ग्वालियर . मेडिकल छात्र को पहले दिन ही मृत देह से पढ़ाई शुरू कराई जाती है। जिससे वह शरीर रचना के बारे में जान सके। मेडिकल स्टूडेंट को डेढ़ साल तक शरीर रचना के बारे में इसी मृत देह से पढ़ाई करनी होती है। मृत देह पर काम करके ही डॉक्टर को किसी घायल, बीमार मरीज के शरीर पर चाकू, कैंची (मेडिकल इक्यूपमेंट) चलाने का भरोसा और साहस मिल पाता है। इसी तारतम्य में शहर में देहदान के इच्छुक व्यक्तियों में से दो सैंकड़ा से अधिक एेसे लोग हैं,जो देहदान की औपचारिकता पूरी करने के लिए गजराराजा मेडिकल कॉलेज से आवेदन-पत्र ले जा चुके हैं। इनमें से 92 आवेदकों ने देहदान की औपचारिकता स्वीकार की है। जैन साध्वी रश्मि के देहदान के लिए संकल्प पत्र भरने के कदम के बाद लोगों को देहदान करने की ललक जागी है। मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया के नियमानुसार एमबीबीएस के 100 छात्रों के बैच के लिए हर वर्ष आठ देह की आवश्यकता होती है।
अब तक नौ देहदान : एनॉटोमी के विभागाध्यक्ष डॉ. एसके शर्मा ने बताया कि अब तक नौ देहदान हो चुके हैं। सबसे पहले 2000 में पद्मश्री डॉ. लीला फाटक का देहदान हुआ था। इसके बाद 2003, 2006, 2008 में 1-1 और 2011 में 3 व 2016 में 3 देहदान हुए हैं।
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