अब पत्नियां हो जाएं सावधान, पति को मोटा कहा तो खैर नहीं
पीडि़त पति का आरोप था कि उसकी पत्नी उसे उसके मोटापे के कारण अपमानित करती है और उसे मोटा, हाथी और गैंडा कहकर मानसिक रूप से प्रताडि़त करती है।
नोएडा। क्या आप जानते हैं कि पत्नियों का ताने मारना भी घरेलू हिंसा के तहत आता है। अगर आपकी पत्नी आपको आपकी शारीरिक बनावट या रंग के आधार पर ताने मारती है तो ये तलाक का आधार बन सकता है। कोर्ट ने ऐसे ही एक केस की सुनवाई करते हुए पति के पक्ष में फैसला सुनाया है।
पीडि़त पति का आरोप था कि उसकी पत्नी उसे उसके मोटापे के कारण अपमानित करती है और उसे मोटा, हाथी और गैंडा कहकर मानसिक रूप से प्रताडित करती है। कोर्ट ने पति के पक्ष में फैसला सुनाते हुए पति को तलाक दे दिया। कोर्ट ने कहा कि पत्नी अगर पति के साथ ऐसी हरकत करती है तो पति के प्रति क्रूरता मानी जाएगी और यह वजह तलाक का ठोस आधार बन सकती है। हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति विपिन सांघी की खंडपीठ ने एक महिला द्वारा तलाक रद्द करने की याचिका को खारिज करते हुए उसके पति को राहत प्रदान की है।
पति की शारीरिक बनावट का मजाक उड़ाना
हाईकोर्ट ने अपने महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि एक महिला द्वारा पति के शारीरिक बनावट का मजाक उड़ाना, उसे मोटा हाथी या गैंडा जैसे किसी नाम से संबोधित कर उसे मानसिक रूप से प्रताड़ित करना और विरोध करने पर उसे दहेज के झूठे केस में फंसाने की धमकी देना इत्यादि तलाक का ठोस आधार हो सकते हैं। पति से मारपीट और संपत्ति जबरन अपने नाम पर कराने के लिए झूठे केस की धमकी देना और शारीरिक संबंधों से इंकार करना भी पति के प्रति क्रूरता है। ऐसे में इनमें से किसी भी आधार पर तलाक लिया जा सकता है।
कई बार पति तो मानसिक क्रूरता को समझ नहीं पाते
सेव फैमिली फाउंडेशन एनजीओ से जुड़े रित्विक बिसारिया का कहना है कि पत्नियां अक्सर पतियों को इस तरह से प्रताड़ित करती हैं, लेकिन पति इस बात को समझ ही नहीं पाते हैं कि उनकी पत्नी उनके साथ घरेलू हिंसा कर रही है। हमारे समाज में अगर पत्नी पति को प्रताड़ित करती है तो इसे भी पति की कमजोरी के रूप में ही देखा जाता है। इन हालात में भी पति को ही दोषी पाया जाता है। इस तरह के जितने भी कानून हैं वह सभी पत्नियों के पक्ष में ही हैं। पत्नी जब चाहती है पतियों को फर्जी मुकदमों में फंसा देती हैं।
हिंदू मैरिज एक्ट का कानून दोनों के लिए है बराबर
रित्विक बताते हैं कि हिंदू मैरिज एक्ट पति-पत्नी दोनों के लिए बराबर रूप से लागू होता है, लेकिन पति इस बात को समझ नहीं पाते हैं। वहीं, कई बार समाज और अदालत भी पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर पति को ही गलत मानते हैं और उनके खिलाफ फैसला सुनाते हैं। दिल्ली हाईकोर्ट का फैसला स्वागत योग्य है और ये बाकी पीड़ित पतियों के लिए एक नजीर की तरह है।
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