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इंदौर

लापरवाही ने किया अंधा, मां-बाप के जुनून ने दिलाए न्याय की रोशनी 

बेटियों को न्याय दिलाने के लिए 25 साल तक किया अग्रवाल दंपती ने संघर्ष, कहा- जब तक संतुष्ट नहीं होंगे, लड़ते रहेंगे

इंदौरSep 03, 2016 / 03:02 pm

Shruti Agrawal

the struggle of family for their daughters

the struggle of family for their blind daughters in indore


इंदौर@रीना शर्मा। शुक्रवार को हाई कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए जुड़वां बच्चियों (डिम्पल और सिम्पल अग्रवाल) की आंखों की रोशनी जाने के मामले में अस्पताल पर 43 लाख रुपए के हर्जाने का आदेश दिया। कोर्ट का यह फैसला से अग्रवाल दंपती के संघर्ष की जीत है और उनका यह संघर्ष बदस्तूर जारी है। 

आज उनकी बेटियों की उम्र 26 साल हो गई है। 25 साल तक अग्रवाल दंपती अपनी बच्चियों के कारण कभी फिल्म देखने नहीं गए। यहां तक कि घर में टीवी भी यह सोचकर नहीं चालू करते कि बेटियां तो नहीं देख पाएंगी। पत्रिका ने अग्रवाल परिवार से चर्चा कर उनके संघर्ष के बारे में जाना।


पेशे से प्रॉपर्टी ब्रोकर संजय अग्रवाल संजय और उनकी पत्नी सुनीता अग्रवाल ने बताया, ‘डिम्पल और सिम्पल हमारी जुड़वां बेटियां हैं। पहली संतान होने के चलते हमारी खुशियों का ठिकाना नहीं था लेकिन खुशियां कुछ ही दिनों की मेहमान होंगी ये पता नहींं था। 

हमारी बेटियों के साथ हुई क्षति की भरपाई तो किसी भी फैसले से नहीं हो सकती है, लेकिन बस यही सोच सकते हैं कि मेहनत का फल मिला है। फिर भी जब तक संतुष्ट नहीं होंगे तब तक लड़ाई जारी ही रहेगी और इसका फैसला हम कोर्ट के आदेशों की कॉपी हाथ में लेने के बाद करेंगे।’

पार्क जाना तक बंद कर दिया

संजय ने कहा, ‘काम के साथ घर की जिम्मेदारी और कोर्ट कचहरी के चक्कर लगाने के बाद अब भी मैं हारा नहीं हंू। प्रतिमाह सात-सात हजार की दवाइयां आती हैं। बच्चों को पार्क लेकर जाते तो लोग अलग ही नजरों से उन्हें देखते, जो हमें अच्छा नहीं लगता था तो उन्हें पार्क ले जाना बंद कर दिया। 

केवल अर्थदंड ही सजा नहीं


संजय ने बताया, ‘बेटियों के जन्म के बाद उनका वजन कम होने से शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. शिखर चन्द्र जैन ने इन्फ्युबेटर में रखा था। बाद में पता चला बेटियों को आरओपी नामक बीमारी है, जो ज्यादा ऑक्सीजन के कारण होती है। ऐसे डॉक्टर की सजा केवल अर्थदंड ही नहीं बल्कि प्रेक्ट्सि रोक देना है।’



आंखें होती तो बहुत कुछ कर पाते…

डिम्पल ने कहा, ‘आंखों की रोशनी न होने से दिनभर घर पर समय ही नहीं निकलता है। आंखें होती तो स्कूल जाते, पार्क जाते, फिल्में देखते। पापा-मम्मी ने बीए और कम्प्युटर कोर्स कराया। कैसेट्स और फोन में रिकॉर्डिंग करके मुझे सुनाते और फिर मैं अपने राइटर को परीक्षा में लिखा पाती। सीधे हाथ का पंजा कमजोर होने के बाद कम्प्युटर क्लास छूट गई।Ó
दवाओं के हैवी डोज से सिम्पल के पूरे शरीर पर असर हुआ, जिसके चलते वो न तो चल-फिर पाती है बल्कि बोल भी नहीं पाती है इसलिए सिम्पल ने केवल हां-ना में ही बात की।

वो लम्हें, जब आंखें भर आती हैं

the struggle of family for their blind daughters

टीवी चालू करने का सोचते तो कई बार यह सोचकर बंद कर देते कि बेटियां नहीं देख पाएंगी।

छोटी बेटी (इति) और बेटा 12 साल का संचित स्कूल या कोचिंग जाते हैं तो और दोनों बेटियां घर में समय बिताती हैं।

कोर्ट में तारीख लगती थी और दिन-दिनभर कोर्ट में रहना पड़ता था तब हमारी बच्चियां भी हमारे साथ भूखी-प्यासी कोर्ट में ही बैठी रहती थी।

कोई भी घर में आता हैं तो हम उन्हें अंदर भेज देते है क्योंकि उन्हें दया की नजरों से देखा जाता उनके बारे में बात की जाती थी। इससे उनका दिल दुखता था।

कोर्ट में कई लोगों ने जब उन्हें अंधा कहा जब हमारी आंखों से आंसू निकल आते थे।

कई लोगों ने हमें केस लडऩे से मना किया। कहा- बहुत रुपए लग जाएंगे और कुछ ऐसी बातें भी कहीं, जो हम बता भी नहीं सकते।

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