एक समान रूप से लागू की जाए जनसंख्या नीति : आरएसएस
उन्होंने कहा कि विश्व में भारत उन अग्रणी देशों में था जिसने 1952
में जनसंख्या नियंत्रण के उपायों की घोषणा की थी


रांची। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने जनसंख्या नीति का पुन:निर्धारण कर उसे सब पर समान रूप से लागू करने की मांग की है। संघ ने सीमा पार से हो रही घुसपैठ पर पूर्ण रूप से अंकुश लगाने और राष्ट्रीय नागरिक पंजिका, नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन का निर्माण कर इन घुसपैठियों को नागरिकता के अधिकारों से तथा भूमि खरीद के अधिकार से वंचित करने की भी मांग की है। इस संबंध में रांची में संघ की अखिल भारतीय कार्यकारिणी मंडल की चल रही तीन दिवसीय बैठक के दूसरे दिन शनिवार को एक प्रस्ताव पारित किया गया।
संघ के सह सरकार्यवाहक डॉ कृष्ण गोपाल ने शाम यहां संवाददाता सम्मेलन में कहा कि अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल की बैठक में जनसंख्या वृद्धि दर में असंतुलन की चुनौती को लेकर प्रस्ताव पारित किया गया। उन्होंने कहा कि अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल सभी स्वयंसेवकों समेत देशवासियों का आह्वानन करता है कि वे अपना राष्ट्रीय कत्र्तव्य मानकर जनसंख्या में असंतुलन उत्पन्न कर रहे सभी कारणों की पहचान करते हुए जन जागरण द्वारा देश को जनसांख्यिकीय असंतुलन से बचाने के सभी विधि सम्मत प्रयास करें।
उन्होंने कहा कि विश्व में भारत उन अग्रणी देशों में था जिसने 1952 में जनसंख्या नियंत्रण के उपायों की घोषणा की थी परंतु वर्ष 2000 में जाकर ही एक समग्र जनसंख्या नीति का निर्माण और जनसंख्या आयोग का गठन किया जा सका। उन्होंने कहा कि इस नीति का उद्देश्य 2.1 की सकल प्रजनन दर की आदर्श स्थिति को 2045 तक प्राप्त कर स्थिर व स्वस्थ जनसंख्या के लक्ष्य को प्राप्त करना था।
डॉ कृष्ण गोपाल ने कहा कि 1951 से 2011 के बीच जनसंख्या वृद्धि दर में भारी अंतर के कारण देश की आबादी में जहां भारत में पैदा मतपंथों के अनुयायियों का अनुपात 88 प्रतिशत से घटकर 83.8 प्रतिशत रह गया है, वहीं मुस्लिम जनस ंख्या 9.8 प्रतिशत से बढ़कर 14.23 प्रतिशत हो गई है। उन्होंने बताया कि असम, पश्चिम बंगाल और बिहार के सीमावर्ती जिलों में तो मुस्लिम जनसंख्या की वृद्धि दर राष्ट्रीय औसत से कहीं अधिक है जो स्पष्ट रूप से बंगलादेश से लगातार हो रही घुसपैठ का संकेत देता है।
उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त उपमन्यु हजारिका आयोग के प्रतिवेदन एवं समय-समय पर आए न्यायिक निर्णयों में भी इन तथ्यों की पुष्टि की गई है। यह भी एक सत्य है कि अवैध घुसपैठियें राज्य के नागरिकों के अधिकार हड़प रहे है तथा इन राज्यों के सीमित संसाधनों पर भारी बोझ बन सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनैतिक तथा आर्थिक तनाव का कारण बन रहे हैं।
डॉ गोपाल ने कहा कि पूर्वाेत्तर राज्यों में पंथ के आधार पर हो रहा जनसांख्यिकीय असंतुलन और भी गंभीर रूप ले चुका है। उन्होंने बताया कि अरूणाचल प्रदेश में भारत में उत्पन्न मत पंथों को मानने वालों की संख्या 1951 में 99.21 प्रतिशत थी, लेकिन 2001 में यह 81.3 प्रतिशत और वर्ष 2011 में 67 प्रतिशत ही रह गई। केवल एक दशक में ही अरूणाचल प्रदेश में ईसाई जनसंख्या में 13 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इसी प्रकार मणिपुर की जनसंख्या में इनका अनुपात 1951 में जहां 80 प्रतिशत से अधिक था वहां 2011 की जनगणना में यह 50 प्रतिशत ही रह गया है। यह उदाहरण बताता है कि देश के अनेक जिलों में ईसाईयों की अस्वाभाविक वृद्धि दर कुछ स्वार्थी तत्वों द्वारा एक संगठित एवं लक्षित मतांतरण की गतिविधि का ही संकेत देता है।
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