लखनऊ। सातवें वेतन आयोग की सिफारिशें लागू होने की स्थिति में प्रदेश सरकार का तीस हजार करोड़ रुपये वार्षिक के आसपास खर्च बढ़ने की उम्मीद है। प्रदेश सरकार द्वारा सातवें वेतन आयोग की सिफारिशें स्वीकार किये जाने के बाद सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी गोपबंधु पटनायक की अध्यक्षता में गठित समीक्षा समिति ने प्रदेश की आर्थिक स्थितियों का विशद आंकलन किया है। सातवें वेतन आयोग की सिफारिशें लागू करने की स्थिति के मद्देनजर हुए आंकलन के अनुसार पहले साल 26,573 करोड़ और फिर हर साल 22,778 करोड़ रुपये वार्षिक खर्च बढ़ने की उम्मीद है। उधर केंद्र सरकार द्वारा स्वीकार की गयी सिफारिशों का दोबारा अध्ययन करने और भत्तों आदि पर अंतिम फैसला लेने की स्थिति में यह खर्च बढऩे की उम्मीद जताई गयी है। कहा गया कि सिफारिशों को अमल में लाने पर औसतन तीस हजार करोड़ रुपये वार्षिक खर्च बढ़ेगा। माना जा रहा है कि यदि मुख्यमंत्री इसी माह वेतन समिति की सिफारिशों को लागू करने का फैसला लेते हैं, तो मौजूदा वित्तीय वर्ष में तीन माह का बढ़ा हुआ वेतन देना होगा। वित्त विभाग का प्रस्ताव था कि इस साल बढ़ा हुआ वेतन दे दिया जाए और अगले वित्तीय वर्ष में एरियर देने का प्रावधान किया जाए।
इस तरह हुआ आकलन
-वित्तीय वर्ष 2016-17 के वर्तमान व्ययभार का आगणन करने के उपरांत सातवें वेतन आयोग की संस्तुतियों को लागू करने के लिए 25 फीसद वृद्धि को आधार बनाया गया।
-वेतन मद व महंगाई भत्ते के योग का 25 फीसद अतिरिक्त व्ययभार माना गया, क्योंकि पुनरीक्षित वेतनमानों में एक जनवरी 2006 का महंगाई भत्ता मूल वेतन में जोड़ दिया जाएगा।
-यह मानते हुए कि अन्य भत्ता कम से कम दो गुना हो जाएगा, अतिरिक्त व्ययभार वर्तमान व्ययभार के बराबर मान लिया गया। पेंशन के मद में 25 फीसद अतिरिक्त व्ययभार जोड़ा गया।
-वेतन मद में राज्य सहायता से अलग-अलग प्रावधान न होने के कारण अन्य भत्ते दोगुने होने की उम्मीद में कुल अनुमानित व्ययभार का 30 फीसद अतिरिक्त व्ययभार माना गया।
-एक जनवरी 2016 से सातवें वेतन आयोग की सिफारिशें मानें जाने के चलते वित्तीय वर्ष 2016-17 में 14 माह का अतिरिक्त व्ययभार वहन करना होगा, इसी आधार पर आगणन किया गया।
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