चंदेल शासकों द्वारा बनवाया गया कालिंजर अजयगढ़ का किला, चंदेलों की शक्ति का केंद्र रहा है। पहाड़ी पर बने इस किले के मुख्य द्वार तक पहुंचने के लिए खड़ी चढ़ाई चढऩा पड़ती है। मध्यप्रदेश के पर्यटन स्थलों में ये भी महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यहां अंदर आज भी पत्थरों के बीच से पानी रिसता हुआ नजर आता है जो किसी रहस्य से कम नही है। आज हम आपको इसी के बारे में बताने जा रहे हैं…
-खजुराहो से करीब 105 किलोमीटर दूर स्थित ईसा सदी पूर्व का कालिंजर का किला अजेय दुर्ग ही नही माना जाता, बल्कि इसके नाम से ही शिव के विनाशकारी स्वरूप का बोध होता है। कालिंजर काल और जर को मिलाकर बनाया गया है।
-किले के बीचों बीच अजय पलका नामक झील है। झील के आसपास प्राचीन कालीन मंदिर है। किले की प्रमुख विशेषता ऐसे तीन मंदिर हैं जिन्हें अंकगणितीय विधि से सजाया गया है।
-यह किला करीब 108 फीट ऊंचा है जिसमें प्रवेश के लिए सात दरवाजे हैं। यह सभी दरवाजों में अलग-अलग शैलियों का चित्रण होता है।
-मंदिर के ठीक पीछे की तरफ पहाड़ काटकर पानी का कुंड बनाया गया है। इसमें बने स्तंभों और दीवारों पर प्रतिलिपि लिखी हुई है।
-माना जाता है कि इस प्राचीनतम किले में मौजूद खजाने का रहस्य भी इसी प्रतिलिपि में है, लेकिन आज तक कोई इसका पता नहीं लगा सका है।
-इस मंदिर के ऊपर पहाड़ है, जहां से पानी रिसता रहता है। बुंदेलखंड सूखे के कारण जाना जाता है, लेकिन कितना भी सूखा पड़ जाए, इस पहाड़ से पानी रिसना बंद नहीं होता है।
-कहा जाता है कि सैकड़ों साल से पहाड़ से ऐसे पानी निकल रहा है, ये सभी इतिहासकारों के लिए अबूझ पहेली की तरह है।
-महमूद गजनवी द्वारा भी इस किले पर आक्रमण का उल्लेख मिलता है। जिसके बाद ही चंदेल शक्ति के केंद्र और किले की खूबियां सबके सामने आईं।
-यहां बेशकीमती पत्थर पाए जा चुके हैं। अंदर गुफाएं हैं जो गहरी होने के साथ ही रहस्यात्मक भी हैं। कभी यहां शिवभक्त गुप्त तप किया करते थे।
-कहा जाता है कि जिस स्थान पर यह किला बना है वह कभी शिवभक्तों की कुटी था और इसके नीचे से पातालगंगा बहती है। यह मध्यप्रदेश उत्तरप्रदेश सड़क मार्ग से जुड़ा है।
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