कानपुर देहात.हिंदू धर्म मे प्राचीन काल से ही अक्षयवट वृक्ष की पूजा अर्चना ईश्वरीय अंश के रूप में की जा रही है। बताया गया कि भारत देश में केवल 4 अक्षयवट वृक्ष जो कि नासिक, इलाहाबाद, बनारस और झींझक में थे। इसमें से अब केवल यह वृक्ष कानपुर देहात की नगर पंचायत झींझक की रेलवे लाइन किनारे स्थित अक्षयवट मंदिर में स्थित होकर वहां आने वाले भक्तों की आस्था का केंद्र बना हुआ है।
इस मंदिर की स्थापना 56 वर्ष पूर्व 1960 मे स्टाफ क्लब झींझक के अध्यक्ष व नगर पंचायत झींझक चेयरमैन स्व मन्नीबाबू तिवारी के द्वारा की गयी थी। इसके बाद चेयरमैन ने क्लब के सदस्यों वंशलाल, सुरजन सिंह, कैलाश व ध्रुव कुमार के साथ प्रथम हवन पूजन कराया था।
कहा जाता है कि उस समय यहां एक घना जंगल था। बनारस के ब्रह्मचारी राधेकृष्ण झींझक आये हुये थे। वह शौचक्रिया के लिये रेलवे लाइन किनारे जा रहे थे। अचानक जंगल में खड़े दो अक्षयवट वृक्ष पर उनकी नजर पड़ी। शौचक्रिया किये बिना वापस आकर वह चेयरमैन के गले लगकर रोते हुये कहने लगे, इस वृक्ष के तो दर्शन दुर्लभ है।
तब उन्होंने बताया कि यह अक्षयवट वृक्ष है। इस वृक्ष के नीचे भगवान स्वयं बैठते थे है। वह दिन होलिकाष्टमी का दिन था। चेयरमैन मन्नीबाबू तिवारी ने ब्रम्हचारी की बात सुन उस परिसर मे एक शिला रखकर मंदिर की स्थापना अक्षयवट नाम से की। गोविंद शरण तिवारी महंत अक्षयवट वृक्ष की सेवा कार्य मे लग गये। इसके बाद से प्रत्येक वर्ष होली की अष्टमी पर मंदिर परिसर मे विशाल मेले का आयोजन किया जाता है।
करीब साढ़े तीन बीघा में बने इस मंदिर मे फिर करीब 5 वर्ष बाद भगवान बाला जी की स्थापना भी की गयी। उनकी अनुकम्पा से आज औरैया, इटावा, फर्रुखाबाद, उन्नाव, कन्नौज, फिरोजाबाद, दिल्ली, देवरिया आदि अन्य दूर दराज जिले के लोग यहा अक्षयवट वृक्ष के दर्शन करने के लिये आते हैं।
स्व मुन्नीबाबू के पुत्र पूर्व चेयरमैन सतोंष तिवारी ने बताया कि अक्षयवट वृक्ष की अनुकम्पा से आज तक यह क्षेत्र में ओलावृष्टि, तूफान, भूकम्प व आकाशीय बिजली जैसी दैवीय आपदाओं से सुरक्षित हैं। आज भी लोग अक्षयवट वृक्ष की परिक्रमा कर मुरादे मांगते हैं। अक्षयवट परिसर में आने वाले प्रत्येक भक्त की मुराद पूरी होती है।
कस्बा के एक वयोवृद्ध छुन्ना शुक्ला ने बताया कि करीब 11 वर्ष पूर्व भिंड से आए सुरेश ठाकुर के मंदिर के चौखट चढ़ने पर ही उनके शरीर मे कम्पन हुआ, तो उन्होंने मंदिर में पूजन कराते हुये इसको सिद्ध पीठ घोषित किया था। लता तिवारी पत्नी पूर्व चेयरमैन संतोष तिवारी ने बताया कि अक्षयवट आश्रम की ऐसी कृपा है कि यहां आकर लोगों की पीड़ा दूर हो जाती है। झींझक पुलिस चौकी में करीब 17 साल पहले तैनात कानिस्टेबिल एसके दुबे के कोई संतान नहीं थी, उनकी उम्र करीब 55 वर्ष थी। अक्षयवट की परिक्रमा कर उन्होंने मुराद मांगी, उसके बाद संतान के रूप में उनकी मुराद पूरी हुयी।
वर्तमान चेयरमैन राजकुमार यादव ने बताया कि इस मंदिर से झींझक सहित लाखो लोगो की आस्था है, सिद्धपीठ की मान्यता है। मंदिर को जाने के लिये मैने इंटरलॉकिंग मार्ग का निर्माण करवा दिया, एक हाईमास्ट लाइट लगवा दी है। जिससे भक्तो को आश्रम पहुनचने मे समस्या का सामना न करना पड़े।
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