गणेश चुतर्थी: करें इन खास मंत्रो का जाप, फिर देंखे चमत्कार
विघ्नों को दूर करने वाले विघ्नहर्ता, बुद्धि प्रदाता, लक्ष्मी प्रदाता गणेश को प्रसन्न करने का इससे अच्छा समय दूसरा नहीं है
नई दिल्ली। विघ्नों को दूर करने वाले शिवपुत्र श्री गणेशजी का प्राकट्य भाद्रपद की शुक्ल चतुर्थी को हुआ था। इस वर्ष सोमवार, 5 सितंबर 2016 को चतुर्थी को मनाई जाएगी। विघ्नहर्ता, बुद्धि प्रदाता, लक्ष्मी प्रदाता गणेश को प्रसन्न करने का इससे अच्छा समय दूसरा नहीं है। इस अवसर पर मनोकामना पूर्ण करने के लिए जानें कुछ खास मंत्र जिससे आप अपने सभी परेशानी को दूर कर सकते हैं ।
श्वेतार्क- गणेश को पूर्वाभिमुख हो रक्त वस्त्र आसन प्रदान कर यथाशक्ति पंचोपचार या षोडषोपचार पूजन कर लड्डू या मोदक का नेवैद्य लगाकर ‘ॐ गं गणपतये नम:’ की 21, 51 या 108 माला कर उपलब्ध साधनों से या केवल घी से 1 माला आहुति दें। विवाह कार्य या पारिवारिक समस्या के लिए उपरोक्त तरीके से पूजन कर ‘ॐ वक्रतुंडाय हुं’ का प्रयोग करें। माला मूंगे की हो। आकर्षण वशीकरण के लिए लाल हकीक की माला का प्रयोग करें।
विघ्नों को दूर करने के लिए श्वेतार्क गणपति पर ‘ॐ गं ग्लौं गणपतये विघ्न विनाशिने स्वाहा’ की 21 माला जपें।
शत्रु नाश हेतु नीम की जड़ के गणपति के सामने ‘हस्ति पिशाचि लिखे स्वाहा’ का जप करें। लाल चंदन, लाल रंग के पुष्प चढ़ाएं।
शक्ति विनायक गणपति : इनकी आराधना करने से व्यक्ति सर्वशक्तिमान होकर उभरता है। उसे जीवन में कोई कमी महसूस नहीं होती है। कुम्हार के चॉक की मिट्टी से अंगूठे के बराबर मूर्ति बनाकर उपरोक्त तरीके से पूजन करें तथा 101 माला ‘ॐ ह्रीं ग्रीं ह्रीं’ की जप कर हवन करें। नित्य 11 माला करें तथा चमत्कार स्वयं देख लें।
लक्ष्मी विनायक गणेश : इनका भी प्रयोग उपरोक्त तरीके से कर निम्न मंत्र जपें- ‘ॐ श्रीं गं सौम्याय गणपतये वरवरद सवज़्जनं मे वशमानय स्वाहा।’ 444 तर्पण नित्य करने से गणेशजी की कृपा शीघ्र प्राप्त होती है। कर्ज में फंसेे मानव को दैवकृपा ही इस कष्ट से मुक्ति दिला सकती है। निम्न मंत्र की 108 माला गणेश चतुर्थी पर कर यथाशक्ति हवन कर नित्य 1 माला करें, शीघ्र ही इस जंजाल से मुक्ति मिलेगी।
श्रीगणेश गायत्री मंत्र : –
एकदंताय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात्।।
महाकर्णाय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात्।।
गजाननाय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात्।।
गणेशद्वादशनामस्तोत्रम्
* श्रीगणेशाय नम: *
।।शुक्लांम्बरधरं देवं शशिवर्णं चतुर्भुजम्।
प्रसन्नवदनं ध्यायेत्सर्वविघ्नोपशांतये।।1।।
अभीप्सितार्थसिद्ध्यर्थं पूजेतो य: सुरासुरै:।
सर्वविघ्नहरस्तस्मै गणाधिपतये नम:।।2।।
गणानामधिपश्चण्डो गजवक्त्रस्त्रिलोचन:।
प्रसन्न भव मे नित्यं वरदातर्विनायक।।3।।
सुमुखश्चैकदन्तश्च कपिलो गजकर्णक:
लम्बोदरश्च विकटो विघ्ननाशो विनायक:।।4।।
धूम्रकेतुर्गणाध्यक्षो भालचंद्रो गजानन:।
द्वादशैतानि नामानि गणेशस्य य: पठेत्।।5।।
विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी विपुलं धनम्।
इष्टकामं तु कामार्थी धर्मार्थी मोक्षमक्षयम्।।6।।
विद्यारभ्मे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा
संग्रामे संकटेश्चैव विघ्नस्तस्य न जायते।।7।।