जबलपुर। भारत परंपराओं का देश है। इसका नजारा जब-तब देखने मिलता है। एक प्राचीन परंपरा के तहत भगवान जगन्नाथ स्वामी सोमवार से बीमार हो गए हैं और अब वे 15 दिन तक भक्तों को दर्शन नहीं देंगे। इतना ही नहीं उनकी बीमारी का जायजा लेने के लिए हर दिन वैद्यराज आएंगे ताकि भगवान जल्द से जल्द ठीक हो जाएं। इस बीच उन्हें औषधियों का ही भोग लगाया जाएगा।
दरअसल, प्राचीन परंपरा के अनुसार हर वर्ष ज्येष्ठ मास की सुदी पूर्णिमा से रथदोज तक भगवान जगन्नाथ स्वामी बीमार हो जाते हैं। इस दौरान वह न तो किसी भक्त को दर्शन देते हैं और न ही विशेष पूजा पाठ की जाती है। भगवान जगन्नाथ स्वामी को सोमवार की सुबह से तेज ज्वर होने से वह श्यन में लीन हो गए हैं। वैद्यराज को बुलाया गया और उन्होंने भगवान की नब्ज देखी तो तेज ज्वर बताया। वैद्य के बताए अनुसार अब भगवान को 15 दिनों तक आराम करना होगा। साथ ही हल्का भोजन दिया जाएगा। जिसमें मूंग की दाल, दलिया, खिचड़ी का भोग लगाया जाएगा। इसके साथ ही दवा के रूप में जड़ी-बूटी और काढ़ा बनाकर दिया जाएगा।
6 जुलाई को देंगे दर्शन
बीमारी की अवस्था के 15 दिन भगवान किसी भी भक्त को दर्शन नहीं देंगे। रथदोज के दिन 6 जुलाई को जगन्नाथ स्वामी की रथयात्रा के दिन ही भगवान बाहर आएंगे और शहर भ्रमण कर अपने भक्तों को दर्शन देंगे। विद्वानों का कहना है कि असल में भगवान बीमार नहीं पड़ते हैं बल्कि यह प्राचीन परंपरा के अनुसार ही यह किया जाता है।
कथा और भक्त माधवदास
एक कथा के अनुसार भगवान के परम भक्त माधवदास को भगवान जगन्नाथ से मिलने की व्याकुलता हुई। जब उन्हें पता चला कि भगवान जगन्नाथ पुरी में हैं तो वह पैदल ही चल देते हैं। कई दिनों तक चलने के बाद वह भगवान के दर पर पहुंचते हैं और उनकी भक्ति में लीन हो जाते हैं। अपने भक्त को थका हारा एवं भूखा प्यासा देखकर भगवान जगन्नाथ अपने लिए लगाए गए भोग की थाली खिसका देते हैं। तब माधवदास भोग की थाली को एक जगह बैठकर भोजन करते हैं। इसी बीच मंदिर के पुजारी आकर माधवदास की खूब पिटाई करते हैं। अपने भक्त की हालत देखकर भगवान को काफी पीड़ा होती है और वह स्वयं ही अपने भक्त की पीड़ा को धारण कर लेते हैं। उसी दिन से भगवान को ज्वर आने के कारण बीमार पड़ जाते हैं। उसी समय से यह परंपरा चली आ रही है।
उत्कल प्रदेश के प्रधान देवता
उत्कल प्रदेश के प्रधान देवता श्री जगन्नाथ जी ही माने जाते हैं। यहां के वैष्णव धर्म की मान्यता है कि राधा और श्रीकृष्ण की युगल मूर्ति के प्रतीक स्वयं श्री जगन्नाथ जी हैं। इसी प्रतीक के रूप श्री जगन्नाथ से संपूर्ण जगत का उद्भव हुआ है। श्री जगन्नाथ जी पूर्ण परात्पर भगवान है और श्रीकृष्ण उनकी कला का एक रूप है। इस स्थान सहित पूरे देश में स्थित विभिन्न जगन्नाथ मंदिरों में इस प्रथा का निर्वहन किया जाता है और मंदिरों के पट 15 दिन के लिए बंद कर दिए जाते हैं और रथयात्रा के साथ ही पुन: पूजन प्रारंभ होता है।
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