जबलपुर। भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम, 1857 की क्रांति कभी भी भुलाया नही जा सकेगा। यही वह संग्राम है जिसमें रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजों से लोहा लिया और उन्हें दांतों चने चबाने मजबूर कर दिया। आज (17-18 जून) ही का वह दिन है जब झांसी की रानी वीरांगजना लक्ष्मीबाई ने अपने प्राणों का बलिदान देश हित में दिया।
इतिहासकारों के मतानुसार यदि ये स्वतंत्रता संग्राम सफल हो जाता तो इसे ही भारत की आजादी का दिन माना जाता। ये सफल नही हो सका क्योंकि उस दौरान शासकों और सेनानियों को अपने विश्वासपात्रों द्वारा धोखे का सामना करना पड़ा।
लक्ष्मीबाई का जन्म वाराणसी जिले के भदैनी नामक नगर में 19 नवम्बर 1835 को हुआ था। सन् 1842 में उनका विवाह झाँसी के मराठा शासित राजा गंगाधर राव निम्बालकर के साथ हुआ और वे झाँसी की रानी बनीं। विवाह के बाद उनका नाम लक्ष्मीबाई रखा गया।- 17-18 जून 1858 को ग्वालियर के पास कोटा की सराय में ब्रिटिश सेना से लड़ते-लड़ते रानी लक्ष्मीबाई ने वीरगति प्राप्त की। लड़ाई की रिपोर्ट में ब्रिटिश जनरल ह्यूरोज ने टिप्पणी की कि रानी लक्ष्मीबाई अपनी सुन्दरता, चालाकी और दृढ़ता के लिये उल्लेखनीय तो थी ही, विद्रोही नेताओं में सबसे अधिक खतरनाक भी थी। आज उन्हें एक बार फिर उनके बलिदान दिवस पर याद किया जा रहा है।
रानी लक्ष्मीबाई पर लिखी गई प्रसिद्ध कविता के कुछ अंश-
कानपूर के नाना की, मुँहबोली बहन छबीली थी,
लक्ष्मीबाई नाम, पिता की वह संतान अकेली थी,
नाना के सँग पढ़ती थी वह, नाना के सँग खेली थी,
बरछी ढाल, कृपाण, कटारी उसकी यही सहेली थी।
वीर शिवाजी की गाथायें उसकी याद ज़बानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
Hindi News / Jabalpur / ब्रिटिश जनरल की इस रिपोर्ट मेें ‘लक्ष्मीबाई’ को बताया गया था खतरनाक