लखनऊ. देश के सबसे बड़े सियासी परिवार में छिड़ी वर्चस्व की जंग थमने का नाम नहीं ले रही है। मेल-मिलापों और कयासों का दौर जारी पर है, पर कुछ हल निकलता दिखाई नहीं दे रहा। अखिलेश और मुलायम दोनों पक्ष अपनी-अपनी शर्तों पर अड़े हैं। बाप-बेटे के बीच बैठक दर बैठक हो रही हैं। बुधवार को लखनऊ में पांच घंटे की लंबी बातचीत भी बेनतीजा रही। इस घमासान से अखिलेश फायदे में रहेंगे या मुलायम भविष्य के गर्त में है। राजनीतिक जानकारों की मानें तो इस कलह में समाजवादी पार्टी को नुकसान हो सकता है।
राजनीति में बड़े-बड़ों को अपने चरखा दांव से चित करने वाले मुलायम बेटे अखिलेश के पांच नंबर वाले दांव से चारो खाने चित हो गए। अखिलेश ने चाचा रामगोपाल के साथ मिलकर पिता मुलायम का तख्ता पलट कर राष्ट्रीय अध्यक्ष की कुर्सी हथिया कर साबित कर दिया कि राजनीति में कोई किसी का सगा-सौतेला नहीं होता।
50 सालों के राजनीतिक करियर में मुलायम अपने विरोधियों पर हमेशा ही हावी रहे। हाल ही में उन्होंने पार्टी की सिल्वर जुबली मनाई, तब भी उनकी ही चली। लेकिन मुलायम का बेटा ही उन पर भारी पड़ रहा है। फिलहाल दोनों गुट आमने-सामने हैं। इस स्थिति में राजनीतिक जानकार नफा-नुकसान के आकलन में जुटे हैं। जानकारों की मानें तो शुरुआत में तो ऐसा लगा कि अखिलेश के नेतृत्व में पार्टी चुनाव में उतरेगी तो उसे लाभ होगा, लेकिन अब ये बातें भी सामने आ रही हैं कि मुलायम के जीते जी समाजवादी पार्टी का उनके बिना कोई मतलब नहीं।
रामगोपाल यादव ने आपातकालीन राष्ट्रीय अधिवेशन बुलाकर मुख्यमंत्री को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बना दिया। राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो सीएम अखिलेश का यह दांव उल्टा भी पड़ सकता है। इस पूरे घटनाक्रम के बाद पिता होने के नाते मुलायम को लोगों की हमदर्दी हासिल हुई है। लोगों का कहना है कि अखिलेश ने ठीक नहीं किया। अभी तक जनता में अखिलेश की छवि एक ऐसे नेता की रही है जो ईमानदार, विकासवादी और सब कुछ सहकर भी पिता की आज्ञा मानने वाला है। लेकिन मुलायम से कुर्सी छीनने बाद जनता के बीच उनकी छवि और ही बन रही है। ऐसे में अगर दोनों खेमों में सुलह नहीं हुई तो अखिलेश के सामने मुश्किलें बढ़ सकती हैं। अभी भले ही ज्यादातर विधायक अखिलेश में अपना भविष्य देख रहे हैं लेकिन सच्चाई यह है कि न सिर्फ पार्टी का आम कार्यकर्ता बल्कि उसके परंपरागत मतदाता समुदायों के लोग भी मुलायम सिंह को ही नेता मानते हैं।
समाजवादी पार्टी की कलह सोशल मीडिया पर जारी है। यहां कुछ अखिलेश का समर्थन कर रहे हैं तो ज्यादातर उनके इस फैसले से स्तब्ध हैं। चौक, लखनऊ के पुराने समाजवादी पारस नाथ यादव (43) अखिलेश के इस कदम से दुखी हैं। उनका कहना है कि यह जरूरी था कि अखिलेश के नाम और काम पर ही उत्तर प्रदेश का विधानसभा चुनाव लड़ा जाए, लेकिन मुलायम को इस तरह से अपमानित कर उन्हें कुछ हासिल नहीं होगा।
इटावा और सैफई में भी मुलायम को हटाए जाने के फैसले से लोग नाराज हैं। सूत्रों की मानें तो इस सच्चाई को अखिलेश टीम भी जानती है। इसलिए टीम गुपचुप तरीके से गोपनीय रिपोर्ट जुटाने में लगी है।
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