मूवी रिव्यू…वाकई शतरंज का खेल है ‘वज़ीर’
निर्देशक बिजॉय नांबियार ने वज़ीर में ऑडियंस का आकर्षण बनाए रखने के लिए फिल्म की हर छोटी-बड़ी बात को ध्यान में रखा है।
बैनर : विनोद चोपड़ा प्रोडक्शन
निर्माता : विधु विनोद चोपड़ा
निर्देशक : बिजॉय नांबियार
जोनर : एक्शन, थ्रिलर
स्टारकास्ट: अमिताभ बच्चन, फरहान अख्तर, अदिति राव हैदरी, मानव कौल और जॉन अब्राहम व नील नितिन मुकेश (कैमियो)
रेटिंग: *** स्टार
रोहित तिवारी
बी-टाउन समेत हर फिल्म प्रेमियों का थ्रिलर फिल्मों का इंतजार रहता है और फिर थ्रिलर में एक्शन का तड़का लगाने के लिए निर्देशक बिजॉय नांबियार ने हर संभव प्रयास किया है। उन्होंने फिल्म में जान डालने के लिए हर तरह की कोशिश भी की है। फिलहाल, बिजॉय ने ऑडियंस का आकर्षण बनाए रखने के लिए फिल्म की हर छोटी-बड़ी बात को ध्यान में रखा है। उन्हें ‘वज़ीर’ से काफी उम्मीदें हैं और उन्होंने इस फिल्म में दर्शकों के लिए काफी मसाला भी दिया है।
कहानी :
दिल्ली से शुरू होने वाली कहानी में दानिश अली (फरहान अख्तर) की बेटी कार से कहीं जा रहे होते हैं कि तभी दानिश को किसी रमीश (एक गैंगस्टार)को देख लेता है, वहीं से दानिश अपने शागिर्द को फोन करता है और वाहन चलाते समय एक शूटआउट के दौरान गोलीबारी में दानिश अपनी बेटी नूरी खो बैठता है। वहीं से शुरू होती है कहानी…। अब दानिश की दोस्ती पंडित ओमकारनाथ धर (अमिताभ बच्चन) से होती है, जो परिस्थितियों वश उसका मित्र बन जाता है। यानी पंडित जी अपनी पत्नी नीलिमा को एक तेज रफ्तार एक्सीडेंट में खो चुके थे और साथ ही पंडित जी अपने दोनों पैर भी खो चुके होते हैं। वहीं दूसरी ओर एसपी (जॉन अब्राहम) की एंट्री होती है, जो आखिर तक दानिश की यारी निभाता है। दरअसल, पंडित जी और दानिश दोनों ही अपनी बेटी को खो चुके होते हैं, इसी वजह से दोनों अपने जरूरतों की खानापूर्ति के लिए एक-दूसरे के घनिष्ठ मित्र बन जाते हैें। अब दानिश पंडित के दुश्मन याज़ीद कुरैशी को अंजाम देने की ठान लेता है, उसी दौरान उसकी मुलाकात वज़ीर (नील नितिन मुकेश) से होती है। इसी के साथ फिल्म में दिलचस्प मोड़ आता है और तरह-तरह ट्विस्ट के साथ कहानी आगे बढ़ती है।
अभिनय :
अमिताभ बच्चन ने ने इस फिल्म से एक बार फिर से खुद को प्रूव कर दिखाया है कि वाकई में उनके चाहने वाले उन्हें ऐसे ही सदी का महानायक नहीं बोलते। उन्होंने फिल्म के किरदार में जान डालने जैसा काम किया है। साथ ही फरहान अख्तर भी उनका भरपूर साथ देते नजर आए। फरहान ने निर्देशक की हर उम्मीदों पर खरा उतरने की पूरी कोशिश की है। अदिति राव हैदरी ने भी अपने अभिनय में कोई कोर-कसर बाकी नहीं रखी। साथ ही मानव कौल भी अपनी भूमिका में कुछ खास करती दिखाई दींं। इसके अलावा नील नितिन मुकेश और जॉन अब्राहम तो अपनी कुछ देर की उपस्थित में ही ऑडियंस का दिल जीतते दिखाई दिए।
निर्देशन :
वाकई में बिजॉय नांबियार ने एक्शन, थ्रिलर फिल्म के निर्देशन की कमाल संभालने में कोई कोर-कसर बाकी नहीं रखी है। वे इस फिल्म के निर्देशन से दर्शकों को एक तरह की दोस्ती को मसालेदार बनाकर बड़े पर्दे पर दिखाने में सफल भी रहे। हालांकि उन्होंने फिल्म में एक्शन का जबरदस्त तड़का तो जरूर लगाया, लकिन कहीं न कहीं वे थ्रिलर में कुछ और बेहतर कर सकते थे। एक्शन और थ्रिलर में बिजॉय ने वाकई में कुछ अलग करने का भरसकर प्रयास किया है, इसीलिए वे ऑडियंस की वाहवाही लूटने में सफल रहे। भले ही एक-आध जगहों पर इस फिल्म की स्क्रिप्ट थोड़ी डगमगाती नजर आई, लेकिन इसकी कहानी ऑडियंस को आखिर तक बांधे रखने में काफी हद तक सफल रही।
बहरहाल, ‘खेल खेल में, खेल खेल को खेलते आ जाएगा…’ और ‘शतरंज होता तो हाथी, घोड़े दौड़ते, कुत्ते नहीं…’ जैसे कई डायलॉग्स तारीफ लायक रहे, लेकिन अगर कॉमर्शिल और टेक्नोलॉजी अंदाज को छोड़ दिया जाए तो इस फिल्म की सिनेमेटोग्राफी कुछ खास करने में थोड़ी सी असफल रही। इसके अलावा फिल्म में गीत और रोमांस की भी ऑडियंस को कुछ हद तक कमी सी महसूस हुई।
क्यों देखें :
बड़े पर्दे पर अमिताभ बच्चन और फरहान अख्तर की गजब केमिस्ट्री को देखने के लिए सिनेमाघरों की ओर रुख किया जा सकता है। इसके अलावा एक्शन-थ्रिलर का लुत्फ लेने की चाहत रखने वाले भी फिल्म देख सकते हैं…
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