अब तक आपने मध्यप्रदेश के पर्यटन स्थलों में खूबसूरत किले, महल, झील, मंदिर सहित ऐसे भी स्थान देखे हैं जो ऐतिहासिक के हैं और उनसे जुड़ी हुई परंपराओं को अब भी कहीं ना कहीं अपनाया जाता है। लेकिन आज हम आपको एक ऐसे किले की ओर लेकर जा रहे हैं। जो अपने आप में भिन्न है। दूसरे किलों की तरह इसका कोई भूतहा किस्सा नही है, लेकिन इससे जुड़ी रोचक कहानी जो भी सुनता है वह इसे देखने के लिए लालायित हो उठता है। जी हां, हम बात कर रहे हैं चंबल फोर्ट की।
भदावर राजाओं की शौर्यगाथाओं को चंबल में अटेर दुर्ग की ऐतिहासिक इमारत आज भी बयां कर रही है। बताते हैं कि शौर्य के प्रतीक लाल दरवाजे से ऐतिहासिक काल में खून टपकता था, इस खून से तिलक करने के बाद ही गुप्तचर राजा से मिलने जाते थे। आज भी इस दरवाजे को लेकर किवदंतिया जिले भर में प्रचलित है। खूनी दरवाजे का रंग भी लाल है। इसके ठीक ऊपर वह स्थान आज भी चिन्हित है जहां से खून टपकता था। पर्यटकों के लिए ये सर्वाधिक आकर्षित करने वाला यही स्थान है।
यह किला चंबल नदी के उत्तरी किनारे पर स्थित है इस किले का निर्माण भदौरिया राजा बदनसिंह ने 1664 ई. में शुरू करवाया था। भदौरिया राजाओं के नाम पर ही भिंड क्षेत्र को पहले बधवार कहा जाता था। गहरी चंबल नदी की घाटी में स्थित यह किला भिंड जि़ले से 35 कि.मी. पश्चिम में स्थित है।
भदावर राजा लाल पत्थर से बने दरवाजे के ऊपर भेड़ का सिर काटकर रख देते थे। दरवाजे के नीचे एक कटोरा रख दिया जाता था। इस बर्तन में खून की बूंदें टपकती रहती थीं। गुप्तचर बर्तन में रखे खून से तिलक करके ही राजा से मिलते थे। उसके बाद वह राजपाठ व दुश्मनों से जुड़ी अहम सूचनाएं राजा को देते थे।
बताया जाता है कि आम आदमी को किले के दरवाजे से बहने वाले खून के बारे में कोई जानकारी नहीं होती थी। यही कारण था कि गुप्त सूचनाएं कभी भी लीक नही होती थीं और राजाओं को आसानी से गुप्त सूचनाएं दूसरे देशों और शासकों की मिल जाया करती थीं।
Hindi News / Jabalpur / इस किले के दरवाजे से टपकता था खून, भरा रहता था नीचे रखा कटोरा