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इंदौर

मंत्री ने जातिसूचक शब्द बोले, डॉक्टर दूर रहते हैं, वो फाड़ देता है शव

रेसीडेंसी कोठी पर बैठक लेते हुए उन्होंने डॉक्टरों को समझाइश के दौरान जातिसूचक शब्दों के उपयोग भी किए।

इंदौरSep 03, 2016 / 05:36 pm

Kamal Singh

rustam singh

rustam singh in indore


लखन शर्मा @ इंदौर. सत्ताधारी संगठन के नेता आए दिन विवादित बयानों के लिए पहचान बना रहे हैं। हाल ही में स्वास्थ्य विभाग के मंत्री बने रुस्तमसिंह शुक्रवार को पहली बार शहर में आए थे।

यहां रेसीडेंसी कोठी पर बैठक लेते हुए उन्होंने डॉक्टरों को समझाइश के दौरान जातिसूचक शब्दों के उपयोग भी किए। जिसके बाद एक बार फिर विवाद खड़ा हो गया है। विवाद बढऩे के बाद स्वास्थ्य मंत्री सिंह के खिलाफ डीआईजी और अजाक थाने में शिकायत की गई। शिकायतकर्ता समाजसेवी और दलितों के हक के लिए लड़ाई लडऩे वाले जितेंद्र चौहान है। जबकि इसके पूर्व भाजपा संगठन अपने नेताओं को ऐसे बयानों से बचने की समझाइश दे चुका है। मंत्री रुस्तमसिंह कल सरकारी डॉक्टरों से यहां रूबरू हुए और कई सवाल जवाब किए।

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रात में पोस्टमार्टम नहीं करने के सवाल पर जबाव दे रहे डॉक्टर को उन्होंने फटकारते हुए कहा कि मैंने पच्चीसों पोस्टमार्टम देखे हैं। शव को ‘…’ (शव चीरने वालों को उन्होंने जाति सूचक शब्द बोलकर संबोधित किया।) फाड़ देता है और डॉक्टर दूर खड़े रहते हैं।

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ऐसे निकले बड़े बोल
पोस्टमार्टम अंधेरे में क्यों नहीं हो सकता, जबाव दीजिए मुझे आप। ये उस जमाने की बात है जब लाईट नहीं थी। आज तो दिन के उजाले से ज्यादा उजाला रात में किया जा सकता है। आप अंदर ही करते हैं ना। आप टेक्नीकल पर्सन हो, बताईये क्यों नहीं कर सकते।

डॉक्टर बोले : सर इसका ये माना जाता है, सन लाईट नेचरल लाईट है। और उसमें जो स्किन कलर और आर्गन कलर है वह नेचरल लाईट में दिखेंगे आर्टिफिशियल लाईट में नहीं दिखेंगे। इसलिए नहीं करते।
मंत्री रूस्तमसिंह : ऐसा है बहुत ज्यादा अकल मत लगाईए इसपे। आप देखेंगे पोस्टमार्टम में कलर। यार वो मेतर फाड़ देता है, मैं एसपी रहा हूं। 15 साल एसपी रहा हूं मैं, मैनें पच्चीसों पोस्टमार्टम खड़े होकर देखे हैं अपने सामने। डॉक्टर उतनी दूर खड़ा रहता है। बाते करते हो, मेरे से बात कर रहे हो। रात में न्यूरो सर्जरी करते हो, हार्ट सर्जरी कर सकते हो। जीवन मरण वाली चीज कर सकते हो, लेकिन पोस्टमार्टम नहीं कर सकते।

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स्वास्थ्य मंत्री ने जो जातिसूचक शब्दों का प्रयोग किया है वह नहीं होना चाहिए। उन्हे तृतीय या चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी भी कहा जा सकता है।
-सज्जनसिंह वर्मा, पूर्व सांसद

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