मुजफ्फरनगर। यूपी के मुजफ्फरनगर के छोरे से बॉलीवुड के फेम नवाजुद्दीन सिद्दीकी की रियल लाइफ स्टोरी किसी रील लाइफ से कम नहीं है। बात 1990 की है, मुजफ्फरनगर के कस्बे बुढ़ाना का एक लड़का अपने पड़ोस में रहने वाली एक लड़की से प्यार करने लगा। वह हमेशा उस लड़की से बात करने की कोशिश करता। लड़की को घर से निकलने की परमिशन नहीं थी। लड़की अक्सर लड़के के घर के पास एक घर में टीवी देखने जाती थी। इसी दौरान वह अकेली होती थी। अहम ये था कि लड़की कृषि दर्शन देखने जाती थी।
एक दिन लड़के ने लड़की को रास्ते में रोक लिया और बोला, ”कृषि दर्शन में क्या रखा है, हमसे बात कर लो।” लड़की शरमा गई और बोली, ”मैं टीवी देखने जा रही हूं।” लड़के को बात चुभ गई और चिल्लाकर बोला, ”वादा करता हूं, एक दिन टीवी पर आकर दिखाऊंगा।”
सालों की कड़ी मेहनत के बाद लड़के को टीवी पर छोटा सा रोल मिल गया। लड़के ने अपने गांव में दोस्त को फोन करके कहा कि, ”यार उस लड़की को बोल कि मैं टीवी पर आ रहा हूं।” लेकिन दोस्त ने उसे बताया कि उसका तो निकाह हो गया है। इस तरह एकतरफा प्रेम कहानी का अंत हो गया। जी हां यहां नवाजुद्दीन सिद्दीकी की प्रेम कहानी का तो अंत हो गया, लेकिन उनके सुनहरे भविष्य की नींव रखी गई।
क्लास के आधे लोग नवाजुद्दीन को जानते ही नहीं थे वे सात भाई और दो बहन थे। पिता किसान थे और बमुश्किल गुजारा होता था। वे बचपन से ही इतने शांत स्वभाव के थे कि 40 बच्चों की क्लास में आधा दर्जन बच्चे ही उनको जानते थे।
नवाजुद्दीन ने देखा हिस्की में की साइंस ऑनर्स
उनको हमेशा से इन जगह से निकलना था। सभी के मुंह से साइंस-साइंस सुनते थे। लगा कुछ अच्छी चीज होगी। तो साइंस में ग्रेजुएशन कर ली। डिग्री के बाद बड़ी मुश्किल से एक दुकान पर केमिस्ट की नौकरी मिली, लेकिन मन एक्टिंग में ही था। दिल्ली जाकर एक्टिंग सीखने का मन बनाया।
दिल्ली आए थे एक्टिंग सीखने पर बन गए चौकीदार नवाजुद्दीन ने
दिल्ली के शाहदरा में रात को चौकीदार की नौकरी की और एनएसडी में एक्टिंग सीखना शुरू किया। 1996 में एनएसडी से पासआउट हुए। इसके बाद मुंबई पहुंचे, लेकिन अपने रंग के कारण दस साल तक स्ट्रगल किया। लोग उन्हें एक्टिंग के लायक नहीं समझते थे। एक दशक से ज्यादा चले स्ट्रगल में सबने समझाया कि नौकरी कर लो यहां कुछ नहीं होने वाला, लेकिन नवाज ने हार नहीं मानी।
इस फिल्म ने दिलाई बॉलीवुड इंडस्ट्री में पहचान 1999 में आई फिल्म सरफरोश में मुखबिर के छोटे-से रोल के साथ नवाज की किस्मत का ताला खुला। अनुराग कश्यप ने इसी रोल को देखकर उन्हें ब्लैक फ्राइडे के लिए चुना। इसके बाद गैंग्स ऑफ वासेपुर-1, 2 उनकी झोली में आ गई। इसके बाद नवाज को पूरी दुनिया जान गई। अब वह कोई छोटा नाम नहीं है। कामयाबी के शिखर पर भी नवाज का स्वभाव सरल है। हाल ही में अपने गांव पहुंचे नवाज को खेतों में काम करते हुए पूरे गांव ने देखा। नवाज अपनी अम्मी की एक बात हमेशा याद करते हैं, ”बारह साल में तो घूरे के दिन भी बदल जाते हैं बेटा, तू तो इंसान है।
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