लखनऊ. उत्तर प्रदेश चुनाव में जीत हासिल करने के लिए बसपा सुप्रीमो मायावती ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलीमीन (एआईएमआईएम) से गठबंधन की तैयारी में हैं। पार्टी सूत्रों की मानें तो मायावती गंभीरता पूर्वक ओवैसी से गठबंधन के बाद होने वाले नफा-नुकसान के आंकलन में जुटी हैं। एआईएमआईएम चीफ ओवैसी और प्रदेश अध्यक्ष शौकत अली भी बसपा से गठबंधन के इच्छुक हैं। ऐसे में बसपा और एआईएमआईएम के बीच गठबंधन की अटकलें तेज हैं।
उत्तर प्रदेश में जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आता जा रहा है, चुनावी गोटियां भी सेट होती जा रही हैं। राजनीतिक दल एक बार फिर जातियों के सहारे उत्तर प्रदेश की सत्ता तक पहुंचने की कवायद में जुटे हैं। सभी दल अपने नफा-नुकसान को देखते हुए छोटे-बड़े गठबंधन की फिराक में हैं। बसपा, सपा और कांग्रेस की नजर अल्पसंख्यकों पर है तो भाजपा दलितों, पिछड़ों और सबर्णों का त्रिकोण बनाकर चुनावी वैतरणी पार करना चाहती है।
राजनीतिक जानकारों की मानें तो बसपा-एमआईएम गठजोड़ प्रदेश में समाजवादी पार्टी के लिए बड़ी चुनौती बनकर उभरेगा। क्योंकि उत्तर प्रदेश में करीब 50 विधानसभा सीटें ऐसी हैं, जहां मुस्लिम मतदाता ही हार-जीत तय करते हैं। यह गठबंधन जहां सपा का समीकरण बिगाड़ सकता है, वहीं दूसरे दलों के लिए भी कम चुनौती नहीं होगा।
उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा करीब 40 फीसदी दलित वोटर हैं, जो अलग-अलग पार्टियों के साथ हैं। लेकिन यूपी के करीब 22 फीसदी दलित और करीब 19 फीसदी मुस्लिम वोटर अमूमन एक ही पार्टी को वोट करते हैं। ऐसे में जो दल इनमें से किन्हीं दो जातियों को अपने पाले में कर पाएगा, उसी के जीतने के चांसेज बढ़ जाते हैं।
यहां हैं सबसे ज्यादा मुस्लिम
उत्तर प्रदेश के 21 जिलों में 19 फीसदी मुस्लिम वोटर हैं। रामपुर में सबसे अधिक करीब 51 फीसदी मुस्लिम हैं। इसके अलावा बिजनौर, ज्योतिबा फूले नगर, मुरादाबाद, सहारनपुर, मुजफ्फरनगर व बलरामपुर में मुस्लिमों वोटर करीब 37 से 47 फीसदी हैं। इतना ही नहीं मेरठ, बहराइच, श्रावस्ती, सिद्धार्थनगर, बागपत, गाजियाबाद और लखनऊ में भी बड़ी संख्या में मुसलमान वोटर हैं।
इसलिए बसपा की जरूरत हैं ओवैसी!
मुलायम कुनबे में मचे सियासी घमासान के बीच मायावती मुस्लिमों को अपने खेमे में लाना चाहती हैं। वह अपने हर संबोधन में भाजपा पर निशाना तो साधती ही हैं, साथ ही सपा को कमजोर बताकर मुस्लिमों से बसपा को वोट की अपील कर रही हैं। वह इस बार दलित-मुस्लिम गठजोड़ के सहारे यूपी की सत्ता हासिल करना चाहती हैं। इसमें वह सफल होती भी दिख रही थीं, लेकिन सपा-कांग्रेस के बीच गठबंधन की अटकलों के बीच सपा फिर मुस्लिम वोटर्स की पहली पसंद हो सकती है।
सपा-कांग्रेस में गठबंधन क्यों?
समाजवादी पार्टी को भी माया की रणनीति का अंदाजा है। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि यादव परिवार की कलह के बाद उत्तर प्रदेश का मुस्लिम वोटर भ्रम की स्थिति में है, जो छिटकर छिटकर बसपा में जा सकता है। इस स्थिति से निपटने के लिए ही समाजवादी पार्टी उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का साथ चाहती है। ऐसा खुद मुख्यमंत्री अखिलेश यादव कई बार कह चुके हैं। उन्हें लगता है कि कांग्रेस के साथ होने से यूपी चुनाव में सपा से मुस्लिम वोटर इस गठबंधन का ही साथ देगा। इस दम पर 300 प्लस सीटें जीतने का दावा करते हैं। यूपी में 27 साल का सूखा खत्म करने के लिए कांग्रेस भी सपा का साथ चाहती है।
ओवैसी चाहते हैं बसपा का साथ
बात करें एआईएमआईएम की तो, ओवैसी भी उत्तर प्रदेश की राजनीति में जमना चाहते हैं। एक अखबार को दिए इंटरव्यू में एआईएमआईएम चीफ ओवैसी ने कहा कि हम बसपा से गठबंधन चाहते हैं, अब फैसला बसपा को ही लेना है। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष शौकत अली का मानना है कि उत्तर प्रदेश में जब तक दलित-मुस्लिम एक मंच पर नहीं आएगा उसे इंसाफ नहीं मिलेगा
‘चौंकाने वाले नतीजे देगी एआईएमआईएम’
उत्तर प्रदेश में दलित वोटरों को मायावती का पारंपरिक वोट माना जाता है, लेकिन इस बार उन्हें साथ लाने के लिए सपा, भाजपा और कांग्रेस खूब हाथ पैर मार रही हैं। एआईएमआईएम चीफ ओवैसी भी यूपी में मुस्लिम युवाओं को लुभाने की कवायद में जुटे हैं। एआईएमआईएम नेता शाहनवाज का दावा है कि उत्तर प्रदेश में उनकी पार्टी आठ लाख सक्रिय सदस्य हैं जो एआईएमआईएम का समर्थन कर रहे हैं। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष शौकत अली का कहना है कि उनकी पार्टी उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में चौंकाने वाले नतीजे देगी।
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