इंसानियत और बहुलता को बनाए रखना होगा : राष्ट्रपति मुखर्जी
उन्होंने कहा, हमारी
सभ्यता की यही खास बात है, जो हमें एकजुट रखे हुए है


President Pranab Mukherjee
नई दिल्ली। हाल के दिनों में देश में असहिष्णुता की बढ़ती घटनाओं से चिंतित राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने एक पखवाड़े में तीसरी बार देशवासियों से सहिष्णुता बरतने और असहमति की स्थिति में भी दूसरे की भावनाओं की कद्र करने की अपील की है।
राष्ट्रपति ने पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिला स्थित अपने पैतृक आवास पर एक निजी चैनल से कहा कि भारत की सभ्यता सहिष्णुता बढ़ाने, मतभेदों को स्वीकार करने तथा असहमति की स्थिति में भी दूसरे की भावनाओं का सम्मान करने की सीख देता है।
उन्होंने कहा, हमारी सभ्यता की यही खास बात है, जो हमें एकजुट रखे हुए है। चाहे सभ्यता की बातें हों या संस्कृति की, हमें अपने कामकाज और दिनानुदिन आहार-व्यवहार में इन आदर्शो का पालन करना चाहिए। ये हमारे आहार-व्यवहार में झलकने चाहिएं। विविधता में एकता के संदेश को अमल में रखने की सलाह देते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि भारतीय सभ्यता सहिष्णुता को बढ़ावा देती है, मतभेदों तथा असहमति की भावना को भी जगह देती है।
उन्होंने कहा, दुर्गापूजा केवल एक पूजा ही नहीं है, बल्कि एक उत्सव है। यह समाज के सभी समुदायों को एकजुट करती है और सौहार्द एवं शांति का संदेश देती है। उल्लेखनीय है कि मुखर्जी ने सोमवार को भी अपने पैतृक गांव में आयोजित कार्यक्रम के दौरान भारत से सहिष्णुता और सहनशीलता के पतन पर चिंता जताई थी। उनका कहना था कि लोगों में सहिष्णुता घटती जा रही है और आलोचना सह पाने की क्षमता खत्म होती जा रही है।
राष्ट्रपति ने लोगों को श्री रामकृष्ण परमहंस की शिक्षा “जतो मत तथो पथ” यानी “जितनी तरह की मान्यता, उतने तरह के पंथ” की याद दिलाते हुए कहा था कि किसी भी परिस्थिति में हमें मानवतावाद और बहुलवाद को नहीं छोड़ना चाहिए। किसी चीज को आत्मसात् करना भारतीय समाज की एक विशेषता है।
उन्होंने कहा था, हमें अपनी सामूहिक शक्ति का इस्तेमाल समाज की आसुरी शक्तियों के खिलाफ करना चाहिए। मुखर्जी के मंगलवार के बयान को जम्मू कश्मीर के एक विधायक पर राजधानी दिल्ली स्थित प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में स्याही फेंकने की घटना के परिप्रेक्ष्य में देखा जा रहा है।
इससे पहले, गत सात अक्टूबर को भी राष्ट्रपति ने दादरी के बिसाहड़ा कांड के परिप्रेक्ष्य में कड़ी टिप्पणी की थी। राष्ट्रपति भवन में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान उन्होंने कहा था कि भारत की सभ्यता के मूल मूल्यों को खत्म नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा था, भारत की विविधता, सहिष्णुता और बहुलता के मूल मूल्यों को ध्यान में रखा जाना चाहिए।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अगले ही दिन एक कार्यक्रम में इस मामले में चुप्पी तोड़ते हुए राष्ट्रपति की उक्त टिप्पणी से सहमति जताई थी। उन्होंने कहा था कि राष्ट्रपति मुखर्जी ने जो कुछ भी कहा है हम सभी को उस पर अमल करना चाहिए।
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