अगर दो दिल कहीं भी मिल गए हैं
जमाने को शिकायत हो गई है
अंजाम-ए-वफा ये है जिस ने भी की मोहब्बत
मरने की दुआ मांगी, जीने की सजा पाई
अब तक खबर न थी कि मोहब्बत गुनाह है
अब जान कर गुनाह किए जा रहा हूं मैं
अब तो मिल जाओ हमें तुम कि तुम्हारी खातिर
इतनी दूर आ गए दुनिया से किनारा करते
आगाज-ए-मोहब्बत का अंजाम बस इतना है
तब दिल में तमन्ना थी अब दिल ही तमन्ना है
इक रोज मिल गए थे सर-ए-रह-गुजर कहीं
फिर दिल ने बैठने न दिया उम्र भर कहीं
इक लफ्ज-ए-मोहब्बत का अदना ये फसाना है
सिमटे तो दिल-ए-आशिक, फैले तो जमाना है
इलाज अपना कराते फिर रहे हो जाने किस किस से
मोहब्बत कर के देखो ना मोहब्बत क्यूं नहीं करते
इश्क करता है तो फिर इश्क की तौहीन न कर
या तो बेहोश न हो, हो तो न फिर होश में आ
इश्क की चोट का कुछ दिल पे असर हो तो सही
दर्द कम हो या ज्यादा हो मगर हो तो सही
इश्क ने “गालिब” निकम्मा कर दिया
वर्ना हम भी आदमी थे काम के
इश्क पर जोर नहीं है ये वो आतश “गालिब”
कि लगाए न लगे और बुझान न बने
इश्क में जी को सब्र ओ ताब कहां
उस से आंखें लड़ी तो ख्वाब कहां
इश्क है इश्क ये मजाक नहीं
चंद लम्हों में फैसला न करो
ऎ दोस्त मोहब्बत के सदमे तन्हा ही उठाने पड़ते हैं
रहबर तो फकत इस रस्ते में दो जाम सहारा देते हैं
करूंगा क्या जो मोहब्ब में हो गया नाकाम
मुझे तो और कोई काम भी नहीं आता
“जलील” आसां नहीं आबाद करना घर मोहब्बत का
ये उन का काम है जो जिंदगी बर्बाद करते हैं
तुम तो आता है प्यार पर गुस्सा
मुझ को गुस्से पे प्यार आता है
मालूम जो होता हमें अंजाम-ए-मोहब्बत
लेते न कभी भूल के हम नाम-ए-मोहब्बत
हुस्न को शर्मसार करना ही
इश्क का इंतिकाम होता है
इसी को कहते हैं जन्नत इसी को दोजख भी
वो जिंदगी जो हसीनों के दरमियाँ गुजरे
उठ गई हैं सामने से कैसी-कैसी सूरतें
रोइए किस के लिए किस किस का मातम कीजिए
इश्क के इजहार में हर-चंद रूस्वाई तो है
पर करूँ क्या अब तबीयत आप पर आई तो है
अपनी तबाहियों को तुझे कोई गम नहीं
तुम ने किसी के साथ मोहब्बत निभा तो दी
कहने देती नहीं कुछ मुँह से मोहब्बत मेरी
लब पे रह जाती है आ आ के शिकायत मेरी
चुप रहो तो पूछता है खैर है
लो खामोशी भी शिकायत हो गई
तुम इसे शिकवा समझ कर किस लिए शरमा गए
मुद्दतों के बाद देखा था तो आंसू आ गए
वफा जिससे की बेवफा हो गया
जिसे बुत बनाया खुदा हहो गया
हां हां तुम्हारे हुस्न की कोई खता नहीं
मैं हुस्न-ए-इत्तिफाक से दीवाना हो गया
उनको देखे से जो आ जाती है मुंह पर रौनक,
वह समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है
हमको मालूम है जन्नत की हकीकत लेकिन,
दिल को खुश रखने को “गालिब” ये ख्याल अच्छा है
जमाने को शिकायत हो गई है
– शहजाद अहमद
अंजाम-ए-वफा ये है जिस ने भी की मोहब्बत
मरने की दुआ मांगी, जीने की सजा पाई
– नुशूर वाहिदी
अब तक खबर न थी कि मोहब्बत गुनाह है
अब जान कर गुनाह किए जा रहा हूं मैं
– अज्ञात
अब तो मिल जाओ हमें तुम कि तुम्हारी खातिर
इतनी दूर आ गए दुनिया से किनारा करते
–
उबैदुल्लाह अलीम
आगाज-ए-मोहब्बत का अंजाम बस इतना है
तब दिल में तमन्ना थी अब दिल ही तमन्ना है
– जिगर मुरादाबादी
इक रोज मिल गए थे सर-ए-रह-गुजर कहीं
फिर दिल ने बैठने न दिया उम्र भर कहीं
– अज्ञात
इक लफ्ज-ए-मोहब्बत का अदना ये फसाना है
सिमटे तो दिल-ए-आशिक, फैले तो जमाना है
–
जिगर मुरादाबादी
इलाज अपना कराते फिर रहे हो जाने किस किस से
मोहब्बत कर के देखो ना मोहब्बत क्यूं नहीं करते
– फरहत एहसास
इश्क करता है तो फिर इश्क की तौहीन न कर
या तो बेहोश न हो, हो तो न फिर होश में आ
– आनंद नारायण
मुल्ला
इश्क की चोट का कुछ दिल पे असर हो तो सही
दर्द कम हो या ज्यादा हो मगर हो तो सही
– जलाल लखनवी
इश्क ने “गालिब” निकम्मा कर दिया
वर्ना हम भी आदमी थे काम के
– मिर्जा गालिब
इश्क पर जोर नहीं है ये वो आतश “गालिब”
कि लगाए न लगे और बुझान न बने
– मिर्जा गालिब
इश्क में जी को सब्र ओ ताब कहां
उस से आंखें लड़ी तो ख्वाब कहां
– मीर तकी मीर
इश्क है इश्क ये मजाक नहीं
चंद लम्हों में फैसला न करो
– सुदर्शन फाकिर
ऎ दोस्त मोहब्बत के सदमे तन्हा ही उठाने पड़ते हैं
रहबर तो फकत इस रस्ते में दो जाम सहारा देते हैं
– अब्दुल हमीद अदम
करूंगा क्या जो मोहब्ब में हो गया नाकाम
मुझे तो और कोई काम भी नहीं आता
– गुलाम मोहम्मद कासिर
“जलील” आसां नहीं आबाद करना घर मोहब्बत का
ये उन का काम है जो जिंदगी बर्बाद करते हैं
– जलील मानिकपुरी
तुम तो आता है प्यार पर गुस्सा
मुझ को गुस्से पे प्यार आता है
– अमीर मीनाई
मालूम जो होता हमें अंजाम-ए-मोहब्बत
लेते न कभी भूल के हम नाम-ए-मोहब्बत
– शेख इब्राहीम जौक
हुस्न को शर्मसार करना ही
इश्क का इंतिकाम होता है
-असरार-उल-हक मजाज
इसी को कहते हैं जन्नत इसी को दोजख भी
वो जिंदगी जो हसीनों के दरमियाँ गुजरे
– जिगर
मुरादाबादी
उठ गई हैं सामने से कैसी-कैसी सूरतें
रोइए किस के लिए किस किस का मातम कीजिए
– हैदर अली आतिश
इश्क के इजहार में हर-चंद रूस्वाई तो है
पर करूँ क्या अब तबीयत आप पर आई तो है
– अकबर इलाहाबादी
अपनी तबाहियों को तुझे कोई गम नहीं
तुम ने किसी के साथ मोहब्बत निभा तो दी
– साहिर
लुधियानवी
कहने देती नहीं कुछ मुँह से मोहब्बत मेरी
लब पे रह जाती है आ आ के शिकायत मेरी
– दाग देहलवी
चुप रहो तो पूछता है खैर है
लो खामोशी भी शिकायत हो गई
– अख्तर अंसारी अकबराबादी
तुम इसे शिकवा समझ कर किस लिए शरमा गए
मुद्दतों के बाद देखा था तो आंसू आ गए
– फिराक गोरखपुरी
वफा जिससे की बेवफा हो गया
जिसे बुत बनाया खुदा हहो गया
– हफीज
जालंधरी
हां हां तुम्हारे हुस्न की कोई खता नहीं
मैं हुस्न-ए-इत्तिफाक से दीवाना हो गया
– प्यारे साहब रशीद
उनको देखे से जो आ जाती है मुंह पर रौनक,
वह समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है
– मिर्जा गालिब
हमको मालूम है जन्नत की हकीकत लेकिन,
दिल को खुश रखने को “गालिब” ये ख्याल अच्छा है
– मिर्जा गालिब