मऊ. भारत में आस्था और विश्वास के जितने उदाहरण मिलते हैं दुनिया के किसी और कोने में शायद ही मिलते हों। ऐसी ही अनोखी आस्था का केन्द्र है यूपी के मऊ जिले के कोपागंज स्थित प्राचीन शिव मंदिर। बताया जाता है कि इस मंदिर को बनवाने वाले शिवभक्त के श्राप के चलते इलाके में खुशहाली नहीं आयी। बावजूद इस मंदिर की मान्यता और लोगों का इस पर विश्वास इतना है कि यहां भक्तों की लाइन लगती है। दावा है कि यहां मांगी गयी मुरादें पूरी होती हैं। सावन में तो शिवभक्तों से मंदिर के आस-पास का इलाका भरा रहता है और हर-हर बम-बम से गुंजायमान रहता है।
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कोपागंज के प्राचीन मंदिर जिसके बारे में दावा किया जाता है कि यह हजारों वर्ष पुराना है की कहानी कम ही लोग जानते हैं। कहा जाता है कि मन्दिर की स्थापना और जीर्णोद्वार 1473 ई में पिथौरागढ के महाराजा ने करवाया था। इसके पिछे जो कहानी बतायी जाती है वह दिलचस्प है। कहानी यह है कि पिथौरागढ के महाराजा बड़े शिवभक्त थे। उन्हें जब कुष्ठ रोग हुआ तो उनके दरबारी वैघ ने काशी जाकर बाबा विश्वनाथ के दर्शन करने की सलाह दी। बताया कि ऐसा करने से सारे कष्ट दूर हो जाएंगे।
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महाराजा अपने कुछ सिपाहीयों और मन्त्री के साथ में काशी दर्शन के निकले तो कोपागंज के उसी रास्ते से जा रहे थे जहां आज मन्दिर है। उसी स्थान पर अपना पड़ाव डाला और रुक गए। बगल में एक बाउली (गढ्ढा) थी जिसमें पानी भरा था। महाराजा को हाथ-पैर धोने के लिये कारिन्दों ने उसी बावली से पानी दिया। कहा जाता है पानी के इस्तेमाल से उनके शरीर पर चमत्कारिक परिवर्तन हुए और कुष्ठ ठीक होने लगा। जब उन्होंने मंत्री को ये बात बतायी तो उसने उन्हें बावली में नहाने की सलाह दी। बहा जाता है कि नहाने के बाद उनका कुष्ठ पूरी तरह से ठीक हो गय।
उस समय वह पूरा इलाका जंगल था। राजा वहां रुके और पूजा की तो उन्हें आकाशवाणी आयी कि इस बवली में हजारों साल से शिवलिंग पड़ा है। महाराजा के आदेश के बाद शिवलिंग निकाला गया पर महाराज उसे अपने साथ नहीं ले जा पाए। इसके बाद राजा ने उस स्थान को साफ कराया और वहां भव्य शिव मंदिर का निर्माण शुरू कराया। जब राजा की मुद्राएं खत्म हो गईं तो मंदिर के लिये गांव के साहूकारों और लोगों से मदद मांगी। आर्थिक अड़चन के बारे में लोगों को बताया गया। पर लोगों ने इस काम के लिये मना कर दिया कि वो कोई मदद नहीं कर सकते।
कहा जाता है कि चूंकि महाराजा शिवभक्त थे सो उन्होंने श्राप दे दिया कि जिस तरह से शिव मेंदिर के लिये दान देने से यहां के लोगों ने मना किया है उसी तरह से गांव के लोग भी तरक्की न करें। दावा है कि उस श्राप का असर आज भी इलाके के लोगों पर दिखायी देता है। जहां पहले जंगल हुआ करता था वहीं अब नगर पंचायत है जो नेशनल हाइवे 29 के किनारे बसा है। बावजूद इसके आज भी वहां के निवासियों को तमाम तरह की परेशानियों से दो-चार होना पड़ता है। पर इसके साथ ही जो लोग वहां बाहर से आकर बसे उनका विकास और उन्नित होती रही है।
ऐसी मान्यता है कि जो भी इस मंदिर में भगवान भोलेनाथ का दर्शन करता है उसकी मनोकामना पूरी होती है। सावन में तो शिवभक्तो का मेला लगा रहता है। कांवड़िए गाजीपुर जिले से गंगा जल लाकर चढ़ाते है। मन्दिर के गर्भगृह, गुबन्द, दिवारों और प्रवेश द्वारा पर निर्माण के लिखे शक संवत को कोई पड़ नहीं पाता। पर मन्दिर के बाहर के गेट पर निर्माण का शक सवंत लिखा है जो लोग जानते हैं। पिथौरागढ के महाराजा ने मन्दिर का निर्माण करवाया लेकिन उन्होंने अपना गुप्त नाम रखा। इस स्थान पर सरकारी और स्थानीय अभिलेखों में पिथौरागढ़ के महाराजा द्वारा निर्मित लिखा हुआ मिलता है।
पुजारी चन्द्रमौली ने बताया कि यह मन्दिर का इतिहास हाजरों वर्ष पुराना है। जब जंगल था तो कोई नहीं आता था, बावजूद इसके महाराजा ने मंदिर का निर्माण कराया। काशी जाते समय रास्ते में यहां बावली से नहाने पर उनका कुष्ठ ठीक हुआ और उसके बाद शिवलिंग होने की आकाशवाणी हुई तो उन्होंने वहीं पर मंदिर बनवा दिया। गांव वालों ने मदद नहीं की तो उन्होंने श्राप दे दिया। जिसका असर आज भी दिखता है।
स्थानीय निवासी अरुण कुमार ने बताया कि यह प्राचीन शिव मन्दिर लोगों की आस्था का केन्द्र है। जो भी मन्नत मानते हैं वह पूरी होती है। साथ ही कहा कि एक शिवभक्त ने श्राप भी दिया था जो यहां का स्थानीय निवासी भगवान शिव की पूजा नहीं करेगा वह हमेशा परेशान रहेगा। इसीलिये यहां के लोग भगवान शिव की पूजा करते हैं।
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Hindi News / Mau / यूपी के मऊ का अनोखा शिव मंदिर, जिसकी कहानी चकित कर देने वाली है