
इस डील से देवास को रिमोट एरिया में इंटरनेट और ब्रॉडबैंड सेवाएं डिलीवर करने में मदद मिलती। डील के तहत देवास मल्टीमीडिया 12 साल में एंट्रिक्स को 300 मिलियन यूएस डॉलर देती। इसरो ने एकतरफा कांट्रेक्ट निरस्त करते हुए कहा कि कमर्शियल उद्देश्य के लिए ट्रांसपांडर्स का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। इनका इस्तेमाल केवल स्ट्रेट्जिक उद्देश्य के लिए किया जा सकता है। खास बात यह है कि जब डील हुई तब इसरो के कई पूर्व वैज्ञानिक देवास के टॉप मैनेजमेंट में शामिल थे।
2011 में यूपीए सरकार ने डील को कैंसिल कर दिया था। यूपीए सरकार का कहना था कि उसे डील के बारे में जानकारी नहीं दी गई। साथ ही ऑक्शन प्रोसेस का पालन नहीं किया गया। 2015 में देवास ने अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता न्यायालय में भारत सरकार के खिलाफ मुकदमा कर दिया क्योंकि इसरो सरकार की ही संस्था है। लेकिन बाद में उसने डील कैंसिल कर दी। प्राधिकरण ने कहा कि डील कैंसल कर सरकार ने उचित नहीं किया जिससे देवास मल्टीमीडिया के निवेशकों को बड़ा नुकसान हुआ। मई 2016 में सीबीआई ने इस मामले में इसरो के पूर्व चेयरमैन जी.माधवन नायर से पूछताछ की थी।
