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जबलपुर

इतिहास के आईने में खास कटनी की तस्वीर

पुरातत्व, प्राकृतिक धरोहर और अनुपम छटाओं से सराबोर जिला उपेक्षा का शिकार

जबलपुरAug 27, 2016 / 03:40 pm

neeraj mishra

History, archeology

History, archeology


बालमीक पाण्डेय @ कटनी। प्राकृतिक, सांस्कृतिक एवं पुरातत्वीय धरोहर हमारे जीवन को समृद्धि और खुशहाली प्रदान करती है। लेकिन यह बात कटनी जिले के लिए सिर्फ किस्से और कहावत तक ही सीमित रह गई है। पर्यटन की अपार संभावनाओं से भरा पड़ा जिला उपेक्षा का दंश झेल रहा है। हजारों वर्ष पुराने मानव इतिहास की शिलालेख, अनोखे किले, कुंड, बावली, कलाचित्र और शिल्प कला के सुन्दर नमूने हमारे बीच हैं तो, लेकिन न तो उनकी सुरक्षा है ना ही संरक्षण। कला, सांस्कृतिक एवं पुरातत्वीय धरोहर को सहेजने, संरक्षण प्रदान करने के लिए इन नष्ट होती धरोहर की सुध किसी को नहीं। यदा-कदा सिवाय औपचारिकता के कुछ भी नहीं है। इतिहास के आईने में कटनी की तस्वीर भले ही खास हो, लेकिन शासन-प्रशासन के लिए खास तवज्जों का विषय नहीं है। तभी तो आज तक उन्हें संजोने कोई कारकर कदम नहीं दिखे।

इससे होती है कटनी शहर की पहचान
20वीं सदी की शुरुआत विशेष पहचान बनाने वाला महाकौशल संभाग का कटनी शहर, जिसे लोग मुड़वारा के नाम से भी जानते हैं। जबलपुर से 90 किमी याने की 56 मील की दूरी पर स्थित कटनी जिला मुख्यालय कई मायनों में खास है। यह रेलवे का जंक्शन है। जो देश बड़े एवं महत्वपूर्ण रेलवे जंक्शनों में से एक है। देश का सबसे बड़ा रेल्वे यार्ड और सबसे बड़ा डीजल लोकोमोटिव शेड इसे नई ऊचाईयां प्रदान करता है। कटनी में चूना, बॉक्साइट, मार्बल और अन्य कई महत्वपूर्ण खनिज शहर की पूछपरख अन्य प्रदेशों तक बढ़ाते हैं। जानकारों की मानें तो शहर का विकास ब्रिटिश शासन के अधीन ही शुरू हो चुका था।

कई संस्कृतियों का है समूह
कटनी तीन अलग-अलग सांस्कृतिक राज्यों महाकौशल, बुंदेलखण्ड और बघेलखण्ड की संस्कृति का समूह माना जाता है। कटनी जंक्शन वैगन यार्ड से अर्धवृत्ताकार मोड़ जैसा है जिसके कारण लोग इसे मुड़वारा कहते हैं। एक अन्य कहानी के अनुसार स्वतंत्रता संग्राम के दौरान अंग्रेजों के सिर काटने के बहादुरी भरे काम के कारण इसे मुड़वार-कटनी कहा जाने लगा।

कटनी की ये हैं ऐतिहासिक धरोहर


बहोरीबंद का तिगवां मंदिर
कटनी जिले का बहोरीबंद विधानसभा क्षेत्र कई मायनों में अहम है। रानी आवंती बाई का स्मारक सहित कई प्रसिद्ध स्मारक हैं। इन स्मारकों में 12 फीट ऊंची जैन तीर्थंक शांतिनाथ की मूर्ति प्रमुख है। प्रतिमा के निचले हिस्से में 12वीं सदी के कलचुरी राजा गयाकर्णदेव के अधीन शासक रहे महासमंताधिपति गोल्हनेश्वर राठौर कहानी लिखी गई है। भगवान विष्णु के 10 अवतार का चित्रण खास है। यहां भगवान विष्णु के शेषशैया तथा भगवान सूर्य की कई मूर्तियां हैं। बहोरीबंद-स्लीमनाबाद क्षेत्र में मार्बल हब अब और भी प्रसिद्ध हो गया है। तिगवां में 1500 वर्ष पुराना मंदिर भी है। नृसिंह भगवान की मूर्ति और तीर्थंकर पाश्र्वनाथ की प्रतिमा विशेष है। इसके साथ ही कई मूर्तियां आकर्षण का केंद्र हैं।


विजयराघवगढ़ का किला
विजयराघवगढ़ जिले का एतिहासिक स्थान है। राजा प्रयागदास द्वारा 19वीं शताब्दीं में भगवान विजयराघव के एक भव्य मंदिर और किले का निर्माण करवाया गया और किले को विजयराघवगढ़ के रूप में नामित किया गया। किले के नाम पर ही इस नवनिर्मित नगरर का नाम विजयराघवगढ़ दिया गया। इसके दूसरी ओर एक अन्य सुन्दर इमारत है जिसे रंगमहल के नाम से जाना जाता है। किला आयताकार है और चारों कोनों पर बुर्ज बना है। किले के भीतर कलचुरी, हमाम, अखाड़ा, मंदिर और बावड़ी निर्मित है। 


रूपनाथ के कुंड हैं आकर्षक
बहोरीबंद रूपनाथ धाम में पंचलिंगी शिव प्रतिमा है जिसे रूपनाथ के नाम से जाना जाता है। यह कैमोर पहाडिय़ों के एक सिरे पर स्थित है। सबसे नीचे का कुंड सीताकुंड, मध्य का लक्ष्मण कुंड और सबसे ऊपर भगवान राम कुंड है। 232 ईसापूर्व की कविता भी चित्रित है।


बिलहरी का रंगमहल
पुष्पावती नगर के नाम का बिलहरी नगर में धार्मिक शिलालेख विशेष हैं। भगवान वाराह (विष्णु) का मंदिर खास है। कामकंदला का किला, रंगमहल, बावली इतिहास को संयोए हुए है। कलचुरी राजा कयूरवर्ष का वर्णन पाया गया, जो नागपुर संग्रहालय में है। राजा लक्ष्मण द्वारा बिलहरी में एक बड़े तालाब का निर्माण कराया गया है। बिलहरी का बंगला पान भी खास है। राजा कर्ण का इतिहास भी बिलहरी में मिलता है। 

bilahri mandir

शिलालेख हैं विशेष
कटनी-जबलपुर मार्ग पर झिंझरी में एक दर्जन से रंगीन चित्रित चट्टानों (शैलचित्र) में प्रागैतिहासिक काल के संबंध में जानकारी मिलती है। शैलचित्रों में जानवर जैसे गाय, बैल, हिरण, कुत्ता, बकरी, सुअर को चित्रित किया है। ऐसा बताया गया है कि दरियाई घोड़ा प्राचीन समय में यहां पाया जाता रहा है। इस जानवर को छोड़कर बाकी सभी जानवरों, युद्ध में प्रयुक्त होने वाले उपकरणों आदि के चित्र और आदमी, औरत, पेड़, फूल आदि के चित्र उपलब्ध हैं। ये शैलचित्र लगभग 10 हजार ईसा पूर्व से 4 हजार ईसा पूर्व के तथा कुछ चित्र 700 ईसा पूर्व से 200 ईसा पूर्व के हैं। तमाम धरोहरों से सराबोर जिला उपेक्षित है।

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