स्वास्थ्य विभाग का करनामा: आबादी हो रही कम, फिर भी नसबंदी
प्रदेश में संरक्षित आदिवासियों की आबादी घट रही है, लेकिन सरकारी अमला इन्हें नसबंदी के लिए प्रोत्साहित कर रहा है।
रायपुर. प्रदेश में संरक्षित आदिवासियों की आबादी घट रही है, लेकिन सरकारी अमला इन्हें नसबंदी के लिए प्रोत्साहित कर रहा है। स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों के मुताबिक पिछले तीन साल के दौरान 363 संरक्षित आदिवासी महिलाओं की नसबंदी कर दी गई। चौंकाने वाले तथ्य यह हैं कि आदिवासियों में जन्म दर घट रही है व मृत्यु दर तेजी से बढ़ रही है। जनगणना 2011 के अनुसार प्रदेश में आदिवासियों की जनसंख्या वृद्धि दर 30.62 आंकी गई, जबकि 2009 में 31.76 थी।
बीमारी से मौत ज्यादा
प्रदेश में पांच विशेष जनजातियों बैगा, कमार, बिरहोर, पहाड़ी कोरवा व अबूझमाडि़या की आबादी में लगातार गिरावट दर्ज की जा रही है। दूरस्थ क्षेत्र होने के कारण इन आदिवासियों तकचिकित्सकीय सुविधाए समय पर नहीं पहुंच पाती है। इससे मृत्यु दर बढ़ रही है। इनकी घटती आबादी को देखते हुए सरकारी स्तर पर इन आदिवासियों को संरक्षित किया गया है।
यहां ज्यादा नसबंदी
स्वास्थ्य विभाग के एक अधिकारी के अनुसार प्रदेश में अधिकांश आदिवासी बहुल इलाकों से नसबंदी की जानकारी मिली है, लेकिन बिलासपुर रेंज में सबसे ज्यादा बैगा आदिवासियों के केस सामने आए हैं। पिछले पांच साल में कोटा में 175, मरवाही में 100 और लोरमी में 79 बैगा आदिवासी महिलाओं की नसबंदी कर दी गई।
रोक के आदेश के बाद भी नसबंदी
स्वास्थ्य संचालक आर. प्रसन्ना का कहना है कि विभिन्न प्रदेशों में संरक्षित आदिवासियों की नसबंदी पर प्रतिबंध को लेकर अलग-अलग नियम हैं। प्रदेश में इनकी नसबंदी पर स्पष्ट प्रतिबंध नहीं है। हालांकि, सभी जिलों को इन आदिवासियों की नसबंदी नहीं करने को कहा गया है।
प्रदेश में पलायन और नसबंदी से बिगड़ी स्थिति
बस्तर विश्वविद्यालय में किए गए शोध में भी यह खुलासा हुआ है कि प्रदेश के दंतेवाड़ा, बीजापुर, सुकमा, कोरिया और जशपुर में आदिवासियों की जनसंख्या घट रही है। अबूझमाडि़या, कमार, पहाड़ी कोरवा व दोरला जनजाति सबसे ज्यादा प्रभावित हो रही है। रिपोर्ट में यह बात भी सामने आई है कि आदिवासियों की आबादी घटने के पीछे पलायन सबसे बड़ा कारण है। ज्यादातर आदिवासियों का बस्तर से माओवादियों के भय और रोजगार के चलते पलायन हो रहा है। अन्य राज्यों से बस्तर की सरहद छूने वाले इलाकों में रोजगार के लिए शिक्षित आदिवासियों का सबसे ज्यादा पलायन कोरिया व जशपुर इलाके से होता है।
माओवाद और सलवा जुड़ूम से बढ़ा पलायन
आंकड़े बताते हैं कि तीन लाख सोलह हजार दो सौ दस आदिवासियों ने पलायन किया है। सबसे ज्यादा पलायन बस्तर में माओवादियों के कहर के चलते 83743 लोगों ने पलायन किया। इसके बाद सलवा जुडूम के दौरान माओवादी और उनका विरोध करने वाले एसपीओ के बीच फंसे आदिवासियों का पलायन सतत जारी रहा। जुडूम पर सुप्रीम कोर्ट की रोक के बाद से माओवादियों के विरोध में सामने आए ग्रामीणों के लिए पलायन ही एक रास्ता बचा था। ऐसी स्थिति में पलायन का ग्राफ तो गिरा, लेकिन पलायान पर रोक नहीं लगाया जा सका। वर्ष 2009-10 में 48140आदिवासियों के पलायन के आंकड़े सामने आए।
नसबंदी भी बड़ा कारण
जन्म दर तेजी से घट रही है। आदिवासियों की घटती आबादी के पीछे नसबंदी को कारण माना गया है।
जरूरी है नसबंदी पर पूर्णत: प्रतिबंध
प्रदेश में घटती आबादी को देखते हुए संरक्षित आदिवासियों को परिवार नियोजन के लिए प्रोत्साहित नहीं किया जाना चाहिए। इनकी नसबंदी पर पूर्णत: प्रतिबंध जरूरी है।
टी. राधा कृष्णनन, संचालक आदिम जाति अनुसंधान संस्थान
Hindi News / Raipur / स्वास्थ्य विभाग का करनामा: आबादी हो रही कम, फिर भी नसबंदी