सौरभ शर्मा, नोएडा। रोजाना हजारों लीटर तरल कचरा हिंडन आैर उसकी सहायक नदियों में डाला जा रहा है। जिसके कारण तीनों की मौत हो चुकी है। आत्मा तक मिट चुकी है। जहर इतना फैल चुका है कि आसपास रहने वाले लोगाें की मौत का कारण बन रही है। ताज्जुब की बात तो ये है कि शासन आैर प्रशासन के लोग इन्हें पुनर्जिवित करने के लिए कोर्इ कदम भी उठाने को तैयार नहीं है। अब सवाल ये है कि आखिर इन नदियों की मौत का जिम्मेदार कौन है?
इन उद्योगों का हिंडन में जाता है कचरा
400 किलोमीटर लंबी हिंडन को सैंकड़ो उद्याेगों का कचरा गंदा कर रहा है। जिनमें प्रमुख युनिट की बात करें तो उसमें सबसे पहला नाम सहारनपुर स्थित स्टार पेपर मिल का आता है। जिसका गैर शोधित कचरा हिंडन में जाता है। एेसा ही एक नाम मुजफ़्फरनगर जिले में स्थित तितावी शुगर मिल, बुढ़ाना स्थित बजाज शुगर मिल, गाजियाबाद में मौजूद छितारसी का बदरपुर प्लांट से हजारों लीटर गैर शोधित कचरा हिंडन में जाता है। वहीं मेरठ में दो एेसी यूनिट हैं जिन्होंने हिंडन को प्रदूषित करने में कोर्इ कसर नहीं छोड़ी। अगर बात आंकड़ों की करें तो रोजाना इस नदी में उद्योगों का करीब 98500 किलो लीटर तरल गैर-शोधित कचरा सीधे डाला जाता है।
कृष्णी नदी को इन मिलों ने मार डाला
कृष्णी नदी के हालात भी कुछ ठीक नहीं है। वो भी मरणासन्न हालत में पहुंच चुकी है। इस नदी की शुरूआत ही ननौता के सहकारी गन्ना मिल आैर आसवनी डिस्टलरी के गैर-शोधित तरल कचरे से होती है। यह तरल कचरा एक नाले से होकर भनेडा खेमचन्द गांव में आकर कृष्णी में मिलता है। इस बीच इस नदी में ननौता की ही दुर्गा स्ट्रा बोर्ड, सिंह स्ट्रा बोर्ड आैर एसएमसी फूडस लिमिटिड का गैर-शोधित कचरा भी डाला जाता है। इसके अलावा थानाभवन में स्थित बजाज ग्रुप के गन्ना मिल, सिक्का पेपर मिल, मारूति पेपर मिल, शामली पेपर मिल, शामली डिस्टीलरी एंड कैमिकल वर्क्स, अपर दोआब गन्ना मिल, निकिता पेपर्स व शामली नगर पालिका का गैर-शोधित कचरा भी कृष्णी नदी में डाला जाता है। इन सभी उद्योगाें से करीब 10,000 किलो लीटर तरल कचरा रोज इस नदी में डाला जाता है।
तो ये है काली के हत्यारे
काली पश्चिम नदी के हिंडन में मिलने से पहले देवबंद में स्थित त्रिवेणी इंजीनियरिंग एंड इन्डस्ट्रीज लिमिटिड, रोहानाकला के यूपी स्टेट शुगर काॅर्पोरेशन लिमिटिड सहित देवबन्द व मुजफ्फरनगर का सीवेज भी इस नदी में डाला जाता है। करीब पच्चीस पेपर मिलों व अलनूर एक्सपोर्ट का तरल गैर-शोधित कचरा भी एक नाले के माध्यम से नदी में डाल दिया जाता है। इन सभी उद्योगों से करीब 85,000 किलो लीटर गैर-शोधित तरल कचरा रोजाना काली नदी में डाला जाता है।
दोबारा पुनर्जिवित करना जरूरी
नीर फाउंडेशन के अध्यक्ष रमन त्यागी ने बताया कि इन तीनों नदियों में कुल सभी उधागों से निकलने वाला तरल गैर-शोधित व सीवेज करीब 1,93,500 किलो लीटर डाला जाता है। जनहित फाउंडेशन के साथ मिलकर किए गए सर्वे में इन्हीं उद्योगों का नाम सामने आया है। सरकार आैैर प्रशासन को इन पर लगाम लगानी होगी। तभी इन तीनों दियों को दोबारा से जीवित किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि ये तीनों नदियां वेस्ट यूपी के लिहाज से काफी जरूरी है। लाखाें लोगों के जीवन का स्रोत हैं।
खास बातें
1. मृत हो चुकी हैं हिण्डन, कृष्णी व काली (पश्चिमी)।
2. दर्जनों गन्ना मिलों व पेपर मिलों से निकलने वाला प्रदूषित कचरा लेकर बह रही है हिंडन नदी।
3. हिंडन नदी में दर्जनों शहरों व कस्बों का कचरा बगैर शोधित किए बहाया जा रहा है।
4. हिंडन नदी का प्रारम्भ ही स्टार पेपर मिल से निकलने वाले प्रदूषित कचरे से हो रहा है।
5. हिंडन के पानी में उद्गम से लेकर यमुना में विलय होने तक कहीं पर भी आॅक्सीजन मौजूद नहीं।
6. हिंडन व इसकी सहायक नदियों कृष्णी व काली के पानी में भारी तत्व लैड व क्रोमियम अत्यधिक मात्रा में मौजूद है।
7. हिंडन, कृष्णी व काली के पानी में सामान्य से कई सौ गुना अधिक मात्रा में मौजूद हैं प्रतिबंधित कीटनाशक।
8. हिंडन के प्रदूषित पानी से सिंचाई कर रहे हैं किसान।
9. हिंडन के प्रदूषण से बुरी तरह ग्रस्त हैं किनारे बसे गांव।
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