script120 साल की उम्र सच-अचंभा और भूली-बिसरी यादें | Omg old man claims he is 120 years Old | Patrika News
इंदौर

120 साल की उम्र सच-अचंभा और भूली-बिसरी यादें

उनकी उम्र के प्रमाण के प्रश्न पर केशवानंद का बताते हैं 1914 में फौज में
था। 18 बरस का था उसी से लगा लो मेरी उम्र…पूरे 120 साल निकलेगी।

इंदौरDec 03, 2016 / 04:17 pm

Kamal Singh

Omg old man claims he is 120 years Old

Omg old man claims he is 120 years Old


इंदौर।
120 साल के बुजुर्ग या 20 साल के जवान। चौंकिए नहीं हम यहां बात कर रहे हैं सन्यासी बाबा केशवानंद की। केशवानंद का दावा है कि उनका जन्म 1896 में में हुआ था। खुद को शतायु बताने वाले केशवानंद की याददाश्त अब भी गजब है।
वे कहते हैं कि 1914 में मैं फौज में था 4 साल तक वहीं रहा, कई देश घूमे अब महू के आम्बाझर में कई सालों से धूनी जमा रहे हैं। उनकी उम्र के प्रमाण के प्रश्न पर केशवानंद का बताते हैं 1914 में फौज में था। 18 बरस का था उसी से लगा लो मेरी उम्र…पूरे 120 साल निकलेगी। गजब की याददाश्त के धनी केशवानंद सरस्वति को किशोरावस्था से अभी तक की तमाम घटनाएं मुंह जुबानी याद हैं। वे अभी महू के पास ग्राम भगोरा से नजदीक विंध्याचल की पर्वत श्रृंखला के बीच स्थित आम्बाझर के शिव मंदिर में अपनी धुनी रमाए हैं। मंदिर के पीछे पुरानी कुटिया है जिसमें सन्यासी बाबा श्री केशवानंदजी सरस्वति बरसों से रहते आ रहे हैं।

यह भी पढ़ें- तलाक- तलाक-तलाक, शबाना ने खून से चीफ जस्टिस को लिखी दरख्वास्त!

इन दिनों बाबा की की तबीयत कुछ नासाज है। वे चना गोदाम स्थित गेजवेल अस्पताल में 102 नंबर के वार्ड में भर्ती है। सन्यासी बाबाश्री केशवानंदजी के अनुसार उनका जन्मस्थान यूँ तो बिहार के बेतिया रियासत रहा है और वे अपने पिता रामगोविंद मिश्र के इकलौते पुत्र रहे हैं जिनके पास ५०० गाँवों की जागीरदारी रही। लेकिन वे पिता से बड़ा कद अपने गुरु का मानते हैं और आगे चलकर उनके गुरु रहे हैं नेपाल के महाराज श्री दरयावसिंह। बाबा बताते हैं कि वें इतिहास भूगोल, एलजेबरा, संस्कृत और अंग्रेजी विषय के साथ ११ क्लास तक पढ़े हैं। इकलौती संतान होने के कारण पिता उनको फौज में नहीं भेजना चाहते थे लेकिन १८ साल की उम्र में फौज में भर्ती हुए और १९१४ से १६ तक वे टर्की में सेना की बटालियन में भर्ती रहे। चार साल तक वे सेना में रहे और समय पड़ने पर तोप भी चलाते थे। उस समय फौज में उन्हें १३० रुपए मासिक मिलते थे जबकि पुलिस वालों का वेतन ५ रुपए होता था।

यह भी पढ़ें-  CA की सलाह, जेब में नहीं कैश तो डिजिटल खर्च करें अपनी मनी

फौज में रहते हुए वे मांसाहारी से दूर रहे इसलिये शाकाहारी होने के कारण वे प्रतिदिन सुबह एक पाव अखरोट, एक पाव बादाम और मुनक्का का सेवन करते थे। स्विजरलैन्ड का जमा दूध आता था जिसे जी भर कर पीते थे। एक समय का यह भोजन होता था और रात को केवल पानी पीकर सोते थे। वे कहते हैं कि उस समय बदन में इतनी ताकत होती थी कि शेर से भी भिड़ा जा सकता था। चार साल बाद जब सेना से अलग हुए तो वे अपने गुरु दरयावसिंह के शिष्य बन गए। क्वेटा में उन दिनों भारत की फौज हुआ करती थी तब वहां अंग्रेज पल्टन के अफसर होते थे कालूराम। उन्होंने सलाह दी थी कि यदि भारत लौटो तो मध्यभारत प्रांत के महू स्थित पातालपानी क्षेत्र में अपना सन्यासी जीवन बिताना।

Omg old man claims he is 120 years Old

बाबा कहते हैं कि १९२२ के बाद पंजाब प्रांत में रहे। देश विभाजन के पूर्व जब मुस्लिम और सिखों के बीच आपसी मारकाट मची थी वे रावलपिंडी में थे और उन्हीं हालातों में वे वापस भारत पहंचे थे। वे कहते हैं कि उन दिनों मुसलमानों की हिन्दूओं से कम लेकिन सिखों से ज्यादा दुश्मनी रहती थी इस तरह विभाजन से पूर्व मुसलमान सिखों के बीच की मारकाट में लाखों लोगों के प्राण गए थे।
भारत वापसी पर उन्हें महू में पातालपानी की जगह ही भाई। वे कहते हैं कि तब पातालपानी के झरने में नीचे खड़ा होने पर आसमान के सात रंग दिखाई पड़ते थे। बच्चन नामक एक रेलकर्मी ने उन्हें पातालपानी के दक्षिण में स्थित पठार की ७ बीघा जमीन बेची थी। यह इलाका तब बण्डों की गिरफ्त में था और जंगलों में कच्ची दारु बनाई जाती थी। उन दिनों भगोरा गांव के कुछ लोगों ने मुझे खेती की जगह बताकर पातालपानी से लाकर थोड़ी दूर आम्बाझर ले आए जहाँ मंदिर के पास आश्रम बना लिया।

यह भी पढ़ें-  CA की सलाह, जेब में नहीं कैश तो डिजिटल खर्च करें अपनी मनी

बाबा केशवानंदजी कहते हैं कि उधर पातालपानी की जमीन पर लोगों ने बलात कब्जा भी किया लेकिन कोर्ट से मेरी जीत हुई। उन्होंने अपने क्षेत्र में कभी अनैतिक गतिविधियाँ नहीं होने दी। बाबा श्री केशवानंदजी सरस्वति ने कभी विवाह नहीं किया। उनका कहना है कि असली सन्यासी कभी विवाह नहीं करते। सन्यासी बने अनेक धूर्त बाबाओं ने विवाह किये हैं और बीवी-बच्चों को भक्त बनाकर साथ रख आज जनता को धोखे में रखते हैं। उन्होंने नाशिक और बड़ौदा के महामंडलेश्वर रहे दो भाईयों को भी दीक्षा दी। वे आजकल के उन बाबाओं का मखौल उड़ाते हैं जिन्हें संस्कृत भाषा नहीं आती और छद्मवेश धारण कर वे कथाओं के जरिये अपना अस्तित्व बनाये रखने के लिये एक ही शहर या क्षेत्र में डेरा जमाए रहते हैं। उन्होंने बताया कि टंट्या भील की समाधी पातालपानी से दस मीटर दूर बनी हुई है। बाबा के पास अनुभवों का खजाना है और वे अपनी १२० साल की उम्र को अपने अनुभवों और संस्मरणों से ही साबित कर देते हैं। वे कहते हैं कि बंघिमर्ग पैलेस में आज भी उनके फौजी होने की तस्वीर होगी।

Hindi News / Indore / 120 साल की उम्र सच-अचंभा और भूली-बिसरी यादें

ट्रेंडिंग वीडियो