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SC ने पूर्व न्यायाधीश संजय मिश्रा को बनाया UP का लोकायुक्त

उच्चतम न्यायालय ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश संजय मिश्रा को उत्तर प्रदेश का लोकायुक्त नियुक्त किया है

Jan 28, 2016 / 11:41 am

सुनील शर्मा

Supreme Court

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नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश संजय मिश्रा को उत्तर प्रदेश का लोकायुक्त नियुक्त किया है। न्यायमूर्ति रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति प्रफुल्ल चंद पंत की खंडपीठ ने इस मामले में अपने पूर्व का आदेश गुरुवार को वापस लेते हुए न्यायमूर्ति मिश्रा को नया लोकायुक्त नियुक्त किया। न्यायालय ने इससे पहले इलाहाबाद उच्च न्यायालय के ही पूर्व न्यायाधीश वीरेन्द्र सिंह को लोकायुक्त नियुक्त किया था, लेकिन याचिकाकर्ता सच्चिदानन्द गुप्ता उर्फ सच्चे ने उनकी नियुक्ति पर सवाल खड़े किए थे।

जनहित याचिका द्वारा की गई थी अपील

शीर्ष अदालत ने कहा कि यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है कि संवैधानिक पदों पर बैठे मुख्यमंत्री और उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश लोकायुक्त के पद के लिए एक नाम तय नहीं कर पाए। न्यायालय ने गत 20 जनवरी को फैसला सुरक्षित रख लिया था। शीर्ष अदालत ने याचिका की सुनवाई के दौरान यह स्पष्ट कर दिया था कि वह लोकायुक्त नियुक्ति का मामला चयन समिति को वापस कतई नहीं भेजेगी। याचिकाकर्ता ने शीर्ष अदालत से आग्रह किया था कि वह न्यायमूर्ति सिंह को लोकायुक्त नियुक्त करने के अपने फैसले में संशोधन करे।

न्यायालय ने न्यायमूर्ति सिंह के बारे में उसे गुमराह किए जाने पर उत्तर प्रदेश सरकार के खिलाफ गहरी नाराजगी जताते हुए कहा था कि वह लोकायुक्त के तौर पर न्यायमूर्ति सिंह की नियुक्ति को लेकर अपने पूर्व के फैसले में कोई बदलाव तब तक नहीं करेगी, जब तक उसे कोई बाध्यकारी और अप्रीतिकर कारण नजर नहीं आता। खंडपीठ ने कहा था कि राज्य सरकार ने गत माह हुई सुनवाई के दौरान पांच नाम दिए थे और दावा किया था कि न्यायमूर्ति सिंह के नाम पर तीन-सदस्यीय चयन समिति को कोई आपत्ति नहीं है, जबकि हकीकत यह थी कि चयन समिति के सदस्य इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने उनके नाम पर आपत्ति जताई थी।

याचिकाकर्ता ने शीर्ष अदालत को अवगत कराया था कि न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने राज्य सरकार को अपनी आपत्तियां लिखित में दी थी, जबकि विधानसभा में विपक्ष के नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने भी न्यायमूर्ति सिंह के नाम पर आपत्ति जताई थी। गौरतलब है कि उच्चतम न्यायालय की एक पीठ ने राज्य में लोकायुक्त की नियुक्ति को लेकर उसके आदेश पर अमल नहीं करने से नाराजगी जताते हुए गत वर्ष 16 दिसम्बर को खुद ही न्यायमूर्ति सिंह को लोकायुक्त नियुक्त कर दिया था।

सुप्रीम कोर्ट ने दिया था ऐतिहासिक फैसला

खंडपीठ ने ऐतिहासिक फैसला लेते हुए लोकायुक्त की नियुक्ति के लिए संविधान के अनुच्छेद 142 में प्रदत्त अधिकारों का इस्तेमाल किया था। यह पहली बार था जब उच्चतम न्यायालय ने किसी राज्य का लोकायुक्त नियुक्त किया था। न्यायालय ने उत्तर प्रदेश के राज्यपाल, मुख्यमंत्री और इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को जमकर फटकार भी लगाई थी, लेकिन नियुक्ति के ठीक बाद न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने न्यायमूर्ति सिंह के नाम पर एतराज जताया था।

फैसला बदलते हुए शपथ पर लगाई रोक

उनका कहना था कि चयन समिति की बैठक में इस नाम पर सहमति नहीं बन पाई थी, उसके बावजूद राज्य सरकार ने न्यायमूर्ति सिंह का नाम उच्चतम न्यायालय के समक्ष रखा था। इस मामले में सच्चिदानंद गुप्ता ने एक जनहित याचिका दायर करके कहा था कि राज्य सरकार के प्रतिनिधियों ने शीर्ष अदालत को गुमराह किया था। न्यायालय की अवकाशकालीन खंडपीठ ने न्यायमूर्ति सिंह के शपथ ग्रहण समारोह से एक दिन पहले अपने आवास पर सुनवाई करते हुए शपथ पर रोक लगा दी थी।

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