में की गई है। इसीलिए कहा गया है संयमी तथा ब्रह्मचारियों को इन स्थानों तथा स्त्रियों से दूर रहना चाहिए अन्यथा कमजोर मनोवृत्ति वाले पुरुषों का पतन हो सकता है।
अंगों में रहने का यह है रहस्य इतिहास कथाओं में कामदेव के नयन, भौं और माथे का विस्तृत वर्णन मिलता है। उनके नयनों को बाण या तीर की संज्ञा दी गई है। शारीरिक रूप से नयनों का प्रतीकार्थ ठीक उनके शस्त्र तीर के समान माना गया है। उनकी भवों को कमान का संज्ञा दी गई है। ये शांत होती हैं, लेकिन इशारों में ही अपनी बात कह जाती हैं। इन्हें किसी संग या सहारे की भी आवश्यक्ता नहीं होती। कामदेव का माथा धनुष के समान है, जो अपने भीतर चंचलता समेटे होता है लेकिन यह पूरी तरह स्थिर होता है। माथा पूरे शरीर का सर्वोच्च हिस्सा है, यह दिशा निर्देश देता है।