मीटर गेज ट्रेन आज करेगी अपना अंतिम सफर तय, इतिहास बन जाएगी 142 वर्ष पुरानी तकनीक
मध्यप्रदेश में खंडवा जिले से चलने वाली मीटर गेज ट्रेन 31 दिसंबर को अपना आखिरी सफर तय करेगी। इस ट्रेन के अंतिम सफर पर जाने के लिए लोग उमड़ पड़े। शहर के लोगों की भीड़ भी यहां लगी। शनिवार से मीटरगेज की खट्टी-मीठी यादें ही शेष रह जाएंगी। इसके साथ ही अजीबो-गरीब किस्से भी…
खंडवा@ पत्रिका मीटर गेज ट्रेन बंद होने के बाद 30 से अधिक गांवों के ग्रामीणों का संपकज़् रेलमागज़् से कट जाएगा। मीटरगेज के अलावा आवागमन का इनके पास कोई अन्य साधन भी नहीं है। स्टेशन पर ड्राइवर से बॉल (टोकन) लेकर स्टूमेंट में लगाना और अगले स्टेशन पर मैनेजर की सुलह के बाद ही इसे ड्राइवर को देकर ट्रेन रवाना करना 142 वर्ष पुरानी ये तकनीक भी इतिहास बन जाएगी। मीटरगेज के सफर को हमेशा के लिए यादगार बनाने शनिवार को आखिरी सफर पर कई यात्री निकलेंगे। इतिहास के पन्नों को खंगालती पत्रिका की रिपोटज़्…
सौंदयज़् का प्रतीक वानरोड व पालातपानी महू से अकोला के बीच मीटरगेज लाइन पर 28 रेलवे स्टेशन आते हैं। इनमें वानरोड स्टेशन घने जंगल के बीच पहाड़ की चोटी पर बना हुआ है। इस स्टेशन की सुंदरता हर यात्री को लुभाती है। वानरोड स्टेशन पहाड़ पर बना है। यहां से सफर करने वाले यात्री को टिकट लेकर सीढिय़ों से उतरकर ट्रैक के पास गाड़ी पकडऩा पड़ती है। बारिश के मौसम में यहां प्राकृतिक सौंदयज़् देखते ही बनता है। इधर, खंडवा से महू के बीच पातालपानी स्टेशन झरनों के लिए प्रसिद्ध है। बारिश में पहाड़ के बीच से बहने वाले झरने हर किसी का मन मोह लेते हैं। प्रकृति की इस सुंदरता को देखने लोग मीटरगेज ट्रेन से यहां पहुंचते थे। ट्रैक बंद होने के बाद प्रकृति की इस सुंदरता का लुत्फ नहीं ले पाएंगे।खंडवा स्टेशन था मीटरगेज लाइन का टमिज़्नस
यह है इसका इतिहास सीमा प्रकाश माइकल बताते हैं कि खंडवा स्टेशन मीटरगेज लाइन का टमिज़्नस था। उस समय खंडवा-हिंगोली के बीच ही ट्रैक बिछा था। इसकी परिकल्पना ब्रिटिश शासनकाल में वषज़् 1862 में आई थी। खंडवा-हिंगोली लाइन को 1954 में स्वीकृति मिली थी। वहीं 1958 तक 14 मील दूरी आमूला तक ट्रैक बना। खंडवा-अकोला के बीच ताप्ती नदी पर सबसे ऊंचा पुल बनाया गया। सात स्पेन से बना यह पुल 980 फीट ऊंचा था। इधर, राजपूताना और दक्खन को जोडऩे के लिए 252 मील रेल लाइन के लिए मंजूरी मिली। इसके निमाज़्ण के लिए 170 लाख रुपए का बजट दिया गया था। राजपूताना और दक्खन को जोडऩे के लिए वषज़् 1900 में रेल सुविधा शुरू हुई थी। खास बात यह है 1900 में खंडवा सहित सेंट्रल क्षेत्र में अकाल पड़ा था। इसलिए ब्रिटिश सरकार ने इसका निमाज़्ण राहत कायज़् के रूप में किया गया था।
पूवज़् स्टेशन मैनेजर एनके दवे बताते हंै कि नील्स बॉल टोकन ब्लॉक स्टूमेंट से गाड़ी आने पर टोकन निकालना अब यादों में ही ताजा रहेगा। स्टेशन पर गाड़ी आते ही ड्राइवर से बॉल (टोकन) लेकर स्टूमेंट में लगाना और अगले स्टेशन मैनेजर से बात करके गाड़ी आगे बढ़ाने की अनुमति ली जाती थी। दोनों स्टेशन मैनेजर की सुलह के बाद ही बॉल ड्राइवर को देकर गाड़ी अगले स्टेशन के लिए रवाना की जाती थी। दवे वषज़् 1980 से खंडवा में कायज़्रत रहकर सेवानिवृत्त हुए। उन्होंने कहा खंडवा-हिंगोली लाइन शुरू होने के समय लालबहादुर शास्त्री रेल मंत्री थे। रेलवे ने उन्हें सवज़्श्रेष्ठ कायज़् करने पर एक एजीएम, पांच डीआरएम और दो सीओएम अवॉडज़् से सम्मानित किया है। दवे अपनी कुशल कायज़्शैली के चलते हैदराबाद जोन में किंग ऑफ मीटरगेज के नाम से पहचाने जाते थे। उन्होंने कहा मीटरगेज लाइन में 34 साल नौकरी करने के बाद उसे भूल पाना मुश्किल हो गया है। सेवानिवृत्त होने के बाद भी वह रोजाना स्टेशन पहुंचकर ट्रेनों की स्थिति जानना और अन्य कायोज़्ं में भी हाथ बंटाते रहे हैं।
रेल मार्ग से जुड़ेगे ये स्थान इस लाइन से महू का मिलेट्री एरिया, पीथमपुर औद्योगिक क्षेत्र, बड़वाह सीआईएसएफ, ओंकारेश्वर ज्योतिज़्लिंग एवं गणगौर ताप परियोजना जिला खरगोन आदि स्थान को जोड़ा जा सकेगा। रेल मागज़् की सुविधा के अभाव में राजस्थान के विभिन्न शहर जयपुर, उदयपुर, भीलवाड़ा, चुरू, बांसवाड़ा, कोटा आदि स्थानों से खंडवा एवं ओंकारेश्वर आने वाले दशज़्नाथिज़्यों को बस का सहारा लेना पड़ रहा है। ब्रॉडगेज होने से उक्त स्थानों के यात्रियों को रेल सुविधा मिल सकेगी और इन नौ गांवों का कट जाएगा संपर्क