केदारनाथ धाम: यहां भगवान शिव देते हैं पापों से मुक्ति
महाभारत के युद्ध के बाद पांडव अपने स्व-परिजनों की हत्या का प्रायश्चित करने
के लिए भगवान शंकर की शरण में केदारनाथ आए
केदारनाथ धाम को भारत के प्रमुख तीर्थस्थलों में माना जाता है। माना जाता है कि यहां पर भगवान शिव के दर्शन करने से समस्त पापों से मुक्ति मिलती है और स्वर्ग की प्राप्ति होती है।
महाभारत से जुड़ी है केदारनाथ की कथा
केदारनाथ के इस मंदिर में भगवान शिव की प्रतिमा है। इस जगह का इतिहास महाभारत से जुड़ा हुआ है। कहा जाता है कि महाभारत के युद्ध के बाद पांडव ने अपने परिवारजनों की हत्या का प्रायश्चित करने के लिए भगवान शंकर की शरण में आए। परन्तु भगवान शिव उन्हें दर्शन नहीं देना चाहते थे जिसके कारण उन्होंने एक सांड का रूप धर लिया।
युधिष्ठिर ने उन्हें इस रूप में भी पहचान लिया और उन्हें पकड़ने के लिए सांड बने शिव के पीछे दौड़े। इस दौरान भीम ने सांड की पूंछ पकड़ ली लेकिन तब तक सांड ने अपने मुंह को जमीन में छिपा लिया जो नेपाल के पशुपतिनाथ तक चला गया। इस खींचतान में सांड़ की पीठ जमीन पर ही रह गई। बाद में पांडवों की निष्ठा देख कर भगवान शिव बेहद प्रसन्न हुए और उन्होंने उन्हें दर्शन दिए।
भगवान ने उन्हें वरदान दिया कि मैं इस जगह पर सदैव रहूंगा और इस जगह आने वाले भक्तों को उनके पापों से मुक्ति प्रदान करूंगा। तभी से यह स्थान प्रसिद्ध हो गया। वर्तमान में भगवान शिव के इस मंदिर में भक्तजन प्रतिमा की पूजा-अर्चना कर भगवान से अपने पापों से मुक्ति पाने की मनोकामना करते हैं।
आदि शंकराचार्य ने ली थी यहां महासमाधि
आज से लगभग एक हजार वर्ष पहले आदि शंकराचार्य ने इस स्थान को अपने कार्यभूमि बनाते हुए यहां मठ स्थापित किया। मठ स्थापित करने के पीछे उनका उद्देश्य विदेशी हमलों से सनातन धर्म की रक्षा करना तथा समाज को एकजुट रखना था। यहीं पर उन्होंने महासमाधि भी ली थी। मंदिर के अंदर ही आदि शंकराचार्यजी का समाधि स्थल भी है।
मंदिर के पुजारी कर्नाटक से वीरशैव समुदाय से जुड़े हैं। उन्हें वहां से लाकर यहां बसाया गया था। पीढियों से वे यहां पर पूजा कर रहे हैं। गर्मियों में इस मंदिर को भक्तों के दर्शनार्थ खोला जाता है और सर्दियों में विधिवत पूजा करके मंदिर के पट बंद कर दिए जाते हैं।
वर्ष 2013
में आई थी केदारनाथ में भारी बाढ़
वर्ष 2013 में केदारनाथ में भारी बाढ़ आने से हजारों लोगों की मृत्यु हो गई थी जबकि दर्जनों गांव पूरी तरह तबाह हो गए थे। हालांकि तब मंदिर को कई विशेष नुकसान नहीं पहुंचा था परन्तु आस-पास के क्षेत्रों में भारी तबाही हो गई थी। तब इस मंदिर को बंद कर पुनर्वास का कार्य शुरू किया गया। सरकार ने तत्परता दिखाते हुए जल्दी ही यातायात की आवाजाही सुनिश्चित की। आईआईटी की एक टीम ने मंदिर तथा आस-पास के क्षेत्र का सर्वे कर इसके जीर्णोद्धार का कार्य शुरू किया और बेहद शीघ्र कार्य पूरा कर वर्ष 2014 में आम जनता के दर्शनार्थ मंदिर के पट खोल दिए।
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