जबलपुर। मृत्यु के बाद मनुष्य की आत्मा कहां जाती है। इस विषय पर कितने ही वैज्ञानिकों ने रिसर्च की है। लेकिन इसका उर्पयुक्त जवाब अब तक नही मिल सका है। पुराणों के अनुसार यमराज को मृत्यु और दण्ड का देवता माना जाता है। जो आत्मा को ले जाते हैं और उसके कर्मो के अनुसार स्वर्ग-नरक का निर्धारण करते हैं। आज हम आपको मनुष्य की आत्मा और यमराज से जुड़े कुछ रहस्यों के बारे में बता रहे हैंं।
1. यमलोक: आत्मा सत्रह दिन तक यात्रा करने के पश्चात अठारहवें दिन यमपुरी पहुंचती है। यमपुरी या यमलोक का उल्लेख गरूड़ पुराण और कठोपनिषद में मिलता है। मृत्यु के 12 दिनों के बाद मानव की आत्मा यमलोक का सफर प्रारंभ कर देती है। पुराणों अनुसार यमलोक को मृत्युलोक के ऊपर दक्षिण में 86,000 योजन दूरी पर माना गया है। एक योजन में करीब 4 किमी होते हैं।
2. यमराज का रूप: यमराज का पुराणों में विचित्र विवरण मिलता है। पुराणों के अनुसार यमराज का रंग हरा है और वे लाल वस्त्र पहनते हैं। यमराज भैंसे की सवारी करते हैं और उनके हाथ में गदा होती है।
3. पुराणों के अनुसार यमलोक एक लाख योजन क्षेत्र में फैला है और इसके चार मुख्य द्वार हैं। यमलोक में आने के बाद आत्मा को चार प्रमुख द्वारों में से किसी एक में कर्मो के अनुसार प्रवेश मिलता है।
4. गरूड़ पुराण में यमलोक के रास्ते में वैतरणी नदी का उल्लेख मिलता है। वैतरणी नदी विष्ठा और रक्त से भरी हुई है। जिसने गाय को दान किया है वह इस वैतरणी नदी को आसानी से पार कर यमलोक पहुंच जाता है अन्यथा इस नदी में वे डूबते रहते हैं और यमदूत उन्हें निकालकर धक्का देते रहते हैं।
5. यमपुरी पहुंचने के बाद आत्मा पुष्पोदका नामक एक और नदी के पास पहुंच जाती है जिसका जल स्वच्छ होता है और जिसमें कमल के फूल खिले रहते हैं। इसी नदी के किनारे छायादार बड़ का एक वृक्ष है, जहां आत्मा थोड़ी देर विश्राम करती है। यहीं पर उसे उसके पुत्रों या परिजनों द्वारा किए गए पिंडदान और तर्पण का भोजन मिलता है जिससे उसमें पुन: शक्ति का संचार हो जाता है।
सभी द्वारों पर मनुष्य उसके अच्छे और बुरे कर्मों के हिसाब से ही पहुंचता है। जिसका लेखा-जोखा चित्रगुप्त रखते हैं। मृत्यु के बाद आत्माएं 1 से 100 सालों तक पुर्जन्म और मृत्यु के बीच की स्थिति में रहती हैं।
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